पाकिस्तान, बांग्लादेश और यहाँ तक अफ़ग़ानिस्तान की संसद में महिला आरक्षण है, और वो भी आज से नहीं, बल्कि दशकों पहले से ये आरक्षण महिलाओं को इन देशों में मिल रहा है। और इधर हिंदुस्तान में आज़ादी के 75 सालों के बाद भी संसद या नौकरियों में महिला आरक्षण लागू नहीं हुआ है। हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनियाँ के अन्य हिंदू बहुल देश भी महिलाओं को आरक्षण देने के मामले में मुस्लिम और ईसाई देशों से पीछे है।
पड़ोसी देशों में महिला आरक्षण:
हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की संसद में तक़रीबन 20 प्रतिशत और बांग्लादेश में 21 प्रतिशत प्रतिनिधि महिला है जबकी चीन और तुर्कमेंनीस्तान में ये अनुपात 25% है, ताजिकिस्तान में 24 प्रतिशत, और उज़बेकिस्तान में 32 प्रतिशत महिला जनप्रतिनिधि है। अफ़ग़ानिस्तान की संसद में भी 2021 में तालिबान के क़ब्ज़े से पहले तक 27.7 प्रतिशत सदस्य महिला हुआ करती थी।हिंदुस्तान की संसद में आज भी मात्र 15 प्रतिशत महिला सदस्य है जो 2018 तक मात्र 12 प्रतिशत थी। पूरे दुनियाँ में अलग अलग देशों में औसतन 26 % संसद सदस्य महिलाएँ है।
महिला को संसद भेजने में पूरी दुनियाँ के 192 देशों में से भारत का स्थान 149वाँ है जबकि साउडी अरबिया का 105वाँ, पाकिस्तान का 100वाँ, बांग्लादेश का 95वाँ, अफ़ग़ानिस्तान का 76वाँ, चीन का 72वाँ, इराक़ का 67वाँ, और नेपल का 36वाँ स्थान है और इन सभी देशों में महिलाओं को संसद में आरक्षण भी है। इसके अलावा ब्राज़ील भूटान, मंगोलिया, indonesia, फ़िजी, केन्या, सोमालिया, वियतनाम, सूडान, जिंबाबे, और रवांडा जैसे देश भी भारत से आगे हैं। दुनियाँ में सर्वाधिक महिला अनुपात रवांडा के संसद में है जहां 61.3 प्रतिशत लोकसभा सदस्य और 38.5 प्रतिशत राज्य सभा सदस्य महिला है।
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महिलाओं को आरक्षण देने में एक तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देश भारत से आगे हैं और दूसरी तरफ़ दुनियाँ के ज़्यादातर हिंदू बहुल राष्ट्र महिला को संसद या संसद से बाहर आरक्षण देने के मामले में अन्य देशों की तुलना में पीछे है। नेपाल भी जब तक हिंदू राष्ट्र था, यानी की 2007 तक, तब नेपाल ने कभी भी महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया था लेकिन जैसे ही साल 2007 में नेपाल को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया उसके बाद नेपाल की संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। क्या महिला आरक्षण और हिंदू राष्ट्र में कोई परस्पर समबंध है?
