HomeVisual ArtsPhoto Stories 4: भांग-गांजा-चरस को बचाने की लड़ाई (1893-94)

Photo Stories 4: भांग-गांजा-चरस को बचाने की लड़ाई (1893-94)

हिंदुस्तान में भांग-गांजा-चरस के उत्पादन, व्यापार और उसके उपभोग पर वर्ष 1893-94 में ब्रिटिश सरकार द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई जो दुनियाँ में अपने आप में ऐसी भांग-गाँजे के प्रभावों को अध्ययन करने वाली पहली रिपोर्ट थी।

इंग्लैंड में 1880 के दशक से ही भांग-गाँजे-चरस को प्रतिबंधित करने के लिए मुहिम तेज हो रही थी। ब्रिटिश पार्लमेंट में भारत में बढ़ते पागलखानो को गाँजे-चरस से जोड़ा गया और उसपर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई। हिंदुस्तान ब्रिटिश शासन के लिए लैब की तरह था जहां कोई भी नए क़ानून के ऊपर प्रयोग हुआ करता था। जैसे पुलिस व्यवस्था पहले हिंदुस्तान में शुरू किया गया और फिर सफल होने पर इंग्लैंड में लागू किया गया। इसी प्रकार गाँजे-चरस से सम्बंधित नीती का प्रयोग पहले भारत में होना था। 

901DF3D2 CE4A 4641 9BD3 AAF290CEC3A1 1 201 a 1
चित्र 1: खानदेश में विधिवत तौर पर व्यापारिक उद्देश्य के लिए आधुनिक तरीक़े से क्यारियों में गाँजे की खेति करते स्थानिये किसान। विधिवत तौर पर आधुनिक ढंग से बाग़वानी के रूप में गाँजे की खेति खानदेश, अहमदनगर और हुगली जैसे कुछ स्थानो पर होती थी और यही कारण है कि रिपोर्ट में शामिल ज़्यादातर फ़ोटो इन्हीं स्थानो का है। पहाड़ों में गाँजे-भांग की ज़्यादातर खेति जंगलों में स्वतः होती थी।

“अंग्रेजों ने भांग, गांजा, चरस के उत्पादन और व्यापार पर प्रतिबंध नहीं बल्कि कर लगाया”

390989F1 F16A 4E3B A13C 94171D8B4030 1 201 a 1
चित्र 2: दाईं दिशा का पेड़ नर पौद्धा है जिससे भांग बनता है जबकि बाई दिशा का पेड़ मादा है जिससे गांजा बनता है। खानदेश का यह किसान गाँजे और भांग के पेड़ का अंतर दिखा रहा है।

इसी तर्ज़ पर वर्ष 1893 में Indian Hemp Drugs Commission की स्थापना की गई जिसने एक वर्ष के अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट 1894 में दिया। पूरे हिंदुस्तान के 30 शहरों में 86 बैठकें की गई जिसमें 1193 लोगों के साथ पर्सनल इंटर्व्यू और ग्रूप डिस्कशन किए गए। इनमे पगलखाने के रोगी, चिकित्सक, स्थानीय अधिकारी, ज़मींदार, योगी-साधु, किसान, व्यापारी, आदि सभी शामिल थे। 

FEE62E97 192E 4E5E 9066 E1CEEE3D90B2 1 201 a
चित्र 3: खानदेश में व्यवस्थित तौर पर गाँजे की खेति होती थी। चित्र में गाँजे की खेति-बाग़वानी करने वाले किसान अपने खेद के सामने खड़े हैं।

इसे भी पढ़े: कैसे इतिहास में पहाड़ी काफल फल का मैदानो तक निर्यात होता था?

