वर्ष 1912 में जब पटना को बिहार की राजधानी घोषित किया गया तो पटना को बिहार की राजधानी बनाया गया। पटना को पृथक बिहार राज्य की राजधानी बनाने पर कई विवाद थे जिसमें बिहार के पहले लेफ़्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स बेली भी पटना के स्थान पर राँची को को बिहार की राजधानी बनाना चाहते थे।
वहीं दूसरी तरफ़ वर्ष 1915 में बिहार के दूसरे लेफ़्टिनेंट गवर्नर का पद सम्भालने वाले एडवर्ड गेट नेतरहाट में स्थित छोटा नागपुर गाँव में बिहार की राजधानी बनाना चाहते थे। तर्क यह था कि राँची शहर और नेतरहाट दोनो बंगाल, ओड़िसा और बिहार से लगभग सामान दूरी पर था और वहाँ का मौसम भी पटना से ज़्यादा ठंडी थी इसलिए अंग्रेजों के रहने के लिए वह बेहतर स्थान था। सचिदानंद सिंह और महेश नारायण चाहते थे कि दार्जिलिंग बिहार के हिस्से में मिले और उसे बिहार का ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया जाए लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हो पाया।
तीसरी तरफ़ गया और बिहार-शरीफ़ के प्रभावशाली लोगों ने अपने शहर को बिहार की राजधानी बनाने का हर सम्भव प्रयास किया। इस दौरान बिहार की राजधानी के बारे में कई अन्य अफ़वाहें भी फैली जिसमें से बनारस को बिहार की राजधानी बनाने का अफ़वाह भी शामिल था।
पृथक बिहार राज्य में बिहार के साथ साथ ओड़िसा भी नए राज्य का हिस्सा था। नए बिहार-ओड़िसा राज्य की राजधानी के सवाल पर विवाद के साथ साथ नए राज्य की शासन-प्रशासन से सम्बंधित अन्य विषयों पर चर्चा और निर्णय के लिए बिहार के प्रथम लेफ़्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स बेली ने 21 नवम्बर 1912 को छज्जुबाग स्थित अपने निवास पर बिहार में प्रभावशाली पाँच संस्थाओं के साथ सम्मेलन रखा जिसे इतिहास में बांकीपुर दरबार के नाम से जाना जाता है।
इस बांकीपुर दरबार में पटना ज़िला प्रशासन व नगर निगम के साथ साथ क्षात्रिय प्रांतिक सभा, प्रांतीय मुस्लिम लीग, प्रधान भूमिहार सभा, बंगाली सेट्लर असोसिएशन और बिहार लैंडहोल्डर असोसिएशन ने भी हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में अलग अलग समूहों के बीच राजधानी के सवाल पर सर्वाधिक नोकझोक हुई। चुकी वर्तमान झारखंड और ओड़िसा क्षेत्र में कोई विशेष राजनीतिक-सामाजिक संस्था प्रभावशाली नहीं थी इसलिए अंततः पटना को बिहार-ओड़िसा की समग्र राजधानी बनाई गई।

पटना:
छठी सदी में गुप्त काल के बाद से ही पटना कभी भी बिहार की राजधानी नहीं रही थी। वर्ष 1912 से पहले बिहार न तो कोई राज्य था और ना ही पटना किसी राज्य की राजधानी थी। इससे पहले बिहार को प्रशासनिक तौर पर तीन हिस्सों में विभाजित था: तिरहुत, सिंहभूमि और पटना। तीनों प्रशासनिक क्षेत्र का मुख्य कार्यालय बांकीपुर में था जहां गोलघर भी स्थित है।
20वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों के दौरान पटना को बंगाल की दूसरी राजधानी बनाने की माँग तेज हुई थी। इस दौरान वर्ष 1905 में जब बंगाल विभाजन की घोषणा हुई तो उसके एक वर्ष पूर्व ही बंगाल के लेफ़्टिनेंट गवर्नर ऐंड्रू फ़्रेज़र ने बांकीपुर के छज्जुबाग में अपने निवास के लिए दरभंगा के ज़मींदार से एक महल ख़रीदा था। 1857 की क्रांति के दौरान इसी महल में ज़िला के कमिश्नर विल्यम टेलर का घर हुआ करता था जिसे बाद में दरभंगा महाराज ने अंग्रेजों से ख़रीद लिया था।
हालाँकि बांकीपुर सम्मेलन में पटना को बिहार-ओड़िसा की नयी राजधानी घोषित कर दिया गया लेकिन वर्ष 1917 तक सर्दी के दो तीन महीनों को छोड़कर वर्ष के बाक़ी समय के दौरान बिहार-ओड़िसा की राजधानी का सारा कार्य राँची से ही होता रहा था। इस दौरान जब पटना में राजधानी के लिए सभी ज़रूरी कार्यालय और कर्मचारी निवास का निर्माण हो रहा था तब उस दौरान सर्दी के दो तीन महीने के दौरान पटना में राजधानी का सारा कार्य अस्थाई टेंट लगाकर किया जाता था।

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बिहार-ओड़िसा की राजधानी के लिए पटना के जिस क्षेत्र को नयी प्रशासनिक केंद्र के रूप में सलेक्ट किया गया वो आज का चिड़ियाँ घर, वीर चंद पटेल मार्ग, गोल्फ़ क्लब, बेली रोड, हार्डिंग रोड और एयरपोर्ट के आसपास का क्षेत्र था। जबकि सरकारी कर्मचारियों के लिए आवास का निर्माण गर्दनीबाग में निर्माण करने का फ़ैसला लिया गया। सरकारी कार्यालयों, आवासों, पार्कों, सड़कों आदि के निर्माण के लिए भारतीय भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत भूमि का अधिग्रहण किया गया जिस दौरान कई विवाद भी हुए।
वर्ष 1913 के आख़री महीने में राज भवन के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ और 3 फ़रवरी 1916 को उसका उद्घाटन हुआ। इसी तरह 01 मार्च 1916 को उच्च न्यायालय और 1 अक्तूबर 1917 को पटना विश्व विद्यालय का भी उद्घाटन हो गया। ये तीनों संस्थाओं का कार्यक्षेत्र बिहार के साथ साथ ओड़िसा और नेपाल तक फैला हुआ था। वर्ष 1936 तक पटना शहर बिहार और ओड़िसा की समग्र राजधानी बनी रही।

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