गंगा के उत्तर में हाजीपुर ज़िला में एक गाँव हुआ करता था, नाम था बालूचर। क़रीब एक सौ साल पहले तक इस गाँव का बहुत भोकाल था। यहाँ का गाँजा और गंजेडी दोनो इंटरनैशनल ब्रांड के थे। इस गाँव का गाँजा सिर्फ़ हाजीपुर में फ़ेमस नहीं था, या सिर्फ़ पटना या सिर्फ़ बिहार में फ़ेमस नहीं था। यह गाँजा पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध था। इंग्लंड से लेकर साउथ अफ़्रीका और वेस्ट इंडीज़ तक इसका निर्यात होता था। उस दौर में पूरे हिंदुस्तान में तीन वेरायटी का गाँजा सबसे ज़्यादा पॉप्युलर हुआ करता था और बालूचर वेरायटी उनमें से सबसे ज़्यादा अच्छा माना जाता था। इस गाँजे को बालूचर गाँजा ही बोला जाता था। (वॉल्यूम 5, 143)
यह कहानी है बालूचर गाँव के गाँजे का ब्रिटेन की संसद से लेकर अफ़्रीका और दक्षिण अमेरिका तक का सफ़र। इस लेख को हमरे यूट्यूब चैनल पर देखने के लिए इसे क्लिक करें: https://www.youtube.com/watch?v=c9wr7auZS_g
सिर्फ़ हाजीपुर का बालूचूर ही नहीं पूरा पटना, भागलपुर, और मुंगेर का गाँजा पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्द था। लेकिन बोलते थे इन सबको को बालूचर ही। साल 1893-94 के दौरान अकेले पटना में कुल 1496 मन गाँजा पैदा हुआ था जो पूरे बंगाल प्राविन्स में सबसे ज़्यादा था। अकेले पटना में जितना गाँजा पैदा हुआ था उतना पूरे सेंट्रल प्राविन्स (वॉल्यूम 6) में न हुआ था। इस 1496 मन में से 675 मन निर्यात हुआ था और बाक़ी का बचा हुआ 821 मन पटना के गंजेडियों ने ही धुएँ में उड़ा डाला।
गाँजा पैदा करने के मामले पटना के बाद कलकत्ता दूसरे नम्बर पर था। साल 1893-94 में कलकत्ता में 955 मन गाँजा पैदा किया गया था। इस 955 मन में से एक भी ग्राम निर्यात नहीं हुआ था। यानी कि सारा का सारा कलकत्ता के गंजेडियों ने फूंक डाला। यानी की उत्पादन और निर्यात दोनो मामले में पटना पहले स्थान पर था लेकिन फूंकने के मामले में कलकत्ता पहले स्थान पर था। ध्यान रखिएगा उस समय कलकत्ता पूरे हिंदुस्तान की राजधानी थी और बिहार तो अलग राज्य बना भी नहीं था।
गाँजा निर्यात करने के मामले में कीर्तिमान सिर्फ़ पटना ही नहीं बना रहा था, भागलपुर भी कोई पीछे नहीं था। पूरे बंगाल प्राविन्स में गाँजा निर्यात करने के मामले में भागलपुर दूसरे नम्बर पर था, जबकि बांग्लादेश का राजशाही ज़िला तीसरे नम्बर पर था। भागलपुर से उस साल मात्र 61 मन और राजशाही में मात्र 5 मन निर्यात हुआ था। इस गंजेडीपन में छोटानागपुर सबसे पीछे रह गया जहां मात्र 150 मन फूंका गया।
जुलाई 1893 में जब ब्रिटिश संसद ने भारत के गंजेडियों पर अंकुश लगाने के लिए भारत में गाँजा के उत्पादन और उपभोग के अलग अलग पहलुओं पर एक रिपोर्ट बनाने के लिए आयोग का गठन किया गया। उस आयोग के रिपोर्ट में यह बात सामने आयी कि पटना में गाँजे का सबसे ज़्यादा उत्पादन होने के बावजूद खपत सबसे ज़्यादा कलकत्ता इसलिए हो रहा था क्यूँकि कलकत्ता में सैनिक और कुली वर्ग के लोग सबसे ज़्यादा रहते हैं और गाँजा का इस्तेमाल भी यही लोग सबसे ज़्यादा करते हैं।
गाँजा का खपत:
बिहार की बात हो रही हो, और जाति का सवाल न आए तो ज़्यादती हो जाएगी। हमने आपके लिए गंजेडियों में भी जाति ढूँढ लायी है। तो आँकड़े कुछ यूँ है कि पूरे बंगाल प्राविन्स में सबसे ज़्यादा गाँजा पीने वाली जाति यादव की थी जिसमें 11 प्रतिशत लोग गंजेडी थे और 18 प्रतिशत भंगेडी थे, यानी दबा के भांग खाते थे।
कहार दूसरे नम्बर पर थे जिनमे 10 प्रतिशत गाँजा और 14.9 प्रतिशत भांग पीते थे। उसके बाद कुर्मी में 9 प्रतिशत गंजेडी और 7 प्रतिशत भंगेडी, ब्राह्मण (7, 10) मुस्लिम (7, 2.5) और भूमीहार (2,9) जबकि मुसहर (.8, 00) और कुम्हार (0.1, 00). मिला जुला के यही कहा जा सकता है कि बिहार का अगड़ा समाज गंजेडी कम भंगेडी ज़्यादा था और बिहार का पिछड़ा समाज भंगेडी कम और गंजेडी जयदा था। और दलितों को तो जूठन भी मिल जाए तो, ‘“अहो भाग्य”(Vol 4, caste, 139)