E26E87B3 501A 4A69 8399 D947032746D4 1 201 a 1
चित्र 4: हुगली में गांजा तैयार करनी की प्रक्रिया के दौरान गाँजे को एक एक कर पैर से दबाकर उन्हें किसी भारी चीज़ से हफ़्ते भर के लिए दबाकर रख दिया जाता था। इस दौरान नमी बनाए रखने के लिए उसपर पानी का छिड़काव भी किया जाता था।

इस समिति के सात सदस्यों में से तीन भारतीय भी थे। रिपोर्ट के अनुसार ख़राब स्वास्थ्य के कारण तीनो भारतीय सदस्य बहुत कम बैठक में हिस्सा ले पाए। औसतन एक ब्रिटिश सदस्य ने 86 बैठक में हिस्सा लिया जबकि भारतीय सदस्य लाल निहाल चंद मात्र पाँच बैठक में हिस्सा ले पाए थे। इस समिति का हेड्क्वॉर्टर कुछ दिनो के लिए (7-24 अक्तूबर 1893) शिमला भी रहा था। इसके अलावा कमिशन का एक सदस्य अगस्त 1893 के आख़री हफ़्ते में लेफ़्टिनेंट गवर्नर से रिपोर्ट के सम्बंध में सारे दस्तावेज और साक्ष्य जमा करने नैनीताल भी आया था।

485A377B 0B2D 4B1F 8F49 96B86B92DD35 1 201 a 1
चित्र 5: गांजा बनाने की प्रक्रिया के दौरान अहमदनगर में सामूहिक रूप से गांजा को ज़मीन पर दबाया जाता था। ये एक पर्व जैसा होता था जिसमें लोग संगीतमय होकर नाचते-गाते थे। चित्र में महिलाओं को गौर से देखिए।

इस सम्बंध में जानकारी इकट्ठा करने के लिए पहाड़ों में जिन लोगों से समिति द्वारा सम्पर्क किया गया उनमे से दो मोरादाबाद ज़िले के ग़ैर-पहाड़ी आला अधिकारी थे जबकि दो पहाड़ियों में पंडित गंगा दत्त उप्रेती और धर्मा नंद जोशी शामिल थे। चार में से तीन सदस्यों ने माना कि पहाड़ों में इन पौधों का उत्पादन बढ़ रहा था जबकि जोशी जी इसके विपरीत मत देते हैं। पहाड़ों में इसका उत्पादन मुख्यतः चाँदपुर, व देवलगढ़, और बारहस्यून, तल्ला व मल्ला सालन, चौंधकोट, और बधान पट्टी में सीमित मात्रा में होती थी। रिपोर्ट के अनुसार इनका उत्पादन करने वाले ज़्यादातर लोग डोम या ख़सिया जाति से सम्बंध रखते थे।

2268A70C 75D0 47E3 83E2 261B785EAA70 1 201 a 1
चित्र 6: खानदेश में भांग, गांजा और चरस की दुकान। उस दौर में ये सभी मादक पदार्थ खुलेआम बाज़ार में बिकती थी।

पहाड़ों में भांग ज़्यादातर जंगलो में स्वतः उग ज़ाया करता था और यहाँ विधिवत तौर पर इसकी खेति बहुत कम होती थी। यहाँ गाँजे या भांग के उपभोग का प्रचलन न के बराबर था जबकि चरस को उपभोग पिछले कुछ दशक (1880s) से लगातार बढ़ रहा था। एक मत के अनुसार ये इसलिए बढ़ रहा था क्यूँकि कुछ दशक से स्थानीय शराब के उत्पादन पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा था। कपड़े बनाने के लिए भांग के पेड़ों का उत्पादन विस्तृत रूप से प्रचलन में था। काशीपुर में इसकी फ़ैक्टरी खुलने के बाद उत्पादन में तेज़ी आइ।

3AC787D0 6CF2 4214 AD7A 039DE4C1D67C 1 201 a 1
चित्र 7: खानदेश में भांग घोटते लोग। इस चित्र की तुलना चित्र संख्या 10 से कीजिए।

