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इतिहास तो यही कहता है कि कांग्रेस को INDIA गठबंधन का नेतृत्व नहीं करना चाहिए

पिछले एक हफ़्ते के दौरान लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर तीन नए और महत्वपूर्ण डिवेलप्मेंट हुए है। एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि, हालाँकि INDIA गठबँधन का वोट पर्सेंटिज NDA से मात्र दो प्रतिशत नीचे है लेकिन अगले चुनाव में न सिर्फ़ NDA को पूर्ण बहुमत मिलने वाली है बल्कि अकेले भाजपा को भी पूर्ण बहुमत मिलने वाली है, 2024 के लोकसभा चुनाव में, लेकिन अगर अगले कुछ महीने तक कोई बड़ा फेर-बदल नहीं होता है तो।

दूसरा रीसर्च आया PEW नामक अंतरराष्ट्रीय रीसर्च संस्था की तरफ़ से जिसमें भी यह बात सामने आयी कि प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार के रूप में अभी भी हिंदुस्तान में मोदी के टक्कर में कोई नहीं है। और तीसरा डिवेलप्मेंट है 31 तारीख़ को मुंबई में हो रही INDIA गठबंधन की बैठक है। इन तीनो डिवेलप्मेंट का भरतिये राजनीति के लिए क्या मायने है? पिछले पचास साल का विपक्षी एकता का इतिहास इन तीन डिवेलप्मेंट के बारे में क्या इशारा कर रहा है कि INDIA गठबंधन किधर जा रहा है या किधर जाना चाहिए।

इस लेख का विडीओ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें: https://youtu.be/LDt_mOi2Whs

31 तारीख़ को मुंबई हो रही INDIA गठबंधन की बैठक को लेकर कई क़यास लगाए जा रहे हैं। कोई कह रहा है कि नीतीश कुमार को INDIA गठबंधन का संयोजक बनाया जा सकता है, कोई लालू यादव का नाम ले रहा है और कोई तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़के तक का नाम ले रहे हैं। पिछले एक हफ़्ते में जो दो रीसर्च सर्वे का परिणाम आया है और उसमें मोदी की पॉप्युलैरिटी को देखते हुए कांग्रेस को अपना कॉन्फ़िडेन्स थोड़ा कम करना चाहिए।

कम से कम कांग्रेस का ही 1979, 1989, 1996 और 1997 का इतिहास तो यही कहता है कि कांग्रेस को अगर भाजपा को सत्ता से बाहर करना है तो कांग्रेस को थोड़ा उदार बनाना पड़ेगा, थोड़ा बड़ा दिल रखना पड़ेगा और राहुल गांधी को थोड़ा और इंतज़ार करने की सलाह देना पड़ेगा। अगर कांग्रेस नीतीश कुमार, लालू यादव, ममता बनर्जी या फिर किसी भी अन्य क्षेत्रीय नेताओं के महत्व को कम आंकने का प्रयास करेगी तो ये सम्भवतः INDIA की विफलता होगी। 

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पहले नज़र डाल लेते हैं वो दो सर्वे के ऊपर, डिटेल में। अमेरिका की प्रसिद्ध रीसर्च संस्था PEW के रीसर्च के अनुसार भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शाख़ पिछले कुछ वर्षों के दौरान बढ़ी है। हालाँकि हिंदुस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शाख़ 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद लगातार बढ़ी है, इस दौरान कभी भी कम नहीं हुई है। दुनियाँ के 23 देशों में किए गए इस सर्वे में यह बात सामने आयी है कि इन देशों के 46 प्रतिशत लोग मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत की अंतरराष्ट्रीय शाख़ बेहतर हुई है जबकि 34 प्रतिशत लोग मानते हैं की इस दौरान भारत की अंतरराष्ट्रीय शाख़ बिगड़ी है।

इसी तरह जब इनमे से 12 देशों में मोदी के बारे में पूछा गया तो 40 प्रतिशत लोगों ने बताया कि मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा और प्रभावकारी कार्य किया है। इसी रीसर्च में यह बात भी सामने आया कि अभी भी 79 प्रतिशत भारतीय नरेंद्र मोदी को सकारात्मक नज़र से देखते हैं। जबकि राहुल गांधी को 62 प्रतिशत लोग सकारात्मक दृष्टि से देखते है और 46 प्रतिशत लोग कांग्रेस के अध्यक्ष खड़के जी को   सकारात्मक दृष्टि से देखते हैं। इस सर्वे में नीतीश कुमार या किसी अन्य क्षेत्रिये नेता के नाम पर सवाल नहीं पूछा गया था वरना क्या पता परिणाम कुछ और भी आ सकता था। 

India Today & C-Voters सर्वे :

ये सर्वे हिंदुस्तान के बाहर किया गया था। लेकिन ऐसा ही एक सर्वे हिंदुस्तान के भीतर भी किया गया। 15 जुलाई से 14 अगस्त 2023 के बीच भारत के 1,60,434 मतदाताओं के बीच इंडिया टुडे पत्रिका और C वोटर संस्था द्वारा करवाए गए मूड ओफ़ द नेशन सर्वे के अनुसार अगर अभी यानी की साल 2023 के अगस्त महीने के आख़री दिनों में चुनाव होता है तो NDA गठबंधन को कुल 306 सीटों पर जीत मिल सकती है और INDIA गठबंधन को मात्र 193 सीटों पर जीत मिलेगी। इस सर्वे के अनुसार अगर अभी चुनाव होता है तो अकेले भाजपा को 287 सीट पर जीत मिल जाएगी और कांग्रेस को मात्र 74 सीटों पर जीत मिलने की सम्भावना है।

