HomeBrand BihariPoliticsइस बार अमित शाह से ज़्यादा झूठ बोल गए ललन सिंह

इस बार अमित शाह से ज़्यादा झूठ बोल गए ललन सिंह

5 नवम्बर 2023 को ललन सिंह जी पिछले एक सालों में पहली बार अमित शाह या विपक्ष के किसी भी बड़े नेता के बिहार दौरे पर दिए गए भाषण का जवाब देने के लिए विशेष तौर पर खुद प्रेस कॉन्फ़्रेन्स करते हैं। लेकिन प्रेस कॉन्फ़्रेन्स के दौरान ललन सिंह अमित शाह का झूठ पकड़ने के प्रयास में खुद बहुत कुछ झूठ बोल देते हैं। भाजपा के लिए बड़का झुट्ठा पार्टी का नारा देने वाले खुद झूठ बोलते नज़र आते हैं।

गृह मंत्री का बिहार दौरा: अमित शाह के दावे और ललन सिंह का जवाब |

अमित शाह का झूठ नम्बर एक: 

अमित शाह ने अपने भाषण में दावा किया कि उत्तर प्रदेश में शासन व्यवस्था बिहार से बेहतर है। जवाब में ललन सिंह ने अपराध के मामले में योगी मॉडल से बेहतर, बिहार को बता दिया और उसके लिए अमित शाह जी को NCRB का डेटा देखने को नसीहत देते हैं। वैसे न तो ललन सिंह ये बताए की वो किस NCRB के डेटा की बात कर रहे थे और न ही भाजपा ने उसका कोई जवाब दिया है।

लेकिन ये सब-कुछ बताने से पहले ये क्लीर कर देना चाहता हूँ कि पिछले दो सालों से यानी कि साल 2022-23 के दौरान या फिर साल 2021-22 के दौरान किस राज्य में कितना अपराध हुआ है उसका डेटा नहीं है, क्यूँकि NCRB ने 2021 के बाद से ही कोई डेटा जारी नहीं किया है।

इसलिए जो भी बताएँगे वो साल 2004 से लेकर 2020 तक का ही डेटा बताएँगे आपको और ये समझने का प्रयास करेंगे कि साल 2004 की तुलना में साल 2012 में कितना अपराध कम हुआ था, जब 2013 में पहली बार नीतीश कुमार NDA से अलग हुए थे और फिर 2017 में जब योगी मॉडल आया तो उसके बाद से किस राज्य में कितना अपराध कम हुआ है। 

NCRB की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में साल 2020 के दौरान प्रत्येक एक लाख जनसंख्या के ऊपर 41.9 हिंसक अपराध हुआ था जबकि इसी दौरान उत्तर प्रदेश में प्रत्येक एक लाख जनसंख्या के ऊपर मात्र 22.7 हिंसक अपराध हुआ था। NCRB के अनुसार हत्या, हत्या का प्रयास, रेप, अपहरण, चोरी, डकैती, और दंगा हिंसक अपराध की श्रेणी में आता है। साल 2020 में बिहार में कुल 51116 हिंसक अपराध हुए थे जबकि उत्तर प्रदेश में 51983 हिंसक अपराध हुए थे।

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यहाँ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि उत्तर प्रदेश की तुलना में बिहार की जनसंख्या लगभग आधी है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या 19 करोड़ 98 लाख मतलब कि लगभग 20 करोड़ थी जबकि बिहार की जनसंख्या 10 करोड़ 40 लाख थी। यानी की बिहार की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की कुल जनसख्या का आधा से थोड़ा सा ज़्यादा है जबकी साल 2020 में उत्तर प्रदेश और बिहार दोनो राज्यों में होने वाले हिंसक अपराधों की संख्या लगभग बराबर थी।

समाज में सबसे बड़ा अपराध माना जाता है हत्या को तो हत्या में ही देख लीजिए। साल 2020 के दौरान बिहार में कुल 3150 हत्याएँ हुई थी और उत्तर प्रदेश में कुल 3779 हत्याएँ हुई थी। मतलब उत्तर प्रदेश में बिहार की तुलना में मात्र 19.96 प्रतिशत अधिक हत्या हुआ था जबकि बिहार की तुलना में उत्तर प्रदेश की आबादी 91.94 प्रतिशत अधिक थी। यही हाल अन्य तरह के हिंसक अपराधों का भी है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में बिहार की तुलना में लगभग 33 प्रतिशत कम दंगे हुए है।