पहाड़ों में अंग्रेज़ी शासन प्रारम्भ होने से पहले भांग, गांजा या चरस के उत्पादन या उपभोग पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं था। वर्ष 1815 के बाद जब उत्तराखंड के पहाड़ों अंग्रेज़ी शासन प्रारम्भ हुआ तो बाक़ी हिंदुस्तान की तरह यहाँ भी 1798 का भांग गांजा चरस क़ानून के तहत इनके उत्पादन और उपभोग पर कर लगाया जाने लगा था। यह कर कम्पनी सरकार के बढ़ते घाटे के कारण लगाया गया था।

7C94AF6E E1ED 4B6E AE4A 037A0CCF68E8 1 201 a 1
चित्र 8: अहमदनगर में गांजा पीते लोगों का समूह। दूसरी पंक्ति में बैठे बच्चे पर गौर कीजिए और उसकी उमर का अंदाज़ा लगाइए।

सात वॉल्यूम के तीन हज़ार पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची कि हिंदुस्तान में भांग, गांजा या चरस के सीमित इस्तेमाल से लोगों के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। समिति ने सरकार को इनके उत्पादन या उपभोग पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास से सामाजिक अराजकता फैलने की सम्भावना जताई लेकिन साथ में इनके उत्पादन और उपभोग पर कर लगाने का सलाह दिया ताकि इसके उपभोग और उत्पादन को सीमित रखा जा सके। 

E2F32E83 FF73 4BF4 BBF2 90F16D1CF051 1 201 a 1
चित्र 9: खानदेश में गांजा पीते साधु-फ़क़ीर का समूह। प्रतिबंध के बावजूद आज भी हिंदुस्तान में साधु-फ़क़ीर किसी भी चौराहे पर खुलेआम भांग-गांजा-चरस का सेवन करते दिख जाएँगे।

इसे भी पढ़े: क्यों गाँधी जी ने विरोध किया था महामारी के ख़िलाफ़ टीकाकरण का?

वर्ष 1873 से 1893 के बीच अंग्रेज़ी सरकार को भांग, गांजा और चरस से लगभग एक करोड़ रुपए का आय हुआ था। उन्निसवी सदी के आख़री दशकों में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था मंदी से गुजर रही थी। ऐसे में भांग-गांजा-चरस पर हिंदुस्तान में कर लगाना ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी था। 1894 के बाद भारतीय रजवाड़ों में भी इन मादक पदार्थों पर कर लगाया गया।

7A74DD05 61D6 4D7F AF54 74A22D49EFD2 1 201 a 1
चित्र 10: खानदेश में गांजा पीते लोगों का समूह। इस चित्र की तुलना चित्र संख्या 7 से कीजिए। दोनो चित्र एक ही स्थान का है क्यूँकि चित्र के पीछे का मकान एक ही है। इसका ये अर्थ है कि कमिशन रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया के दौरान लोगों को एक स्थान (कार्यालय या सरकारी आवास) पर इकट्ठा कर उनसे पूछताछ करती थी और उनका फ़ोटो उतारती थी।

वर्ष 1985 में Narcotics and Psychotropic Substances Act हिंदुस्तान में भांग, गांजा और चरस के उत्पादन और उपभोग पर पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया। जब से 2018 में अमेरिका में भांग-गाँजे-चरस की खेति, व्यापार और उपभोग पर प्रतिबंध हटाया गया है हिंदुस्तान में भी कई राज्य धीरे धीरे इनके खेति को ग़ैर-नशा उपोयोगों के लिए प्रोत्साहित कर रही है। उत्तरखंड ने वर्ष 2015 में ही भांग की खेति के लिए लाइसेंस देना प्रारम्भ कर चुकी है।

Sources: All images were taken from “Report of the Indian Hemp Drugs Commission” published in 1894.

Hunt The Haunted के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (Link
Hunt The Haunted के Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)

Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
RELATED ARTICLES

3 COMMENTS

  1. Beautiful and aspiring work for the hemp in uttarakhand our ancestors used it for spices,sacks ,and for other uses necessary for the some vegetables.
    Great collection and study

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Current Affairs