हिंदुस्तान में ऐसी धारणा है कि दक्षिण भारत की महिलायें उत्तर भारत की महिलाओं की अपेक्षा में अधिक शिक्षित, सशक्त और स्वतंत्र है। इस धारणा के पीछे मुख्य आधार है दक्षिण भारत में महिलाओं का उत्तर भारत की अपेक्षा बेहतर साक्षरता दर, और बेहतर लिंग अनुपात।पर ऐसा क्यूँ है कि बेहतर शिक्षा दर और बेहतर लिंग अनुपात के बावजूद देश में सर्वाधिक विधवा अनुपात दक्षिण भारत के ही राज्यों में देखने को मिलता है जबकि बिहार जैसे पिछड़े राज्य में विधवाओं का अनुपात सर्वाधिक कम है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे देश में 46543805 एकल महिलाएँ है जो या तो विधवा हैं या तलाकशुदा है या बिना तलाक़ के पति से अलग रह रहे हैं। यह देश में कुल विवाहित महिलाओं की संख्या का 15.88 प्रतिशत हैं और देश में विवाहित और ग़ैर-विवाहित कुल महिलाओं की संख्या का 7.92 प्रतिशत है। इसमें से विधवा महिलाओं की संख्या देश में कुल विवाहित महिलाओं के अनुपात में 14.76 प्रतिशत है। अर्थात् देश में हर सात विवाहित महिला पर एक विधवा महिला है।
लेकिन इन आँकड़ों का अगर अलग अलग राज्यों से तुलनात्मक अध्याय करते हैं तो चौकाने वाले परिणाम मिलते हैं। उदाहरण के लिए देश में सर्वाधिक पिछड़ा राज्य बिहार में कुल विवाहित महिलाओं के अनुपात में मात्र 9.49 प्रतिशत महिलाएँ ही विधवा है जबकि राष्ट्रीय औसत 14.76 प्रतिशत है। और दूसरी तरफ़ देश में शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से विकसित राज्य का दावा करने वाले केरल में विधवाओं का यह प्रतिशत 22.01 है।

दक्षिण भारत:
केरल समेत दक्षिण भारत के राज–नेताओं का दावा है कि उनके राज्य में विधवा का अधिक अनुपात होने का मुख्य कारण है उनके राज्य में महिला जीवन-प्रत्याशा का अधिक होना। अर्थात् चुकी केरल में महिलाएँ पुरुष की तुलना में अधिक लम्बी उम्र तक जीती है इसलिए वहाँ विधवाओं की संख्या अधिक है। इसमें कोई शक नहीं है कि केरल के महिलाओं का जीवन प्रत्याशा पुरुषों के जीवन प्रत्याशा से सर्वाधिक अधिक है लेकिन अगर यह कारण इतना प्रभावशाली है तो फिर तमिलनाडु और राजस्थान में महिला और पुरुष जीवन प्रत्याशा में अंतर बराबर होने के बावजूद इन दोनो राज्यों में विधवाओं के अनुपात में इतना अंतर क्यूँ है?
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वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार तमिलनाडु में कुल विवाहित महिला के अनुपात में 20.27 महिलाएँ विधवा है। अर्थात् तमिलनाडु में प्रत्येक पाँच विवाहित महिला पर एक महिला विधवा है। दूसरी तरफ़ राजस्थान में यह अनुपात 11.89 प्रतिशत है जो कि तमिलनाडु से लगभग आधा है। दूसरी तरफ़ महिलाओं और पुरुषों के जीवन-प्रत्याशा में अंतर तमिलनाडु में 3.8 वर्ष है जबकि राजस्थान में यह 3.7 वर्ष है। अर्थात् तमिलनाडु की महिलाएँ पुरुष की तुलना में 3.8 वर्ष अधिक जीवित रहती है और राजस्थान में 3.7 वर्ष अधिक जीवित रहती है। केरल में यह अंतर 5.8 वर्ष का है।
बिहार:
इस मामले में न सिर्फ़ दक्षिण भारत बल्कि पूरे देश में सर्वाधिक बेहतर प्रदर्शन करने वाला राज्य बिहार है। बिहार में कुल विवाहित महिलाओं के अनुपात में मात्र 9.49 प्रतिशत महिलाएँ ही विधवा है। इतना ही नहीं 60 वर्ष की उम्र से पहले ही विधवा बन जाने वाली महिलाओं में भी बिहार केरल समेत देश के सभी अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। बिहार में 4.13 प्रतिशत विवाहित महिलाएँ 60 वर्ष की उम्र से पहले विधवा हो रही है जबकि केरल में यह अनुपात 8.20 प्रतिशत है। इसी तरह 30 वर्ष की उम्र से पहले विधवा होने वाली महिलाओं में बिहार का अनूपत 0.88 प्रतिशत है जबकि तमिलनाडु में यह अनूपत 1.38 प्रतिशत है।
ऐसा नहीं है कि केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारत के राज्यों की तुलना में बिहार और राजस्थान जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में विधवाओं का अनुपात हमेशा कम था। वर्ष 1961 की जनगणना के अनुसार बिहार में विधवा का अनुपात 10.91 प्रतिशत था और राजस्थान में 9.52 प्रतिशत जबकि केरल में यह मात्र 10.04 प्रतिशत था जो कि बिहार से कम है। दक्षिण भारत के ही दो राज्य कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने इस दिशा में दक्षिण भारत के अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है।
घेरे में विकास का मॉडल:
दक्षिण भारत ने भले ही मानव विकास के अलग अलग पैमाने में उत्तर भारत के अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया हो लेकिन महिला विकास के मॉडल में दक्षिण भारत उत्तर भारत और ख़ासकर बिहार से काफ़ी पीछे है। बिहार महिला विकास के मामले में रोज़ एक नया कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। फिर चाहे वो पंचायती राज में महिलाओं को बेहतर प्रतिनिधित्व का मामला हो या फिर पुलिस में बेहतर प्रतिनिधित्व का मामला या फिर देश में महिला स्वयं सहायता समूहों की संख्या का मामला हो।
हिंदुस्तान में महिलाओं और ख़ासकर विधवाओं के उत्थान के बिना विकास की बात की बात सम्भव है क्यूँकि इसी हिंदुस्तान में विधवा विषय पर वर्ष 2007 में बनी फ़िल्म Water को सिर्फ़ इसलिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है क्यूँकि देश को लगता है कि उस फ़िल्म से हिंदुस्तान की छवि ख़राब हो रही थी।

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