HomeBrand Bihariबिहार के इस राजनीतिक संकट ने राज्यपाल से इस्तीफ़ा ले लिया और...

बिहार के इस राजनीतिक संकट ने राज्यपाल से इस्तीफ़ा ले लिया और राष्ट्रपति को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया था।

बिहार का एक चुनाव कभी हिंदुस्तान के एक सर्वाधिक प्रसिद्ध राष्ट्रपति के इस्तीफ़ा का कारण बन गया था। राष्ट्रपति का इस्तीफ़ा से कुछ दिन पहले इसी मुद्दे पर बिहार के राज्यपाल इस्तीफ़ा दे चुके थे। लेकिन अंततः पक्ष और विपक्ष ने एक सुर में राष्ट्रपति को ये इस्तीफ़ा नहीं देने के लिए किसी तरह मनाने में कामयाब हो गए। बिहार में उत्पन्न हुए इस राजनीतिक और संवैधानिक संकट को नैतिक और जनवादी संकट में परिवर्तित होने से बचा लिया गया। 

21 मई 2005 की रात 11 बजे दिल्ली में सरकार की आपात कैबिनेट मीटिंग हो रही थी। कुछ घंटो में मीटिंग ख़त्म हुई। आधी रात को रुस की राजधानी के केम्पिंसकी होटेल में सोते हुए डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को जगाया गया। उनके लिए दिल्ली से एक पत्र आया था जिसपर उन्हें राष्ट्रपति के रूप में हस्ताक्षर करना था। पत्र में बिहार विधानसभा को भंग करने और प्रदेश में दुबारा चुनाव करवाने का आदेश था जो दिल्ली में तय हुआ था राष्ट्रपति कलाम को फ़ौरी तौर पर हस्ताक्षर करना था। 

दरअसल बिहार में पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक ड्रामा हो रहा था। फ़रवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था जिसके बाद 7 मार्च 2005 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। लेकिन राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले संवैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।

संविधान के अनुसार चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में सर्वाधिक बड़ी पार्टी और सर्वाधिक बड़ी गठबंधन को सरकार बनाने का मौक़ा दिया जाना ज़रूरी था। लेकिन प्रदेश के राज्यपाल बूटा सिंह ने ऐसा नहीं किया था। बूटा सिंह ने न सिर्फ़ प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया बल्कि उसके छः महीने के भीतर प्रदेश की विधानसभा को भंग कर दिया।

चुनाव परिणाम:

फ़रवरी 2005 के चुनाव में RJD को सर्वाधिक 75, JD(U) को 55, भाजपा को 37, लोकजनशक्ति पार्टी को 29 और कांग्रेस 10 सीटों पर विजय मिली थी। JD(U) और भाजपा के गठबंधन को कुल 92 सीट मिली थी जो कि सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 122 से कम था। एक समय पर 17 निर्दलीय विधायक भी NDA का समर्थन देने को तैयार थे फिर भी 122 की संख्या तक नहीं पहुँच पा रहे थे। दूसरी तरफ़ RJD, कांग्रेस और कॉम्युनिस्ट पार्टियों के वोट को भी मिला दिया जाए तो वो 122 तक नहीं पहुँच पा रहे थे। इस पूरी प्रक्रिया में रामविलास पासवान की पार्टी को मिले अप्रत्याशित 29 सीट के बिना किसी के लिया सरकार बनाना सम्भव नहीं था।

रामविलास पासवान UPA के गठबंधन के साथ मिलकर स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन लालू यादव मुख्यमंत्री का पद देने के लिए तैयार नहीं थे। दूसरी तरफ़ NDA उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार थी लेकिन 2002 के गोधरा दंगे के बाद NDA छोड़ चुके रामविलास पासवान NDA में दुबारा किसी हालत में जाने को तैयार नहीं थे। उस समय केंद्र की UPA सरकार में वो मंत्री भी थे और कांग्रेस के साथ उनके गहरे सम्बंध भी बन चुके थे। रामविलास पासवान को यह भी लग रहा था कि बिहार में अगर दुबारा चुनाव होगा तो उनकी पार्टी और अधिक बेहतर प्रदर्शन करेगी। इसलिए RJD और रामविलास दोनो बिहार में दुबारा चुनाव करवाना चाहते थे। 

विधायकों की ख़रीद:

दूसरी तरफ़ पंद्रह वर्षों के बाद नीतीश कुमार को प्रदेश में लालू सरकार को हटाने का यह सुनहरा मौक़ा दिख रहा था। निर्दलीय विधायकों का समर्थन सुनिश्चहित करने के बाद रामविलास पासवान के विधायकों को तोड़ने की तैयारी की गई। झारखंड के जमशेदपुर के एक होटेल में रामविलास की पार्टी के लगभग एक दर्जन विधायकों को NDA में शामिल होने के लिए लगभग मनाया जा चुका था।

बिहार में नीतीश कुमार और NDA की सरकार बनाने की तैयार लगभग पूरी हो चुकी थी। इसी तैयारी के बीच 21 मई 2005 की रात 11 बजे दिल्ली में UPA की बैठक हुई ताकि NDA की इस सरकार को बनाने से किसी भी तरह रोका जाए। रातोंरात रुस समेत चार देशों के दौरे पर गए राष्ट्रपति के हस्ताक्षर लिए गए और सुबह होते होते प्रदेश में दुबारा चुनाव करवाने की घोषणा कर दी गई। 

