गढ़वाल के आख़री राजा सुदर्शन शाह ने जागर संस्कृति पर लगाम लगाया था। वर्ष 1910 में छपे और अंग्रेज़ी आला अधिकारी H G वोल्टन द्वारा लिखित और प्रकाशित गढ़वाल गज़ेटियर के अनुसार सुदर्शन शाह ने जागर लगाने (गाने) वाले कई गुरु (भगत) को बंदी बनवाया और उनके किताबों को गंगा में विसर्जन करवा दिया। जागर पर अपना कड़ा रुख़ अख़्तियार करने के पूर्व भी सुदर्शन शाह एक अन्य पहाड़ी प्रथा गोरिल पर प्रतिबंध लगा चुके थे।
गोरिल, गोरिया, गोरिल्ल, ग्वेल व गोली देवता के नाम से प्रसिद्ध कुमाऊँ का यह एतिहासिक स्थानिये कुल देवता अपने न्याय के लिए आज भी दंतकथाओं में याद किए जाते हैं। लोक-कथाओं और मौखिक इतिहास के अनुसार गोरिल चौदहवीं-पन्द्रहवीं सदी में चम्पावत क्षेत्र के न्यायप्रिय राजा हुआ करते थे। उनकी मृत्यु के बाद लोग उनकी न्यायप्रियता के कारण पूजा करने लगे।
“पहाड़ी ‘जागर’ संस्कृति के विरोधी सुदर्शन शाह”
माना जाता है कि चुकी गोरिल चम्पावत (कुमाऊँ) के देवता था इसलिए सुदर्शन शाह द्वारा गोरिल पूजा पर प्रतिबंध लगाना कुमाऊँ और गढ़वाल के बीच उस ऐतिहासिक प्रतिद्वंदिता का हिस्सा था जो आज भी जारी है। लेकिन इस मान्यता के आधार पर सुदर्शन शाह द्वारा जागर पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास को समझना सम्भव नहीं है।
जागर या गोरिल देवता पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास सुदर्शन शाह का ब्रिटिश सरकार के साथ गहरे सम्बन्धों और उनकी ब्रिटिश प्रेम के साथ साथ उनके ब्रिटिश सरकार पर निर्भरता को दर्शाता है। वर्ष 1815 में ब्रिटिश द्वारा गोरखा को हराने के बाद गढ़वाल पर अंग्रेजों का शासन प्रारम्भ होने से पूर्व सुदर्शन शाह अपने पिता के साथ गोरखा से युद्ध हारने के बाद इधर-उधर भटक रहे और इसी बीच उनके पिता की मृत्यु भी हो गई थी।
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मदद की आस में सुदर्शन शाह कई अंग्रेज आला अधिकारियों से सम्पर्क किया और उन्हें गढ़वाल पर गोरखा राज्य को युद्ध में हराने के लिए मदद करने की सभी शर्तों पर तैयार रहे। अंततः जब अंग्रेजों ने गोरखा को हराकर गढ़वाल पर अपना सत्ता प्रारम्भ किया तो सुदर्शन शाह को प्रतीकात्मक राजा बनाया और उन्हें टेहरी में अपना राजमहल बनाने का आदेश दिया।
अंग्रेजों के मदद के तले ऋणी राजा सुदर्शन शाह अंग्रेज़ी सरकार और पश्चिमी संस्कृति के सभी आदेशों और मान्यताओं को मानने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। उन्निसवी सदी में अंग्रेज़ी सरकार द्वारा भारतीय संस्कृति पर प्रश्न और आरोप लगाकर बदनाम करने का शिलसिला लगातार बढ़ता रहा और सुदर्शन शाह के हाथो पहाड़ी संस्कृति को अपमानित करने के प्रयास के क्रम में गोरिल देवता पर प्रतिबंध लगाया गया। इसी क्रम में पहाड़ी जागर संस्कृति के ऊपर भी पाखंड, आडम्बर, दक़ियानूसी आदि का आरोप लगाकर बदनाम करने का प्रयास किया गया।
“क्या है जागर संस्कृति”
जागर संस्कृति एक प्रकार का पर्फ़ॉर्मिंग (निष्पादन) कला है जिसमें गोरिल पूजा की तरह ही स्थानिय भूत-प्रेत के देवी देवता की नाराज़गी दूर करने के लिए रात के समय संगितमत कथा की जाती है। इस दौरान कृष्ण, रुक्मणी, व स्थानिये नायकों आदि से सम्बंधित कई लोक-कथाओं का संगीतमय व्याख्यान किया जाता है। जागर सामान्यतः व्यक्तिगत स्तर पर लोग अपने घर में करवाते हैं। लेकिन कभी कभी पूरे गाँव का समग्र जागर भी किया जाता है।
जागर नृत्य करने वाले व्यक्ति निम्न जाति से सम्बंध रखते हैं। जागर गाने के दौरान गुरु (भगत) एक पहाड़ी वाद्य यंत्र हुड़का का इस्तेमाल करते हैं। पहाड़ों में ढोल, दमों समेत लगभग सभी पहाड़ी वाद्य यंत्र के वादक तथाकथित निम्न जाति के लोग ही होते हैं। (स्त्रोत लिंक)

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