HomePoliticsस्वतंत्रता सेनानी और बिहार के दिग्गज नेता मुंगेरीलाल, कैसे बन गए हास्य...

स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के दिग्गज नेता मुंगेरीलाल, कैसे बन गए हास्य के पात्र ?

राजनेता मुंगेरीलाल:

भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाले मुंगेरीलाल बिहार के एक धाकड नेता व राजनीतिज्ञ हुआ करते थे। आज़ादी के बाद वर्ष 1952 में जब बिहार विधानसभा का पहला चुनाव हुआ तो पटना के नौबतपुर विधानसभा क्षेत्र से अवधेश नंदन सहाय को 12,274 वोटों से हराकर विधायक बनकर बिहार विधानसभा में पहुँचे तो वो बिहार कांग्रेस के एक धाकड राजनेता के रूप में अपना नाम दर्ज कर चुके थे। मुंगेरीलाल दुसाध नामक पिछड़ी जाति से सम्बंध रखते थे जो आज भी बिहार के अति-पिछड़ा जातियों की सूची में सूचीबद्ध है। उनकी जातीय पिछड़ापन उन्हें राजनीति में पिछाड नहीं पाई और कुछ ही वर्षों के बाद वो विधान विधान परिषद के लिए भी निर्वाचित हुए। 

1960 के दशक में जब बिहार की राजनीति में जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व पिछड़ी जातियों और पिछड़ी जातियों से सम्बंधित मुद्दों का प्रदेश राजनीति में प्रभाव बढ़ने लगा तो कांग्रेस की तरफ़ से मुंगेरीलाल का नाम प्रदेश की राजनीति में जाना-माना चेहरा के रूप उभरा। दिसम्बर 1971 में जब भोला पासवान (मुख्यमंत्री) के नेतृत्व की बिहार की कांग्रेस सरकार ने बिहार का पहला सात सदस्ये पिछड़ा आयोग बनाकर बिहार में पिछड़े वर्ग समाज का अध्ययन करने का फ़ैसला लिया तो आयोग की अध्यक्षता मुंगेरी लाल को सौंपी गई। 

29bhrjp105
चित्र: मुंगेरीलाल की 20वीं पुण्यतिथि पर पटना में आयोजित श्रिधांजलि सभा में श्रिधांजलि देते कांग्रेस के नेता।

इसे भी पढ़े: किसने माँगी थी किसानों के लिए 50% आरक्षण?

6 वर्षों के गहन अध्ययन के बाद मुंगेरीलाल आयोग ने जब फ़रवरी 1976 में बिहार सरकार को रिपोर्ट सौंपा और बिहार सरकार ने जब रिपोर्ट को सार्वजनिक किया तो बिहार का राजनीतिक महकमा निशब्द था। मुंगेरी लाल ने अपनी रिपोर्ट में सामाजिक, शैक्षणिक, और सरकारी नौकरियों व व्यापार-व्यवसाय में पिछड़ेपन को आधार बनाते हुए बिहार की 128 पिछड़ी जातियों की एक सूची तैयार किया।

बिहार के उन 128 पिछड़ी जातियों को मुंगेरीलाल ने दो भागों में बाँटा जिनमे से 34 जातियों को पिछड़ा जाति और 94 जातियों को अति-पिछड़ा जाति के रूप में वर्गीकृत किया। आयोग ने सूचीबद्ध पिछड़ी जातियों के लिए नौकरियों में 26% और शिक्षण संस्थानो में 24% आरक्षण देने की भी सिफ़ारिश की। मुंगेरीलाल के सुझावों में ‘पदोन्नत्ति में भी आरक्षण’ देने का सुझाव शामिल था। अपने सुझावों की संवैधानिक वैध्यता के लिए मुंगेरी लाल ने संविधान की धारा 15(4) और 16(4) का सहारा लिया। 

maxresdefault 2

हंसी का पात्र

लेकिन मुंगेरी लाल के अध्ययन और सिफ़ारिशों का बिहार के राजनीतिक गलियारों से लेकर गली-चौराहों तक इस कदर मज़ाक़ उड़ाया गया कि वर्ष 1989 में बिहार के ही राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके एक प्रसिद्ध निर्देशक, प्रकाश झा ने ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ शीर्षक से एक नाटक (धारावाहिक) का बनाकर दूरदर्शन पर प्रसारित भी कर दिया। ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ धारावाहिक पूरे उत्तर भारत में इतना लोकप्रिय हो गया कि मुंगेरीलाल सिर्फ़ बिहार नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लिए मज़ाक़ का पात्र बन गए।

यह मात्र संयोग नहीं है कि प्रकाश झा उसी बिहार के उच्च जाति से सम्बंध रखते हैं और उसी 1960-70 के दशक के दौरान पल-बढ़ रहे थे जिस दौर में बिहार में पिछड़े जाति केंद्रित राजनीति उफान लेने लगी थी। पिछड़ों की राजनीति के इस उफान का प्रतिरोध और प्रतिकार भी बिहार के उच्च जातियों की ओर उसी कटुता से हो रहा था और प्रकाश झा जैसे लोग उसी माहौल में पल-बढ़ रहे थे। आयोग के आठ सदस्यों में से एक मात्र सदस्य यमुना प्रसाद सिन्हा, जिन्होंने मुंगेरीलाल के सुझावों का विरोध किया था वह भी बिहार के उच्च जाति से ही सम्बंध रखते थे।

मुंगेरीलाल को जाने-अनजाने में हंसी का पात्र समझने वाले लोगों को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं होगा की उनके सुझावों के आधार पर आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री और जन-नायक कर्पुरी ठाकुर बिहार में पिछड़ी जातियों के साथ साथ महिलाओं और स्वर्ण जाति के ग़रीबों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान करेंगे। आज सिर्फ़ बिहार ही नहीं बल्कि पूरा हिंदुस्तान महिलाओं और उच्च जाति के ग़रीबों के लिए आरक्षण की ज़रूरत के साथ साथ जातिगत जनगणना को स्वीकार कर चुकी है। वहीं दूसरी तरफ़ प्रकाश झा ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ धारावाहिक का दूसरी कड़ी प्रसारित करने का ऐलान कर चुके हैं। (स्त्रोत)

मुंगेरीलाल आयोग के अध्ययन की संगिनता, सघनता और स्पष्टता का अंदाज़ा इससे ही लगा सकते हैं कि मुंगेरी लाल ने आज से पचास वर्ष पहले ही यह सूचना सार्वजनिक कर चुकी थी कि बिहार की सभी पिछड़े जातियों में से सर्वाधिक विकसित जाति यादव थी। मुंगेरी लाल की रिपोर्ट के अनुसार पूरे बिहार में पिछड़ी जातियों के विद्यालय जाने वाले सभी छात्रों की कुल संख्या का लगभग एक तिहाई हिस्सा अकेले यादव जाति का था जबकि वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार बिहार में यादव जाति की जनसंख्या बिहार की कुल जनसंख्या का मात्र 11% था। दूसरी तरफ़ अंसारी जाति (मुस्लिम) से सम्बंध रखने वाले छात्रों का अनुपात 0.2% भी नहीं था।

HTH Logo
Hunt The Haunted के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (Link
Hunt The Haunted के Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)
Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
RELATED ARTICLES

Most Popular

Current Affairs