इसी तरह चोरी-डकैती भी उत्तर प्रदेश में बिहार की तुलना में कम हुई है। हालाँकि अपहरण के मामले में उत्तर प्रदेश की हालत ख़राब है। साल 2020 के दौरान उत्तर प्रदेश में कुल 12913 अपहरण हुए थे जबकी इसी दौरान बिहार में मात्र 7889 अपहरण हुए थे। इन सबके बीच अपराध का कम से कम एक क्षेत्र हैं जिसमें बिहार ने उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत अच्छा काम किया है।

महिला अपराध। साल 2020 के दौरान बिहार में मात्र 806 बलात्कार की घटनाएँ हुई थी लेकिन उत्तर प्रदेश में बिहार से तीन गुना से अधिक कुल 2769 बलात्कार की घटनाएँ हुई थी। साल 2020 के दौरान बिहार में महिलाओं के साथ अलग अलग तरह के कुल 15359 अपराध हुए थे जबकि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ कुल 49385 अपराध की घटनाएँ हुई थी। यानी कि बिहार कि तुलना में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ तीन गुना से अधिक अपराध हुआ था.

साल 2020 के दौरान। साल 2020 के दौरान पूरे बिहार में प्रति एक लाख महिला जनसंख्या पर 26.3 हिंसक महिला अपराध हुए थे जबकी उत्तर प्रदेश में इसी 2020 में प्रति एक लाख जनसंख्या के ऊपर 51.6 हिंसक महिला अपराध हुए थे। मतलब साफ़ है कि महिला अपराध को कंट्रोल करने के मामले में बिहार उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में हैं जबकी अन्य तरह के हिंसक अपराध को कंट्रोल करने में उत्तर प्रदेश में बिहार से बेहतर स्थिति में हैं।  

लेकिन अभी तक जो भी आँकड़े हमने बताया आपको बिहार और उत्तर प्रदेश में अपराध के मामले में उससे ये तो सिद्ध होता है कि साल 2020 में महिला अपराध को छोड़कर बाक़ी सभी तरह के हिंसक अपराधों में बिहार की हालत उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत ख़राब है। लेकिन इन आँकड़ों से ये सिद्ध नहीं होता है कि बिहार की तुलना में उत्तर प्रदेश की बेहतर हालत योगी आदित्यानाथ के मुख्यमंत्री बनने के कारण हुआ है या उत्तर प्रदेश पहले से ही अपराध को कंट्रोल करने में बिहार से बेहतर था।

ये जानने के लिए हमें 2017 का भी NCRB का डेटा को समझना पड़ेगा। साल 2017 का इसलिए क्यूँकि फ़रवरी 2017 में ही योगी आदित्यानाथ पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं लगातार आज तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। NCRB के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में उत्तर प्रदेश में कुल 56011 हिंसक महिला अपराध हुए थे जबकी बिहार में मात्रा 14711 हिंसक महिला अपराध हुए थे।

उत्तर प्रदेश में बिहार की तुलना में महिलाओं के साथ चार गुना अधिक हिंसक अपराध हुआ था और प्रति व्यक्ति अपराध के मामले में भी उत्तर प्रदेश में बिहार की तुलना में महिलाओं के साथ दो गुना अधिक हिंसक अपराध हुए थे। साल 2017 के दौरान बिहार में प्रति एक लाख महिला जनसंख्या पर 28.8 हिंसक महिला अपराध हुआ  था जबकी उत्तर प्रदेश में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 53.2 हिंसक महिला अपराध हुआ था।

मतलब 2017 से 2020 के दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार दोनो ने महिला अपराध को कंट्रोल किया है लेकिन बिहार की स्थिति इस मामले में उत्तर प्रदेश से कहीं अधिक बेहतर है। लेकिन अन्य हिंसक अपराधों के बारे में क्या कहेंगे? क्या 2017 से 2020 के बीच योगी जी के कार्यकाल के दौरान अन्य तरह के हिंसक अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश बिहार से बेहतर था ? 

जैसा कि हमने पहले भी बताया था कि साल 2020 में उत्तर प्रदेश में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 22.7 हिंसक अपराध हुए थे जबकी बिहार में इसी दौरान प्रति एक लाख जनसंख्या पर 41.9 हिंसक अपराध हुए थे मतलब उत्तर प्रदेश की तुलना में बिहार की स्थिति ख़राब थी, साल 2020 के दौरान। लेकिन साल 2017 में क्या स्थिति थी ? साल 2017 में उत्तर प्रदेश में 50,983 हिंसक अपराध हुए थे और बिहार में 50700 हिंसक अपराध हुए थे।

साल 2017 में उत्तर प्रदेश में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 29 हिंसक अपराध हुए थे जबकी बिहार में 48.1 अपराध हुए थे प्रति एक लाख जनसंख्या पर मतलब बिहार में उत्तर प्रदेश की तुलना में हिंसक अपराध का दर लगभग 60 प्रतिशत अधिक था।

साल 2017 और 2020 के दौरान बिहार और उत्तर प्रदेश दोनो जगह अपराध में मामूली वृद्धि हुई थी लेकिन कम से कम 2017 और 2020 के दौरान तो योगी मॉडल और नीतीश मॉडल दोनो के बीच कुछ ख़ास अंतर नहीं आया था। अब सवाल ये उठता है कि योगी मॉडल तो साल 2017 में आया था लेकिन नीतीश मॉडल तो साल 2005 में ही आ चुका था.

