वर्ष 1918 में ब्रिटिश सरकार ने उत्तराखंड (तत्कालीन कुमाऊँ) को पिछड़ा क्षेत्र घोषित किया। अगले एक वर्षों के दौरान गोविंद वल्लभ पंत ने मदन मोहन मालवीय और जवाहरलाल नेहरू समेत कांग्रेस के तमाम लोगों से सम्पर्क किया और कुमाऊँ को ब्रिटिश सरकार द्वारा पिछड़ा क्षेत्र घोषित किए जाने का विरोध करने को कहा। पंडित मदन मोहन मालवीय ने तो इस विरोध में मोंटेग-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट की आलोचना में पूरे 76 पृष्ठ की रिपोर्ट लिख डाली। अंततः ब्रिटिश सरकार को कुमाऊँ को ‘बैक्वर्ड ट्रैक्ट’ (पिछड़ा क्षेत्र) से बाहर करना पड़ा और उत्तर प्रदेश (यूनाइटेड प्राविन्स) का हिस्सा बनाना पड़ा।
1918 का बैक्वर्ड ट्रैक्ट
दरअसल हिंदुस्तान में भारतीयों को सीमित राजनीतिक स्वायत्ता देने के लिए गठित मोंटेग-चेम्सफोर्ड ने 8 जुलाई 1918 को अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को सौंपी। इस रिपोर्ट में हिंदुस्तान में प्रांतीय चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा गया और साथ ही साथ हिंदुस्तान के कुछ ख़ास हिस्सों को ‘बैक्वर्ड ट्रैक्ट’ (पिछड़ा क्षेत्र) कहकर उसे इस व्यवस्था से अलग रखा गया। इन पिछड़े क्षेत्रों को ब्रिटिश सरकार ने दो वर्गों में बाटा था: एक तरह के क्षेत्र में प्रांतीय सरकार किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी लेकिन दूसरे तरह के क्षेत्र में प्रांतीय सरकार सुझाव दे सकती थी। उत्तराखंड को दूसरे तरह के पिछड़े क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया था।
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1918 के इस बैक्वर्ड ट्रैक्ट प्रावधान के पहले वर्ग में लछ्द्विप, मद्रास का मिनिकोय, बंगाल का चिट्टगोंग, ओड़िसा का अंगुल और हिमाचल का स्पीती को ही शामिल किया गया था जबकि दूसरे वर्ग, जिसमें उत्तराखंड था, उसमें असाम समेत लगभग पूरा उत्तर-पूर्व भारत के साथ साथ मध्य भारत और नोर्थ वेस्टर्न फ़्रंटीयर प्रांत के आदिवासी क्षेत्र भी शामिल थे। हिंदुस्तान के कुछ पिछड़े क्षेत्रों के लिए पृथक विकास नीति बनाने का यह प्रावधान ब्रिटिश हिंदुस्तान में वर्ष 1874 से ही चला आ रहा था। हालाँकि इस पिछड़े क्षेत्र का नाम और सीमा समय-समय पर बदल ज़रूर रही थी।
वर्ष 1918 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित इस सुझाव के अनुसार ऐसे पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रावधान की ज़रूरत है जो केंद्र सरकार ही कर सकती है। इन पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के संरक्षण के लिए ब्रिटिश सरकार ने फ़ैसला लिया कि इन पिछड़े क्षेत्रों में कोई बाहरी व्यक्ति आकर ज़मीन नहीं ख़रीद सकता है और न ही बाहर से आकर व्यापार-वाणिज्य या उद्योग लगा सकता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को अपने पारम्परिक जीविका के साधन का स्वायत्ता के साथ इस्तेमाल करने का पूरा अधिकार था।

विरोध:
लेकिन गोविंद बल्लभ पंत, मदन मोहन मालवीय और कांग्रेस के विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार को कुमाऊँ को ‘बैक्वर्ड ट्रैक्ट’ क्षेत्र से बाहर करना पड़ा और यूनाइटेड प्राविन्स (उत्तर प्रदेश) का हिस्सा बनाना पड़ा। मोंटेग-चेम्सफोर्ड अधिनियम (1919) के आधार पर दिसम्बर 1920 के प्रांतीय चुनाव में नैनीताल क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले गोविंद बल्लभ पंत को उत्तराखंड की जनता ने 33 मतों से हरा दिया। उन्हें राय बहादुर नारायण दत्त छिमवाल ने हराया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1918 में प्रस्तावित इस ‘बैक्वर्ड ट्रैक्ट’ अर्थात् पिछड़ा क्षेत्र के प्रावधान को हिंदुस्तान के सभी वर्ग के नेताओं ने इस कदर विरोध किया कि अंततः सायमान कमिशन को यह स्वीकार करना पड़ा कि इस प्रावधान के कारण उक्त पिछड़े क्षेत्रों का विकास और पीछे चला जाएगा। लेकिन लाख विरोध के बावजूद वर्ष 1935 के अधिनियम में भी ब्रिटिश सरकार ने पिछड़े क्षेत्र के इस प्रावधान को लागू रखा। हालाँकि अब इन क्षेत्रों में भी प्रांतीय चुनाव करवाने का प्रावधान रखा गया।
नेता तो नेता होते हैं:
अगर वर्ष 1918-19 में गोविंद बल्लभ पंत और कांग्रेस कुमाऊँ को बैक्वर्ड ट्रैक्ट (पिछड़ा क्षेत्र) में शामिल करने का विरोध नहीं करते या कम से कम वर्ष 1935 तक संयम रखते तो सम्भवतः उत्तराखंड देश के उत्तर पूर्वी राज्य, और आदिवासी क्षेत्रों जैसे अन्य पिछड़े क्षेत्रों की सूची में शामिल रहता और विकास के लिए भारत सरकार द्वारा चलाए गए विशेष प्रावधानों का हक़दार रहता। लेकिन चुनाव लड़ने की लालसा में राजनेता सिर्फ़ राजनेता होते हैं।

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