फ़िल्म:
1920 और 1930 का दशक विश्व इतिहास में पर्वतारोहण के लिए जाना जाता है। इसी कालखंड के दौरान दुनियाँ के कुछ सर्वाधिक ऊँचे पर्वत शिखर तक पहुँचने का कई बार सफल या विफ़ल प्रयास किया गया। इन सफल और विफ़ल दोनो तरह के प्रयासों के अनुभव को संजोने की प्रक्रिया भी इस दौर की एक अन्य खाशियत रही। किताबों और शोध लेखों के अलावा इस दौर में चलचित्र (फ़िल्म) भी बनी। इन फ़िल्मों में Andrew Marton द्वारा निर्देशित वर्ष 1935 की जर्मन भाषा की फ़िल्म ‘Demon of the Himalayas‘ अपने तरीक़े की पहली और आख़री फ़िल्म है जिसे 21 हज़ार फुट की ऊँचाई पर फ़िल्माया गया हो।
94 मिनट लम्बी इस फ़िल्म का असली नाम (जर्मन) Der Dämon des Himalaya है। इसकी कहानी अलग-अलग देश से सम्बंध रखने वाले पर्वतारोहियों के एक समूह की है जो हिमालय की चोटी पर चढ़ाई करने आते है। समूह में मुख्यतः दो तरह के लोग थे: एक स्थानिये विश्वास, प्रथा, परम्परा, प्रेतात्माओं व धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए हिमालय की चढ़ाई करना चाहते थे और दूसरे उन मान्यताओं का विरोध और पश्चिम के तर्किकता, तकनीक, विज्ञान के सहारे चढ़ाई करना चाहते थे। इस फ़िल्म के केंद्र में नक़ाब पहने इन्हीं तिब्बती प्रेतात्माओं की कहानी है।
फ़िल्म में एक जर्मन किरदार डाक्टर नोर्मन हैं जो पर्वतारोहण के दौरान मुखौटे वाले स्थानिये प्रेतात्माओं की मान्यता का सम्मान करते हैं। जबकि पर्वतारोहण समूह के मुखिया प्रोफ़ेसर विल्ले समेत अन्य सदस्य स्थानिये मान्यताओं का मज़ाक़ उड़ाते हैं और पश्चमी तर्किकता का हवाला देते हैं। दरअसल स्थानिये मान्यता के अनुसार हिमालय के लगभग सभी प्रमुख पर्वत शिखरों पर कोई न कोई देवता का निवास स्थान होता है और इसलिए वहाँ तक पहुँचने के लिए ईश्वर की सहमती ज़रूरी होती है।
जर्मन पर्वतारोहण:
दरअसल वर्ष 1929 में जर्मनी अल्पाइन क्लब की टीम दुनियाँ की सर्वाधिक दुर्गम पर्वत शिखर, कंचनजंगा, पर पर्वतारोहण का प्रयास किया। असफलता के बावजूद जर्मन पर्वतारोहियों की पूरे विश्व में प्रशंसा हुई। उत्साहित होकर जर्मन पर्वतारोहियों अगले ही वर्ष कंचनजंगा शिखर तक पहुँचने का दुबारा प्रयास किया। इस बार पर्वतारोहण के दौरान एक जर्मन पर्वतारोही Hermann Schaller की मृत्यु हो गई। वर्ष 1934 में हिट्लर की सरकार द्वारा प्रायोजित हिमालय पर्वतारोहण मिशन के दौरान चार जर्मन पर्वतारोहीयों की मृत्यु हो गई। इस दुर्घटना से पुरा जर्मनी शोकाकुल हो गया।
इसी शोकाकुल जर्मनी के दौर में ‘Demon of the Himalayas‘ फ़िल्म बनकर तैयार हुई जिसे हिट्लर की सरकार ने पुरा समर्थन दिया। हलंकि इस फ़िल्म के छः मुख्य किरेदारों में से एक मात्र जर्मन मूल का था जबकि फ़िल्म के निर्देशक भी जर्मन मूल के नहीं थे। इसके बावजूद इस फ़िल्म को पुरी दुनियाँ के सामने इस तरह से प्रस्तुत किया गया मानो यह फ़िल्म पर्वतारोहण, और उसके दौरान पर्वतारोहियों के त्याग, बलिदान, साहस, समर्पण और अंतिम तक लड़ने के जर्मन जज़्बे का प्रतीक हो।
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फ़िल्म में साम्राज्यवाद:
फ़िल्म के जर्मन किरदार डाक्टर नोर्मन को नायक की तरह प्रस्तुत किया गया जिनके अंदर साहस, समर्पण और अपने कार्य के प्रति तत्परता के साथ-साथ स्थानिये एशियाई समाज, संस्कृति और मान्यताओं के प्रति सम्मान भी था। इस फ़िल्म का इस्तेमाल हिट्लर सरकार ने एशिया में अपने उपनिवेशिक पैर जमाने के लिए भी किया। फ़िल्म के ज़रिए हिट्लर जर्मन साम्राज्यवाद को एशिया के लिए बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसमें ब्रिटिश-फ़्रांसीसी साम्राज्यवाद के ऊपर ये आरोप लगाया गया कि एशिया पर ब्रिटिश-फ़्रांसीसी साम्राज्यवादी सरकार एशियाई संस्कृति का सम्मान नहीं करती है।
इस तरह 1930 का दशक आते आते पर्वतारोहण साम्राज्यवाद/उपनिवेशवाद का नया अखाड़ा के रूप में उभर चुका था जिसमें धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, जापान, इटली) और सम्बंध शक्तियाँ (ब्रिटिश, फ़्रांस, रुस, अमेरिका) आपस में बेहतर पर्वतारोही देश का तमग़ा पाने के लिए शितयुद्ध में भिड़े हुए थे। उनके बिच एशिया और आफ़्रिका के ऊपर अपना अपना साम्राज्य फैलाने/बचाने के लिए भी रोज़ खिचतान हो रही थी। धुरी शक्तियाँ और सम्बंध शक्तियाँ दोनो अपने आप को एशिया और आफ़्रिका के सामने बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे।

फ़िल्म में हिंदुस्तान:
हिट्लर का तिब्बत के ऊपर विशेष ध्यान था क्यूँकि तिब्बत एकमात्र वो स्थान था जहाँ सम्बंध शक्तियाँ (Allied Powers) की साम्राज्यवादी प्रभाव कमजोर थी जबकि Allied Powers का दो महत्वपूर्ण उपनिवेश (हिंदुस्तान और चीन) तिब्बत के साथ सीमा साझा करता था। हिट्लर के लिए चीन और हिंदुस्तान पर हमला करने के लिए तिब्बत से बेहतर कोई और स्थान नहीं हो सकता था। यही कारण था कि हिट्लर सरकार ने कई बार पर्वतारोहियों की गोपनिए समूह भी हिमालय में शोध के लिए भेजा था (लिंक)।
द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद वर्ष 1952 में इस फ़िल्म का अंग्रेज़ी रूपांतरण Storm Over Tibet के नाम से हुआ। 1950 और 1960 का दशक फिर से पर्वतारोहण के इतिहास में सुनहरा होने लगा जब माउंट एवेरेस्ट समेत विश्व की कई सर्वाधिक पर्वत चोटियों पर पहली बार सफल चढ़ाई की गई। पर इस बार पर्वतारोहण का हीरो जर्मनी नहीं बल्कि ब्रिटिश और अमरीकी थे।
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