इंग्लैंड में 1880 के दशक से ही भांग-गाँजे-चरस को प्रतिबंधित करने के लिए मुहिम तेज हो रही थी। ब्रिटिश पार्लमेंट में भारत में बढ़ते पागलखानो को गाँजे-चरस से जोड़ा गया और उसपर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई। हिंदुस्तान ब्रिटिश शासन के लिए लैब की तरह था जहां कोई भी नए क़ानून के ऊपर प्रयोग हुआ करता था। जैसे पुलिस व्यवस्था पहले हिंदुस्तान में शुरू किया गया और फिर सफल होने पर इंग्लैंड में लागू किया गया। इसी प्रकार गाँजे-चरस से सम्बंधित नीती का प्रयोग पहले भारत में होना था।

“अंग्रेजों ने भांग, गांजा, चरस के उत्पादन और व्यापार पर प्रतिबंध नहीं बल्कि कर लगाया”

इसी तर्ज़ पर वर्ष 1893 में Indian Hemp Drugs Commission की स्थापना की गई जिसने एक वर्ष के अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट 1894 में दिया। पूरे हिंदुस्तान के 30 शहरों में 86 बैठकें की गई जिसमें 1193 लोगों के साथ पर्सनल इंटर्व्यू और ग्रूप डिस्कशन किए गए। इनमे पगलखाने के रोगी, चिकित्सक, स्थानीय अधिकारी, ज़मींदार, योगी-साधु, किसान, व्यापारी, आदि सभी शामिल थे।

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इस समिति के सात सदस्यों में से तीन भारतीय भी थे। रिपोर्ट के अनुसार ख़राब स्वास्थ्य के कारण तीनो भारतीय सदस्य बहुत कम बैठक में हिस्सा ले पाए। औसतन एक ब्रिटिश सदस्य ने 86 बैठक में हिस्सा लिया जबकि भारतीय सदस्य लाल निहाल चंद मात्र पाँच बैठक में हिस्सा ले पाए थे। इस समिति का हेड्क्वॉर्टर कुछ दिनो के लिए (7-24 अक्तूबर 1893) शिमला भी रहा था। इसके अलावा कमिशन का एक सदस्य अगस्त 1893 के आख़री हफ़्ते में लेफ़्टिनेंट गवर्नर से रिपोर्ट के सम्बंध में सारे दस्तावेज और साक्ष्य जमा करने नैनीताल भी आया था।

इस सम्बंध में जानकारी इकट्ठा करने के लिए पहाड़ों में जिन लोगों से समिति द्वारा सम्पर्क किया गया उनमे से दो मोरादाबाद ज़िले के ग़ैर-पहाड़ी आला अधिकारी थे जबकि दो पहाड़ियों में पंडित गंगा दत्त उप्रेती और धर्मा नंद जोशी शामिल थे। चार में से तीन सदस्यों ने माना कि पहाड़ों में इन पौधों का उत्पादन बढ़ रहा था जबकि जोशी जी इसके विपरीत मत देते हैं। पहाड़ों में इसका उत्पादन मुख्यतः चाँदपुर, व देवलगढ़, और बारहस्यून, तल्ला व मल्ला सालन, चौंधकोट, और बधान पट्टी में सीमित मात्रा में होती थी। रिपोर्ट के अनुसार इनका उत्पादन करने वाले ज़्यादातर लोग डोम या ख़सिया जाति से सम्बंध रखते थे।

पहाड़ों में भांग ज़्यादातर जंगलो में स्वतः उग ज़ाया करता था और यहाँ विधिवत तौर पर इसकी खेति बहुत कम होती थी। यहाँ गाँजे या भांग के उपभोग का प्रचलन न के बराबर था जबकि चरस को उपभोग पिछले कुछ दशक (1880s) से लगातार बढ़ रहा था। एक मत के अनुसार ये इसलिए बढ़ रहा था क्यूँकि कुछ दशक से स्थानीय शराब के उत्पादन पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा था। कपड़े बनाने के लिए भांग के पेड़ों का उत्पादन विस्तृत रूप से प्रचलन में था। काशीपुर में इसकी फ़ैक्टरी खुलने के बाद उत्पादन में तेज़ी आइ।

पहाड़ों में अंग्रेज़ी शासन प्रारम्भ होने से पहले भांग, गांजा या चरस के उत्पादन या उपभोग पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं था। वर्ष 1815 के बाद जब उत्तराखंड के पहाड़ों अंग्रेज़ी शासन प्रारम्भ हुआ तो बाक़ी हिंदुस्तान की तरह यहाँ भी 1798 का भांग गांजा चरस क़ानून के तहत इनके उत्पादन और उपभोग पर कर लगाया जाने लगा था। यह कर कम्पनी सरकार के बढ़ते घाटे के कारण लगाया गया था।

सात वॉल्यूम के तीन हज़ार पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची कि हिंदुस्तान में भांग, गांजा या चरस के सीमित इस्तेमाल से लोगों के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। समिति ने सरकार को इनके उत्पादन या उपभोग पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास से सामाजिक अराजकता फैलने की सम्भावना जताई लेकिन साथ में इनके उत्पादन और उपभोग पर कर लगाने का सलाह दिया ताकि इसके उपभोग और उत्पादन को सीमित रखा जा सके।

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वर्ष 1873 से 1893 के बीच अंग्रेज़ी सरकार को भांग, गांजा और चरस से लगभग एक करोड़ रुपए का आय हुआ था। उन्निसवी सदी के आख़री दशकों में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था मंदी से गुजर रही थी। ऐसे में भांग-गांजा-चरस पर हिंदुस्तान में कर लगाना ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी था। 1894 के बाद भारतीय रजवाड़ों में भी इन मादक पदार्थों पर कर लगाया गया।

वर्ष 1985 में Narcotics and Psychotropic Substances Act हिंदुस्तान में भांग, गांजा और चरस के उत्पादन और उपभोग पर पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया। जब से 2018 में अमेरिका में भांग-गाँजे-चरस की खेति, व्यापार और उपभोग पर प्रतिबंध हटाया गया है हिंदुस्तान में भी कई राज्य धीरे धीरे इनके खेति को ग़ैर-नशा उपोयोगों के लिए प्रोत्साहित कर रही है। उत्तरखंड ने वर्ष 2015 में ही भांग की खेति के लिए लाइसेंस देना प्रारम्भ कर चुकी है।
Sources: All images were taken from “Report of the Indian Hemp Drugs Commission” published in 1894.
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Beautiful and aspiring work for the hemp in uttarakhand our ancestors used it for spices,sacks ,and for other uses necessary for the some vegetables.
Great collection and study
Thanks for appreciating sir.
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