पिछले कुछ दिनों से उत्तराखंड में एक खबर आग की तरह फैली है कि अन्य राज्यों की तुलना में पिछले दस वर्षों के दौरान उत्तराखंड में मतदाता वृद्धि दर, अर्थात् मतदाताओं की संख्या अधिक तेज़ी से बढ़ रही है। आनन-फ़ानन में चुनाव आयोग ने इसपर संज्ञान लेते हुए जाँच के आदेश भी दे दिए और 28 फ़रवरी से पहले जाँच आयोग की रिपोर्ट जारी करने की समयसीमा भी तय कर दी।
चुनाव आयोग की अति-सक्रियता:
मगर दूसरी तरफ एक साधारण से शोध से यह पता चलता है कि पिछले दस वर्षों के दौरान मेघालय, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली और गुजरात में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या में होने वाली वृद्धि दर उत्तराखंड से कहीं अधिक है।
दरअसल 5 फ़रवरी 2022 को देहरादून स्थित ‘थिंक टैंक’ Social Development for Communities (SDC) Foundation ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कुछ चयनित राज्यों में पिछले दस वर्षों के दौरान कुल मतदाताओं की संख्या में वृद्धि का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए यह दावा किया गया था कि उत्तराखंड में मतदाता वृद्धि दर सर्वाधिक है।
SDC फ़ाउंडेशन के संयोजक अनूप नौटियाल ने इस वृद्धि को उत्तराखंड की संस्कृति पर, बाहर से आकर यहाँ बसने वाले लोगों द्वारा हमला तक बता दिया। इस रिपोर्ट के आधार पर उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के अध्यक्ष डॉक्टर वीके बहुगुणा ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री समेत मुख्य चुनाव आयुक्त तक को इस सम्बंध में जाँच के आदेश देने का आग्रह भी किया।

मतदाता वृद्धि दर:
दिलचस्प है कि इस रिपोर्ट ने इन तथ्यों को नज़रअन्दाज़ किया किया कि उत्तराखंड में दस वर्षों के दौरान मतदाताओं की संख्या में 29.63 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी लेकिन मेघालय में यह वृद्धि 46.03 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 38.23 प्रतिशत, हरियाणा में 37.66 प्रतिशत, दिल्ली में 33.61 प्रतिशत और गुजरात में 29.89 प्रतिशत थी वहीं राजस्थान में यह 28.63 प्रतिशत और बिहार में 28.09 प्रतिशत थी। अर्थात् बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, और गुजरात में मतदाताओं की वृद्धि दर उत्तराखंड से अधिक है।
उत्तराखंड के मतदाता वृद्धि दर में पिछले दशक की तुलना में इस दशक के दौरान बहुत ज़्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है। वर्ष 2002 से 2012 के दौरान मतदाता वृद्धि दर 25.79 प्रतिशत थी जो वर्ष 2012 से 2022 के दौरान बढ़कर 29.63 प्रतिशत हो गई है। यह वृद्धि 3.84 प्रतिशत है।
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दूसरी तरफ़ गुजरात में वर्ष 2002 से 2012 के दौरान मतदाता वृद्धि दर 13.81 प्रतिशत थी जो वर्ष 2012 से 2022 के दौरान 16.08 प्रतिशत बढ़कर 29.89 प्रतिशत हो गई है। साफ है कि गुजरात का 16.08 प्रतिशत का उछाल उत्तराखंड के 3.84 प्रतिशत के उछाल से कहीं अधिक है।
हालाँकि इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तराखंड में मतदाता वृद्धि दर में हुई इस बढ़ोतरी का बेहतर विश्लेषण होना चाहिए। यह विश्लेषण सिर्फ़ उत्तराखंड नहीं बल्कि देश के सभी राज्यों का होना चाहिए क्योंकि अलग-अलग राज्यों के तुलनात्मक अध्ययन कई ऐसे चौंकाने वाले परिणामों की तरफ़ इशारा करते हैं जो देश में लागू लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठा सकते हैं।
कारण:
ऐसे कई तर्कपूर्ण कारण हैं जिसकी वजह से उत्तराखंड में मतदाता वृद्धि दर में वृद्धि आई है। उदाहरण के लिए पिछले कुछ दशक के दौरान उत्तराखंड में और ख़ासकर प्रदेश के मैदानी भागों में 0-17 वर्ष आयु वर्ग (जो मतदाता नहीं होते) की जनसंख्या का कुल जनसंख्या में अनुपात तेज़ी से घटा है। वर्ष 2001 में उत्तराखंड में 0-17 वर्ष आयु वर्ग की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का 43.01 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में घटकर 37.68 प्रतिशत रह गई। अर्थात प्रदेश के भावी मतदाताओं का अनुपात लगातार घट रहा है। वहीं दूसरी तरफ़ प्रदेश में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है और मृत्यु दर घट रही है।
इससे भी अधिक चौंकाने वाले तथ्य तब सामने आ सकते हैं जब पिछले बीस वर्षों के डेटा के आधार पर, प्रत्येक पाँच वर्ष के अंतराल पर विभिन्न राज्यों में मतदाता वृद्धि दर का तुलनात्मक अध्ययन, किया जाए। उत्तराखंड के आँकड़े ही बताते हैं कि वर्ष 2012 से 2017 के दौरान उत्तराखंड में मतदाता वृद्धि दर 19.28 प्रतिशत थी जो वर्ष 2017 से 2022 के दौरान घटकर मात्र 8.68 प्रतिशत रह गई।
इसी तरह जिस देहरादून ज़िले में वर्ष 2012 से 2022 के दौरान मतदाता वृद्धि दर 40.74 प्रतिशत थी उसी देहरादून ज़िले में वर्ष 2017 से 2022 के दौरान यह वृद्धि दर मात्र 8.50 प्रतिशत की है। मतदाताओं के वृद्धि दर में इस तरह के अटपटे आंकड़े बहुत हद तक मतदाताओं की गणना और पंजीकरण की प्रक्रिया में दोष को उजागर करते हैं।
बड़ा सवाल:
SDC फ़ाउंडेशन द्वारा जारी तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण इस रिपोर्ट के आधार पर उत्तराखंड की राजनीति में उत्तराखंडी बनाम ग़ैर-उत्तराखंडी और हिंदू-मुस्लिम के परस्पर वैमनस्य की भावना बढ़ने की आशंका है। बहरहाल यह उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव आयोग निष्पक्षता के साथ इस मामले की जाँच करे और उन बिंदुओं का भी ध्यान रखे जिनके कारण मेघालय, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों में मतदाता वृद्धि दर उत्तराखंड से अधिक है।

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नोट: यह शोध व्यक्तिगत तौर पर किया गया है और इससे सम्बंधित सभी आँकड़े लेखक के पास विस्तृत तौर पर मौजूद हैं। इस शोध के कई ऐसे पक्ष हैं जिन्हें इस लेख में शामिल नहीं किया जा सका है लेकिन लेखक के पास इसकी विस्तृत गणना है।