बिहार में भी कुछ दशक पूर्व तक टॉय ट्रेन चला करती थी। यह टॉय ट्रेन भी पहाड़ों से गुजराती थी। हिमालय के पहाड़ों में नहीं, बिहार के पहाड़ों में। राजगीर उस दौर में भी तीर्थ स्थल हुआ करता था जैसे आज है। पर राजगीर तक ट्रेन से यातायात की सुविधा नहीं थी।
तीन टॉय ट्रेन:
बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों से ही बख़्तियारपुर से राजगीर कुंड, पटना के पास फतुहा से इस्लामपुर और आरा से सासाराम के बीच तीन मिनी टॉय ट्रेन चला करती थी। इस ट्रेन में पाँच से सात छोटे-छोटे डब्बे होते थे और उनकी पटरी की चौड़ाई दो फ़िट छः इंच हुआ करती थी जो की शिमला में चलने वाली मिनी टॉय ट्रेन के बराबर थी।
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बख़्तियारपुर से राजगीर कुंड:
इस टॉय ट्रेन की पटरी बिछाने का ठेका 21 अगस्त 1899 को कलकत्ता की मशहूर रेल निर्माण और संचालक Martin’s & Company को दिया गया। 01 जुलाई 1903 को इस रेल्वे लाइन पर पहली ट्रेन बख़्तियारपुर से बिहार शरीफ़ तक चली। यह निर्माण का पहला चरण था। निर्माण के दूसरे चरण में इस रेल्वे लाइन को 17 जुलाई 1909 को सिलाव क़स्बा तक पहुँचाया गया। और अंततः तीसरे चरण में बख़्तियारपुर से राजगीर कुंड तक पहली ट्रेन 01 नवम्बर 1911 को चली।

इसी तरह आरा से सासाराम के बीच चलने वाली टॉय ट्रेन का संचालन वर्ष 1911 में प्रारम्भ हुआ और फतुहा से इस्लामपुर तक चलने वाली टॉय ट्रेन का संचालन वर्ष 1922 में प्रारम्भ हुआ। फतुहा से इस्लामपुर चलने वाली टॉय ट्रेन का संचालन करने वाली कम्पनी FUTWAH ISLAMPUR LIGHT RAILWAY CO LTD आज भी ज़िंदा है जिसकी कुल लागत 12 लाख है।
किराया और मुनाफ़ा :
वर्ष 1955 में इस ट्रेन के त्रितीय श्रेणी में बख्त्यारपुर से राजगीर कुंड तक के 33 मील के सफ़र को तय करने के लिए लोगों को 15 आना किराया चुकाना पड़ता था. बख़्तियारपुर से राजगीर कुंड तक जाने वाली खिलौना ट्रेन का 27 फ़रवरी 1955 का टिकट जिसपर किराया 15 आना अंकित है जबकि बख़्तियारपुर से बिहारशरीफ तक का किराया 12 आना था। इस ट्रेन में पुलिस, सेना और सरकार के अधिकारियों को मुफ़्त यात्रा का अधिकार था।
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वर्ष 1913-14 में इस रेल्वे लाइन से सरकार को कुल 1,58,559 रुपए की आमदनी हुई जिसमें से 46,537 रुपए का शुद्ध लाभ था। वर्ष 1931-32 आते आते इस रेल्वे लाइन से कुल आमदनी 4,04,596 रुपए तक पहुँच गई और शुद्ध लाभ 100,553 रुपए का हुआ। लेकिन इसके बाद इस ट्रेन से होने वाली आमदनी और शुद्ध लाभ दोनो लगातार घटने लगी।

विरासत का अंत:
वर्ष 1927 तक इन टॉय ट्रेनों का निर्माण और संचालन एक निजी कम्पनी Martin’s Light Railways करती थी जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसपर पूर्ण अधिकार कर लिया। वर्ष 1947 में हिंदुस्तान की आज़ादी तक इसका संचालन ब्रिटिश सरकार के हाथों में चला गया। वर्ष 1962 में इस ट्रेन के साथ साथ रेल्वे लाइन को भी बंद कर दिया गया था. 1960 व 1970 के दशक के दौरान एक के बाद एक इन तीनो टॉय ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया।
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