अमित शाह का झूठ नम्बर 2: 

ललन बाबू ने बोला कि मोदी सरकार द्वारा साल 2020 से ग़रीबों को दिया जा रहा अनाज मोदी सरकार के द्वारा नहीं बल्कि साल 2013 में UPA सरकार द्वारा लाई गई फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट के कारण मिल रहा है। ललन बाबू आप सांसद हैं कम से कम आपको तो संसदीय व्यवस्था का पता होना चाहिए। आपका कथन में आधा सच है और आधा झूठ भी।

सच ये है कि ग़रीबों को ये अनाज फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट क़ानून के कारण मिल रहा है और झूठ ये है कि ग़रीबों को ये अनाज फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट के तहत मिल रहा है। फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट एक क़ानून है जिसमें सिर्फ़ इतना लिखा हुआ है कि देश के अनाज गोदामों में अगर अतिरिक्त अनाज का भंडार है तो सरकार देश के गरीब को, जो अपना दो वक्त के भोजन का इंतज़ाम नहीं कर पा रहे हैं उन्हें सरकार सब्सिडी पर अनाज उपलब्ध करवाए।

उस ऐक्ट में ये नहीं लिखा हुआ है कि कितने प्रतिशत आबादी को किस आधार पर कितने रुपए प्रति किलो की दर से या फ़्री में अनाज उपलब्ध करवाए। इस फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट के तहत मोदी सरकार द्वारा दिए जा रहे अनाज से पहले भी कई योजना चल चुकी है। 

उदाहरण के लिए मनमोहन सरकार द्वारा द्वारा शुरू किया गया स्कूलों में मध्याहन भोजन की योजना इसी फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट के तहत शुरू किया गया था। इसी तरह मनमोहन सरकार द्वारा PDS से BPL को तीन रुपए प्रतीक किलो चावल, दो रुपए प्रति किलो गेहूं और एक रुपए किलो जवार-बाजरा जैसे मोटे अनाज बाटने की योजना भी इसी फ़ूड सिक्यरिटी ऐक्ट के तहत शुरू किया गया था।

मोदी सरकार ने सिर्फ़ इतना किया है कि जो मनमोहन सरकार ग़रीबों को सस्ते दाम पर चावल तीन रुपए प्रति किलो और गेहूं दो रुपए प्रति किलो के दाम पर बेचती थी, PDS के माध्यम से उसी अनाज के मोदी सरकार एक भी पैसे नहीं ले रही है। मतलब मनमोहन सरकार और मोदी सरकार की योजना में सिर्फ़ इतना अंतर है कि पाँच किलो अनाज के बदले मनमोहन सिंह दस से पंद्रह रुपए महीने का लेते थे और मोदी जी वो दस से पंद्रह रुपए नहीं लेते हैं।

मनमोहन सरकार और मोदी सरकार के अन्न योजना में एक और अंतर ये है कि मनमोहन सरकार के योजना में सभी परिवार को पच्चीस किलो अनाज मिलता था। मतलब आपके परिवार में दो सदस्य हो या दस आपको पच्चीस किलो अनाज ही मिलता था लेकिन अब मोदी सरकार के योजना में ये होता है कि अगर आपके परिवार में दो सदस्य हैं तो आपको दस किलो ही अनाज मिलेगा।

NFHS मतलब नैशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे 2021 के अनुसार भारत में एक परिवार में औसतन 4.44 सदस्य होते हैं। मतलब कि मनमोहन सिंह की सरकार नरेंद्र मोदी की सरकार से ज़्यादा अनाज ग़रीबों में बाट रही थी बस अंतर इतना था कि उस पच्चीस किलो अनाज के लिए मनमोहन सरकार आपसे पच्चीस से लेकर पच्छतर रुपए लेती थी और मोदी जी वो पच्चीस से पच्छतर रुपय नहीं लेती है। मतलब ग़रीबों को मोदी ई पच्चीस से पच्छत्तर रुपए माफ़ करते हैं प्रतिमाह।