अगर संबंध नहीं है तो फिर ऐसा क्यूँ है कि दुनियाँ के दस प्रमुख हिंदू बहुल देशों में और ख़ासकर उन देशों में जहां हिंदू धर्म को मुद्दा बनाकर राजनीति होती है उन देशों में से किसी भी देश में महिला को आरक्षण नहीं दिया गया है। दुनियाँ में सर्वाधिक हिंदू अनुपात नेपाल में है जहां कि कुल जनसंख्या का 80.6 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है, दूसरे नम्बर पर भारत है जहां 78.9 प्रतिशत आबादी हिंदू है। इसी तरह मौरिशस में 48.5, फ़िजी में 27.9, वेस्ट इंडीज़ के गुयाना में 24, भूटान में 22.5 प्रतिशत लोग हिंदू है।
इसी तरह वेस्ट इंडीज़ के ही त्रिनिदाद और टबेगो में भी 22.3 प्रतिशत लोग हिंदू है, और सूरिणामे में भी 18.3 प्रतिशत लोग हिंदू हैं। और इनमे से नेपाल को छोड़ दें तो किसी भी देश की संसद में महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया है। नेपाल में भी जो महिलाओं को आरक्षण मिली है वो वहाँ की कॉम्युनिस्ट सरकार ने दिया था।
भारत में महिला आरक्षण:
भारत के ही संसद में महिला को आरक्षण देने की लड़ाई का इतिहास दशकों पुराना है। लेकिन आज तक महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया है, न तो संसद में, न नौकरियों में और न ही शिक्षण संस्थानों में। हालाँकि महिला आरक्षण बिल हिंदुस्तान की संसद में पहली बार साल 2010 में पेश किया गया था लेकिन राजनीति में महिला आरक्षण की पहली माँग 1931 में हुई थी जब सरोजनी नायडू और बेगम शाह नवाज़ ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर भारत में 1935 में होने वाले संवैधानिक सुधार में महिलाओं के लिए आरक्षण की माँग की थी।
ये 1930 का वो दौर था जब बाबा साहेब अम्बेडकर दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे थे। भारतीय अधिनियम 1935 में दलितों और आदिवासियों के साथ साथ मुसलमानों को तो आरक्षण मिल गया लेकिन महिलाओं को कुछ नहीं मिला। इसी तरह आज़ादी के बाद भी जब तलाक़ और पारिवारिक सम्पत्ति आदि में महिलाओँ को पुरुषों के समान अधिकार देने के लिए बाबासाहेब अम्बेडकर ने प्रयास किया तो इसका सर्वाधिक विरोध भारत के दक्षिणपंथी नेताओं ने किया था। anti हिंदू कोड बिल कमिटी का भी गठन किया गया जो पूरे देश में घूम-घूमकर इस बिल के ख़िलाफ़ प्रचार किया था।
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11 दिसम्बर 1949 को RSS ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली किया जिसमें RSS के एक वक्ता ने हिंदू कोड बिल को हिंदू समाज का ऐटम बाम तक बोल दिया था तो एक अन्य RSS कार्यकर्ता ने हिंदू कोड बिल की तुलना रोलेट ऐक्ट से कर दिया, और क़ानून मंत्री अम्बेडकर की जाति के ऊपर भी टिप्पणी किया। उस समय द्वारका के शंकराचार्य ने भी हिंदू कोड बिल का विरोध किया था। भारत में महिला आरक्षण के लिए National Perspective Plan for Women 1988 में ही बन गया था लेकिन आज तक महिलाओं को सिर्फ़ स्थानीय निकाय चुनावों में ही आरक्षण मिल पाया है।
दूसरी तरफ़ पाकिस्तान और बांग्लादेश साल 1956 से ही अपने संसद में महिलाओं को आरक्षण दे रही है। अभी 2018 में तो बांग्लादेश ने महिला आरक्षण को फिर से पच्चीस सालों के लिए बढ़ा दिया है। हालाँकि बीच बीच में बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनो जगह जब जब दक्षिणपंथियो, धार्मिक कट्टरवादियों या सैनिक शासन स्थापित हुआ तब तब देश में महिला आरक्षण को ख़त्म कर दिया गया था। दक्षिणपंथी, धार्मिक कट्टरवादियों और सैनिक शासन का हमेशा से महिला आरक्षण के साथ परस्पर विरोध का इतिहास रहा है।
लेकिन इसी हिंदुस्तान में कई ऐसे राज्य है और वहाँ की राज्य सरकारें है जिसने महिला आरक्षण के लिए कई प्रयास किए हैं। हालाँकि अभी तक किसी भी राज्य के विधान सभा या विधान परिषद में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिला है लेकिन बिहार हिंदुस्तान का पहला राज्य था जिसने पंचायत चुनावों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया जबकी संविधान के अनुसार बिहार सरकार मात्र 33 प्रतिशत महिला आरक्षण देने को ही बाध्य थी।
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इस बाध्यता से पहले भी बिहार के कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने 1970 के दशक के दौरान ही महिलाओं को नौकरियों और शिक्षण संस्थानो में आरक्षण दे दिया था और बिहार ऐसा करने वाला हिंदुस्तान का पहला राज्य था। आज भी महिलाओं को पुलिस और न्यायिक सेवा में एक तिहाई आरक्षण देने वाला बिहार हिंदुस्तान का पहला राज्य है। बिहार आज महिला स्वयं सहायता समूह बनाने में पूरे देश में पहले स्थान पर है।
इसलिए अगर 18 से 22 सितम्बर को घोषित संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश करने में भाजपा आना-कानी करे तो यह बिहार के नेताओं की विशेष ज़िम्मेदारी है कि वो इस बिल को न सिर्फ़ संसद में पेश करे बल्कि इस प्रक्रिया में नेतृत्व भी करे।

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