साल 1893-94 में भागलपुर में प्रति दस हज़ार जनसंख्या पर एक मन गाँजा का खपत था जबकि पटना में प्रति 19 हज़ार जनसंख्या पर एक मन का खपत था। कलकत्ता में तो प्रति नौ हज़ार जनसंख्या पर प्रति वर्ष एक मन का खपत होता था। पटना की तुलना में कलकत्ता में अधिक गाँजा खपत होने के दो कारण थे। एक था कलकत्ता में सैनिकों की अधिक संख्या और दूसरा मज़दूर, कुली की अधिक संख्या। (Vol १, १३१)
पटना और कलकत्ता दोनो जगह गाँजा का दाम भी बहुत सस्ता हुआ करता था। पटना में साल 1893-94 में एक शेर गाँजा की क़ीमत 12 रुपए था जबकि मुज़फ़्फ़रपुर में 15-18 रुपए, बर्द्धमान में 20 रुपए, भागलपुर में 13-20 रुपए, और पूर्णिया में 14-20 रुपय तक था (Vol 3,)
पटना में गाँजा सस्ता होने के साथ साथ अच्छी क्वालिटी का भी मिलता था। इस सोने पर सुहागा का सबसे बड़ा कारण यह था कि पटना के आस-पास गाँजे का पैदावार खूब होता था। दरअसल आरा-पटना आते-आते गंगा नदी दोनो तरफ़ फैल जाती है और लम्बा-चौड़ा गंगा का तटीय मैदान बनाती है। जब नदी का पानी उतरता था यानी की कम होता था तो इन तटों पर गाँजा के बीज छींट दिए जाते थे। ऐसे ही गाँजा लखनऊ और पंजाब में भी उगता था, नदी के तट पर। (Vol 5, 154)

जो पेड़ नदी की धारा के ज़्यादा नज़दीक होते थे उन्हें पकने का समय नहीं मिलता था क्यूँकि वहाँ पानी चढ़ता था जल्दी लेकिन उतरता था देर से। इसलिए यहाँ के गाँजा को पकने का समय नहीं मिलता था। इन अधपका पेड़ों से भांग और चरस बनाया जाता था।
दूसरी तरफ़ जो पेड़ नदीतट से दूर होते थे वहाँ बेहतर क्वालिटी का गाँजा उगता था क्यूँकि नदी से दूर वाली ज़मीन पर पेड़ को पकने के लिए अच्छा ख़ासा समय मिल जाता था। आज भले ही पटना के आस पास चरस नहीं बनता हो लेकिन एक सौ साल पहले तक खूब बनता भी था और पटना में चरसी लोग भी खूब मिल जाते थे, घूमते फिरते।
यह बालूचर गाँजा बनाने की विधि भी बड़ा रोचक था. पहले गाँजे के फूल को पेड़ से तोड़ा जाता था, फिर उसे पत्थर से दबाकर छोड़ दिया जाता है। दबे हुए फूल को किसी सतह पर रखकर उसके ऊपर परत दर अकौना का पत्ता रखा जाता था। और फिर उसे भारी पत्थर से दबाकर छोड़ दिया जाता था। अकौना को मंदार’, आक, ‘अर्क’ और अकौआ भी कहते हैं। अकौना के पत्ते की तासीर गर्म होती है इसलिए गाँजे के रंग में पीलापन आ जाता था बालू (रेत) के जैसा और इसी कारण से इसका नाम बालूचर हो गया था। (Vol 5, 312)
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उस समय के क़ानून के हिसाब से तो गाँजा बनाने और बेचने दोनो के लिए लाइसेन्स की ज़रूरत होती थी। 1891-92 में पूरे उत्तर भारत में सर्वाधिक गाँजा-भांग बेचने का लाइसेन्स पटना में ही था। पटना में कुल 73 लाइसेन्सधारी गाँजा के व्यापारी थे। गंजेडियों के लिए लाइसेन्स देने के मामले में बंगाल का बर्द्धमान ज़िला 72 लाइसेन्स के साथ और दूसरे नम्बर पर था। गंजेडीपन में अव्वल कलकत्ता, 67 लाइसेन्स के साथ तीसरे और भागलपुर मात्र 9 लाइसेन्स के साथ चौथे, ओड़िसा पाँचवें, और ढाका 6 लाइसेन्स के साथ छठे पायदान पर था।
ये सब जो बातें मैं आपको बता रहा हूँ उसका ज़्यादातर हिस्सा भारतीय गाँजा आयोग से लिया गया है। चौंकिए मत जब पिछड़ा और अति-पिछड़ा आयोग हो सकता है, तो गाँजा आयोग क्यूँ नहीं हो सकता है? और हिंदुस्तान के गंजेडियों को तो गर्व करना चाहिए कि पूरी दुनियाँ का पहला गाँजा आयोग उन्ही के हिंदुस्तान में लिखा गया था, पूरे 3200 पेज से ज़्यादा का यह रिपोर्ट आठ खंडो में प्रकाशित हुआ। इस रिपोर्ट पर सिर्फ़ हिंदुस्तान में बवाल नहीं मचा था। हिंदुस्तान से लेकर ब्रिटिश पार्लमेंट तक इसके ऊपर जमके भसड मचा था।
हिंदुस्तान से लेकर ब्रिटेन तक मची इस भसड की कहानी आपको हम हमारी बपौती के अगले एपिसोड में बताएँगे। फ़िलहाल बस इतना जान लीजिए कि इस भारतीय गाँजा आयोग की रिपोर्ट लीक होकर ब्रिटिश संसद पहुँचने से पहले टाइम्स पत्रिका तक में छप गया था। पटना के गंजेडियों के द्वारा लगाई गई ये आग दुनियाँ के किस किस कोने में कितना उत्पात मचाया था ये हम आपको अगले एपिसोड में बताएँगे।

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