बिहार में दो Vande-Bharat चलने के बावजूद ट्रेन को लेट करने में बिहार, बिहार में स्थित रेल्वे स्टेशन और बिहार में चलने वाली ट्रेनों का प्रदर्शन सबसे ख़राब है। बिहार का ही ‘इस्लामपुर पटना राजेंद्र नगर इक्स्प्रेस’ पूरे हिंदुस्तान का सबसे कम गति से चलने वाला ट्रेन है जबकि दिल्ली से वाराणसी चलने वाली Vande-Bharat ट्रेन हिंदुस्तान का सबसे अधिक स्पीड से चलने वाला ट्रेन है जो औसत रूप से लगभग 97 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चल रही है। उत्तर प्रदेश का टुंडला रेल्वे स्टेशन भारत का वो रेल्वे स्टेशन जहां ट्रेनें सबसे लेट पहुँचती है जबकि बिहार का आरा और बक्सर स्टेशन पहले और दूसरे स्थान पर है।
Vande-Bharat और गतिमान इक्स्प्रेस जैसी ट्रेनों के चलने के बावजूद न सिर्फ़ बिहार में बल्कि पूरे हिंदुस्तान में यात्री ट्रेनों की औसत गति पिछले कुछ वर्षों के दौरान घटी है और ट्रेनों का औसत विलम्ब समय तेज़ी से बढ़ा है। इसके अलावा भारतीय रेल पर और भी कई आरोप हैं। जैसे कि AC डब्बों की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है जबकि सामान्य डब्बों (जेनरल व स्लीपर) और जनसाधारण जैसी सामान्य ट्रेनों की संख्या लगातार कम किया गया है।
दस सालों का सफ़र:
साल 2021-22 के दौरान भारत में पैसेंजर ट्रेन का औसत गति मात्र 35 किलोमीटर प्रति घंटा रहा जबकि इक्स्प्रेस, राजधानी, शताब्दी, तेजस, सुविधा और Vande-Bharat जैसी ट्रेनों की औसत स्पीड मात्र 51 किलोमीटर प्रति घंटा रहा। साल 2013-14 में भारत में पैसेंजर ट्रेन की औसत गति 44.8 किलोमीटर प्रति घंटा थी जबकि मेल इक्स्प्रेस की औसत गति 50.6 किलोमीटर प्रति घंटा थी।
मतलब कि पिछले दस सालों के दौरान Vande-Bharat जैसी तेज गति से चलने वाली ट्रेनों के चलने और देश में लगभग पाँच सौ ट्रेनों की स्पीड लिमिट बढ़ाने के बावजूद भारतीय रेल के यात्री रेलों में पैसेंजर ट्रेन की औसत गति लगभग दस किलोमीटर प्रति घंटा की दर से कम हुई है और इक्स्प्रेस/मेल ट्रेनों की औसत गति न के बराबर बढ़ी है, मात्र 0.4 किलोमीटर प्रति घंटा बढ़ी है।
साल 2015 में भारतीय रेल ने ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए मिशन रफ़्तार शुरू किया था जिसके तहत 2020 तक भारत में ट्रेनों की औसत स्पीड में 25 किलोमीटर प्रति घंटा की वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन पिछले सात सालों के दौरान ट्रेनों की रफ़्तार बढ़ने के बजाय पैसेंजर ट्रेनों की घट गई और इक्स्प्रेस ट्रेनों की मात्र 0.4 किलोमीटर प्रति घंटा बढ़ी। इस मिशन रफ़्तार के तहत ही भारतीय रेल ने Vande-Bharat जैसी तेज गति से चलने वाली ट्रेनें चलवाई थी लेकिन Vande-Bharat भी भारतीय रेल की स्पीड को बढ़ा नहीं पायी।
Vande-Bharat:
जब से फ़रवरी 2019 में भारत की पहली Vande-Bharat ट्रेन चलनी शुरू हुई उसके बाद हर Vande-Bharat ट्रेन का उद्घाटन करने प्रधानमंत्री मोदीजी पहुँच जाते थे। भारत सरकार ने Vande-Bharat को बदलते भारतीय रेल की बदलती तस्वीर का प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। बुलेट ट्रेन के लम्बे इंतज़ार को कम करने के लिए तात्कालिक रूप से लाए गए Vande-Bharat ट्रेन का तेज स्पीड इस ट्रेन की सबसे बड़ी खूबी बताई गई थी।
पिछले लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर शुरू हुआ पहली Vande-Bharat ट्रेन अब साल 2023 में संख्या के हिसाब से कुल 34 हो चुकी है। लेकिन इसके बावजूद भारतीय रेल की स्पीड बढ़ नहीं पा रही है। ये इसके बावजूद हुआ कि पिछले साल अक्टूबर में भारतीय रेल ने 500 ट्रेनों की स्पीड बढ़ा दी थी। जिस Vande-Bharat ट्रेन को 160 किमी प्रति घंटे की तेज गति के नाम पर प्रचारित किया गया उसकी औसत स्पीड मात्र 83 किलोमीटर प्रति घंटा रही जबकी तेजस इक्स्प्रेस की औसत गति 73 किलोमीटर प्रति घंटा रही।
इसके पहले साल 2016 में तेज गति का ही वादा करके आयी थी गतिमान एक्सप्रेस भी आई थी लेकिन तेज गति का वादा के बावजूद पिछले कुछ सालों से भारतीय रेल द्वारा चलाई जाने वाली सभी ट्रेनों की औसत गति लगातार कम हो रही है और ट्रेन का विलम्ब समय भी बढ़ रहा है।
लेट–लतीफि:
साल 2015 में औसत रूप से प्रत्येक ट्रेन 44 मिनट के लिए लेट हुआ था जो साल 2017 में बढ़कर 53 मिनट हो गया। बिहार में ये औसत 104 मिनट का था जबकी हिमाचल प्रदेश में ये औसत मात्र 15 मिनट था। मतलब की बिहार में औसत रूप से प्रत्येक ट्रेन 104 मिनट लेट होता है जबकि हिमाचल प्रदेश में प्रत्येक ट्रेन मात्र 15 मिनट लेट होता है।
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भारत में चलने वाली सभी ट्रेनों में से औसतन रूप से साल 2022-23 के दौरान 17% ट्रेनें विलम्ब से चली है। इस दौरान कुल 1,42,897 यात्री ट्रेनें विलम्ब से चली जिसके कारण भारतीय रेल के कुल 1,10,88,191 मिनट यानी की लगभग 14 साल बर्बाद हो गया। साल 2022 के दौरान सबसे ज़्यादा विलम्ब डुरंतो इक्स्प्रेस हुई जबकी शताब्दी इक्स्प्रेस सबसे कम विलम्ब हुई थी।
एक तरफ़ CAG अपनी साल 2022 की रिपोर्ट में भारतीय रेल में बढ़ती लेट-लतीफि के लिए आधारभूत संरचना निर्माण प्रोजेक्ट में निरंतर विलम्ब को ठहरा रही है दूसरी तरफ़ साल 2022 की तुलना में साल 2023 के दौरान भारतीय रेल के अंतर्गत विलम्ब से चलने आधारभूत संरचना निर्माण प्रोजेक्ट की संख्या 56 से बढ़कर 98 हो गई है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान ख़ासकर भारत में गौ-मांस प्रतिबंधित होने के बाद जानवरों के टकराने के कारण विलम्ब होने वाली ट्रेनों की संख्या सर्वाधिक तेज़ी से बढ़ी है। उदाहरण के लिए साल 2021 की तलने में साल 2022 में जानवरों के टकराने के कारण विलम्ब होने वाले ट्रेनों की संख्या में दो गुना की वृद्धि हुई थी।
नया लिफ़ाफ़ा:
साल 2009 में जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थी तब भारतीय रेल ने विज़न 2020 बनाया था जिसके तहत साल 2020 तक भारत में चलने वाली यात्री ट्रेनों की अधिकतम गति को 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा और माल गाड़ियों की औसत गति एक सौ किलोमीटर प्रति घंटा तक बढ़ाने की थी। जब साल 2014 में भाजपा सत्ता में आयी तो विज़न 2020 का नाम बदलकर मिशन रफ़्तार कार दिया लेकिन लक्ष्य वही रही जो विज़न 2020 में था। लेकिन न विज़न 2020 भारतीय रेल को धक्का लगा पायी और न ही रफ़्तार 1.0 या रफ़्तार 2.0 कोई विशेष गति दे पायी भारतीय रेल को।
भारतीय रेल में कुछ हद तक गति मालगाड़ियों में ज़रूर आयी। जिस तरह से यात्री ट्रेनों में कुछ ट्रेनों को विशेष तीव्र गति देने कि लिए Vande-Bharat जैसी ट्रेनें चलाई गई है उसी तरह मालगाड़ी ट्रेनों के लिए भी विशेष रेल्वे ट्रैक बनाया गया है जिसपर अब तक लगभग 137 मालगड़ियाँ 90 KMPH से भी अधिक का औसत स्पीड पार कर गई थी। लेकिन वो तब हुआ था जब देश में लाक्डाउन लगा हुआ था और इस दौरान यात्री ट्रेनें बहुत कम चल रही थी।
साल 2018-19 में भारत में मालगाड़ी ट्रेनों की औसत गति 25 किलोमीटर प्रति घंटा थी और आज साल 2022-23 के दौरान भी 25 किलोमीटर प्रति घंटा ही थी। साल 2015 में जब भारतीय रेल का मिशन रफ़्तार शुरू हुआ था तब भारतीय रेल ने वादा किया था कि साल 2022-23 तक भारतीय रेल में मालगाड़ियों की औसत स्पीड 39 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुँच जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
वैश्विक परिदृश्य:
रेल यातायात की हालत सिर्फ़ भारत में ही ख़राब नहीं हो रही है बल्कि विश्व के ज़्यादातर देशों में ट्रेनें पिछले कुछ दशकों से लेट लतीफ़ होने लगी है। दुनियाँ की सबसे बेहतरीन रेल व्यवस्थाओं में से एक जर्मनी और ब्रिटेन की ट्रेन व्यवस्था की हालत पिछले कुछ वर्षों के दौरान बुरी तरह चरमराई है। दूसरी तरफ़ जापान जैसे देश जहां आज भी ट्रेन सबसे ज़्यादा तेज़ी से चलती है वहाँ ट्रेनों में चलने के लिए यात्री नहीं मिल रही है जिसके कारण रेल विभाग घाटे में चल रहा है।
भारत में रेल व्यवस्था का चरमराना एक वैश्विक प्रक्रिया का अंग है जिसमें रेल यातायात व्यवस्था का स्थान समय के साथ हवाई यातायात ले लेता है। अमरीका में रेल यातायात से हवाई यातायात की ओर स्थानांतरण दशकों पहले हो चुका है जबकि यूरोप के प्रमुख देशों में रेल व्यवस्था को बर्बाद करने की यह प्रक्रिया पिछले दो दशक से चल रही है और भारत में भारतीय रेल को बर्बाद करने की यह प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षों के दौरान शुरू हो चुकी है। आने वाले समय में भारत में भी हवाई यात्रा रेल की तुलना में इतना अधिक सस्ता, सुविधाजनक और भरोसेमंद बना दिया जाएगा कि लोग रेल से अधिक हवाई यात्रा करना पसंद करेंगे।