सरकार बनाने की पूरी तैयारी कर चुकी NDA इस ख़बर से तिलमिला गई। प्रदेश भर में बंद का अहवाहन किया गया, धरने दिए गए, जुलूस निकाला गया, और केंद्र सरकार के फ़ैसले का विरोध किया गया। लेकिन फ़ैसला लिया जा चुका था वो भी एक ग़ैर-राजनीतिक राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के देश में अनुपस्थिति के बावजूद। जब तक राष्ट्रपति को अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी। 

न्यायालय का दरवाज़ा:

NDA ने अपने दो विधायकों और एक LJP के बाग़ी और एक निर्दलीय विधायक के नाम से सर्वोच्च न्यायालय में बिहार में दुबारा चुनाव करवाने के इस असंवैधानिक फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिका दायर किया। न्यायालय में याचिका पर सुनवाई और चुनाव आयोग की चुनावी तैयारी साथ साथ चलने लगी। अगर सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला NDA के पक्ष में आता तो बिहार एक और संवैधानिक संकट के मुहाने पर खड़ा था। अब भारतीय संविधान की दो स्वायत्त संस्थाएँ (चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय) आमने सामने थी। 

3 सितम्बर को चुनाव आयोग ने बिहार में चुनाव की घोषणा किया और 29 सितम्बर को सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर अपना फ़ैसला दिया। न्यायालय का फ़ैसला चुनाव होने से पहले ही आया और NDA के पक्ष में भी आया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार बिहार में बिना किसी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का मौक़ा दिए हुए प्रदेश में दुबारा चुनाव करवाने का राज्यपाल, UPA सरकार और राष्ट्रपति का फ़ैसला असंवैधानिक था।

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने देश को इस संवैधानिक संकट से बचाया और कहा कि चुकी चुनाव की तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी इसलिए अब बिहार में चुनाव करवाना ज़रूरी था। ये अपने आप में एक अजीब फ़ैसला था जिसमें न्यायालय एक फ़ैसले को ग़लत भी बोल रही थी लेकिन उसके ख़िलाफ़ कार्यवाही भी नहीं कर रही थी। 

इसे भी पढ़े: Journey of Paltu Ram (Nitish Kumar) in 20 Cartoons

दूसरी तरफ़ NDA के नेता राज्यपाल को इस्तीफ़ा देने की माँग कर रहे थे। अंततः इसी माहौल में बिहार में चुनाव सम्पन्न हुआ। NDA ने बिहार के इस असंवैधानिक संकट को भी चुनावी मुद्दा बनाया और अंततः विजयी हुआ। अक्तूबर-नवम्बर 2005 में सम्पन्न हुए चुनाव में NDA को पूर्ण बहुमत मिला और नीतीश कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया। 

24 जनवरी 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर विस्तृत निर्णय दिया जिसके बाद NDA ने बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह के इस्तीफ़ा की माँग तेज कर दी। न्यायालय के पाँच जजों में से UPA सरकार और राज्यपाल का पक्ष लेने वाले दो जजों का मानना था कि चुकी NDA अन्य पार्टी के विधायकों की ख़रीददारी करके सरकार बनाने का प्रयास कर रहे थे इसलिए बिहार विधानसभा को भंग करने का राज्यपाल का फ़ैसला सही था और संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए उठाया गया फ़ैसला था। लेकिन अंततः न्यायालय ने इस फ़ैसले को ग़ैर-संवैधानिक कहा। 

इस्तीफ़ा:

चुकी दुबारा हुए चुनाव में NDA की सरकार बन चुकी थी इसलिए याचिकाकर्ता ने राज्यपाल द्वारा बिहार विधानसभा को भंग करने और प्रदेश में दुबारा चुनाव करवाने के निर्णय को पलटने की माँग वापस ले लिया लेकिन राज्यपाल को इस्तीफ़ा देने की माँग करते रहे। अंततः बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह को 26 जनवरी 2006 को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 

बिहार में लिए गए इस ग़ैर-संवैधानिक फ़ैसले में राज्यपाल के अलावा एक अन्य व्यक्ति ज़िम्मेदार था जो अपने इस निर्णय का अफ़सोस कर रहा था और अपने पद से इस्तीफ़ा देना चाहता था। लेकिन इस व्यक्ति को इस्तीफ़ा देने से रोकने के लिए बिहार से लेकर दिल्ली तक पक्ष और विपक्ष के नेता एक हो गए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं इन्हें इस्तीफ़ा नहीं देने के लिए अंततः राज़ी कर लिया। ये थे भारतरत्न और तात्कालिक देश के राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम आज़ाद।

इस घटना का विस्तृत विवरण दो किताबों में मिलता है। एक चिंतन चंद्रचूड द्वारा लिखी किताब “The Cases That India Forgot” और दूसरी अब्दुल कलाम की आत्मकथा ‘विंग्स ओफ़ फ़ायर‘ में।

HTH Logo
Hunt The Haunted के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (Link
Hunt The Haunted के Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)
Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
RELATED ARTICLES

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Current Affairs