मोदी सरकार आपको प्रति माह औसतन पचास रुपए नहीं ले रही है और उस पचास रुपए मासिक के एवज़ में हर रैली में ढोल पीटपीट के हल्ला करती है कि हम ग़रीबों को अनाज दे रहे हैं फ़्री में।

अमित शाह का झूठ संख्या 3:

ललन सिंह जी अमित शाह को नसीहत दे रहे थे कि अमित शाह अपने भाषण में ये बोलते कि JDU का प्रतिनिधि मंडल जातीय गणना के लिए प्रधानमंत्री से मिला था, बिहार के सदन में जातीय गणन आका प्रस्ताव दो बार पास हुआ था, भाजपा ने विरोध किया था जातीय गणना का।

अमित शाह या भाजपा ये से सब क्यूँ बोलेगी। ललन सिंह या JDU के नेता कहीं ये बोलेंगे कि जातीय गणना का भाजपा ने 2010 में संसद में समर्थन दिया था, ललन सिंह ये बताइएगा कि 10 मई 2010 को कांग्रेस सांसद भक्त चरण दास, ने लोकसभा में जातिगत जनगणना का विरोध करते हुए बोला था कि चुकी सरदार पटेल ने फ़रवरी 1950 में देश के संसद में कहा था कि देश में अब जातीय गणना नहीं होना चाहिए इसलिए अब जातीय गणना नहीं करना चाहिए।

ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएँगे जब भाजपा ने भी विरोध किया था जातिगत जनगणना का और कांग्रेस ने भी विरोध किया था जातिगत जनगणना का। लेकिन कुल मिलाकर भाजपा जातिगत जनगणना पर बैकफूट पर है और रहेगी भी फ़िलहाल। यही हाल भाजपा का महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में हैं नीतीश कुमार के सामने।   

अमित शाह का झूठ संख्या 4: 

अमित शाह के इस आरोप के जवाब में कि नीतीश कुमार भाजपा के कंधे पर बैठ के हमेशा मुख्यमंत्री बने हैं जबकि भाजपा को JDU से ज़्यादा सीटों पर जीत मिली थी विधानसभा चुनाव में, प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में ललन बाबू ज़िक्र कर रहे थे कि 2010 के चुनाव में भाजपा से ज़्यादा JDU के विधायक थे और भाजपा कमजोर थी इसलिए भाजपा को अपने कंधे पर लेकर नीतीश कुमार ने आगे बढ़ाया था उस समय। ललन सिंह आप भी तो ये बताते अपने प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में कि साल 2000 में जब नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब नीतीश कुमार की पार्टी को कितनी सीटों पर जीत मिली थी और भाजपा को कितनी सीट पर जीत मिली थी?

साल 2000 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को मात्र 34 सीट पर जीत मिली थी और भाजपा को 67 सीट पर जीत मिली थी लेकिन उसके बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया था।

ललन बाबू को ये भी बताना चाहिए था कि साल 2005 के चुनाव में जब दूसरी बार नीतीश कुमार CM बने थे तब सुशील मोदी जी ने NDA की तरफ़ से मुख्यमंत्री के लिए नीतीश कुमार का नाम का घोषणा किया था जबकि जॉर्ज फ़र्नांडिस और शरद यादव का इसपर विवाद था, कहते तो ये भी हैं कि जॉर्ज फ़र्नांडिस ने नीतीश कुमार के नाम का विरोध किया था।

आप ये भी बताते कि 2010 के चुनाव में भाजपा के जीत का प्रतिशत 89.21 प्रतिशत था जबकि JDU के जीत का प्रतिशत 81.56 प्रतिशत था। JDU को 115 सीट मिली क्यूँकि JDU 141 सीट पर चुनाव लड़ी थी और भाजपा को 91 सीटों पर जीत मात्र 102 सीट पर चुनाव लड़ी थी। 

अमित शाह का पाँचवाँ झूठ: 

ललन बाबू बोल रहे थे कि भाजपा ने मीडिया पर अपना इतना क़ब्ज़ा कर लिया है कि उनके और उनके पार्टी की खबर को कोई मीडिया वाला छापता ही नहीं है। इसमें कौन सी बड़ी बात है। इस देश में जब भी जिसके पास भी ताक़त रही है उसने मीडिया को कंट्रोल लिया है। जब बिहार में नीतीश कुमार ताकतवर थे तो नीतीश कुमार को भी एडिटर इन चीफ़ ओफ़ बिहार बोला जाता था, बिहार में उस दौर में नीतीश सरकार का मीडिया पर कितना कंट्रोल था

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