लेकिन वोट शेयर के मामले में INDIA गठबंधन को NDA गठबंधन से मात्र दो प्रतिशत कम वोट मिल रहा है। NDA गठबंधन को इस सर्वे में 43 प्रतिशत मत मिल रहा है और INDIA गठबंधन को 41 प्रतिशत वोट मिल रहा है। इस सर्वे में यह बात भी सामने आइ की आज भी 59 प्रतिशत लोग मोदी सरकार के पर्फ़ॉर्मन्स से और 63 प्रतिशत लोग नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद से संतुष्ठ हैं। दूसरी तरफ़ इतना लम्बा भारत जोड़ो यात्रा करने और अपनी छवि को बहुत हद तक सुधारने के बावजूद अभी भी मात्र 16 प्रतिशत भारतिये राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं जो कि नरेंद्र मोदी के 52 प्रतिशत का एक तिहाई भी नहीं है।

इसी इंडिया टुडे और C वोटर ने जब एक साल पहले यानी अगस्त 2022 में सर्वे किया था तब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखने वालों का अनुपात मात्र 9 प्रतिशत था जबकि मोदी को अगला प्रधानमंत्री के रूप में देखने वाले का अनुपात 53 प्रतिशत था। यानी की पिछले छह महीने के दौरान मोदी को चाहने वालों में एक प्रतिशत की कमी आइ है और राहुल गांधी को चाहने वालों में सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है लेकिन अभि भी राहुल गांधी मोदी के सामने दूर दूर तक नहीं दिखते हैं।  

इस सर्वे में एक बात और ध्यान देने योग्य है कि अभि टक न तो कांग्रेस और न ही राहुल गांधी INDIA गठबंधन के निर्विवादित  लीडर या पार्टी बनने की स्थिति में है। क्या कांग्रेस सिर्फ़ 74 सीटों के साथ INDIA गठबंधन का नेतृत्व 16 प्रतिशत भारतीयों को पसंद आने वाले राहुल गांधी को देना चाहती है? यानी की 193 में से 74 सीट पाने वाली कांग्रेस INDIA गठबंधन का नेता बनना चाहती है और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री? याद कीजिए 1996 के चुनाव को। 1996 के चुनाव में कांग्रेस को 140 सीट मिली थी उसके बावजूद कांग्रेस ने अपना प्रधानमंत्री नहीं बनाकर पहले H D देवेगौदा को प्रधानमंत्री बनाया था और फिर बाद में I K गुजराल को।

इसी तरह 1990 में चंद्रशेखर जब जनता दल को तोड़कर पहले समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) बनाते है और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं तब भी प्रधानमंत्री कोई कांग्रेस पार्टी का नहीं बल्कि जनता पार्टी सेक्युलर के चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाया जाता है।  इसी तरह 1979 में चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी को तोड़कर जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाते हैं और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं लेकिन प्रधानमंत्री कांग्रेस की इंदिरा गांधी नहीं बल्कि जनता पार्टी (सेक्युलर) के चरण सिंह को बाय गया था। 

याद रखिएगा कि चाहे बात 1979 का हो या  1989 का या फिर 1996 और 1997 का, कांग्रेस अपने गठबंधन का सबसे बड़ा पाट्री होने के बावजूद प्रधानमंत्री अपने पार्टी का नहीं बनाकर दूसरे छोटे दलों का, क्षेत्रिये दलों से चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवेगौड या गुजराल को बनाया था. क्यूँकि उस समय कांग्रेस का सिर्फ़ एक मक़सद था, और वो मक़सद था जनसंघ और भाजपा को सत्ता से बाहर करना और इसके लिए कांग्रेस गम्भीर भी थी। तो क्या अब साल 2023-24 में भी कांग्रेस को 1979, 1989, 1996 या 1997 की तरह उदार रूप नहीं दिखाना चाहिए और INDIA गठबंधन का नेतृत्व के साथ साथ प्रधानमंत्री का पद किसी ग़ैर-कांग्रेसी नेता को नहीं देना चाहिए?

याद कीजिए कि जब कांग्रेस ने 1979 में जनता पार्टी सेक्युलर को बाहर से समर्थन देकर चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनया था, तब इंदिरा गांधी ज़िंदा थी और जब 1990 में कांग्रेस ने समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) को बाहर से समर्थन देकर चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाया था तब राजीव गांधी ज़िंदा थे। क्या कांग्रेस यह समझती है कि राहुल गांधी 1979 के इंदिरा गांधी और 1990 के राजीव गांधी से भी अधिक बड़ा और परिपक्व नेता हो गए हैं? 

फ़ैसला INDIA गठबंधन को करना है, फ़ैसला कांग्रेस को लेना है, फ़ैसला राहुल गांधी को लेना है और फ़ैसला आपको भी लेना है। अगर कांग्रेस और राहुल गांधी सच में भाजपा और मोदी को सत्ता से बाहर करना चाहती है। अगले लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस को थोड़ा और अधिक उदार बनाना पड़ेगा, थोड़ा दिल और बड़ा करना पड़ेगा और राहुल गांधी को राजनीति में थोड़ा और अनुभव लेना पड़ेगा।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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