मणिपुर समस्या है क्या? उसका इतिहास क्या है? भूगोल क्या है? क्या है इस समस्या का कारण? कौन कितना ज़िम्मेदार है, कितनी ज़िम्मेदारी भाजपा की और कितनी ज़िम्मेदारी कांग्रेस की है? नेहरू कितने ज़िम्मेदार है और मोदी कितने ज़िम्मेदार हैं? ऐसा कुछ भी “हमारी बपौती” के इस एपिसोड में नहीं बताने वाले हैं हम आपको। हालाँकि इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि ये सभी सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन इन सवालों के जवाब के लिए आपको देखने-सुनने के लिए कई विडीओ मिल जाएँगे और पढ़ने के लिए कई आलेख भी मिल जाएँगे।
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JP और मणिपुर:
आज हम आपसे बात करेंगे लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बारे में। JP के बारे में। क्या कुछ बोला था JP ने मणिपुर और मणिपुर समस्या के बारे में? लोकनायक (JP) के नागालैंड समस्या पर दिए गए विचार पर तो आपको कई आलेख, विडीओ और नीतीश कुमार जैसे उनके फ़ॉलोअर के स्टेट्मेंट भी मिल जाएँगे, लेकिन JP के मणिपुर समस्या पर दिए गए सुझाव या विचार का आपको कहीं कोई नामों निशान नहीं मिलेगा।
मणिपुर में हो रही गतिविधियों के ऊपर लोकनायक (JP) की नज़र 1960 के दशक से ही लगातार बनी रही थी। 23 जुलाई 1965 को विष्णु सहाय जी को लिखे एक पत्र में उन्होंने, मतलब JP ने, चिंता ज़ाहिर किया कि आख़िर क्यूँ भारत सरकार और मणिपुर सरकार “पीस मिशन” के लोगों को मणिपुर के ‘सीज फ़ायर’ वाले क्षेत्र में जाने नहीं दे रही है? पीस मिशन को क्षेत्र में शांति स्थापित करने का प्रयास करने नहीं दे रही है। JP का मानना था कि ऐसा करके भारत सरकार या मणिपुर सरकार तो मणिपुर में लगातार बढ़ रहे तनाव को और भी ज़्यादा बढ़ा रही है।
यह JP की दूरदर्शिता थी और भारत सरकार की नादानी जिसके कारण JP के इस पत्र और चेतावनी के बावजूद के एक महीने के भीतर मणिपुर का तनाव सड़कों पर उतर आया था। इसी तनाव के दौरान 27 अगस्त 1965 प्रसिद्ध Hunger Marchers’ आंदोलन हुआ ( जिसे मणिपुरी में चेकलाम खोंगचट) कहते हैं जो मणिपुर की सड़कों पर हुआ था। इस आंदोलन के दौरान भारतीय सुरक्षाबलो की गोलीयों से मणिपुर के चार छात्रों, Naba kumar, Nilamani और प्रमोदिनी) की जान चली गई थी। आज भी मणिपुर के लोग इन चार छात्रों को शहीद मानते हैं और आज भी उसकी बरसी मनाते हैं, शोकसभा रखते हैं, और उस दुखद घटना को याद करते हैं। JP इस पूरे मुद्दे पर भारत सरकार और मणिपुर सरकार के रवैए से नाराज़ थे।
नागालैंड और मणिपुर:
इसी जुलाई 1965 में JP इस मुद्दे पर एक लेख भी लिखते हैं जिसमें वो मणिपुर की समस्या के तार नागालैंड की समस्या से जोड़ते हैं। दरअसल उस दौर का मणिपुर समस्या यह था कि मणिपुर केंद्र शासित प्रदेश था, जबकि केंद्र सरकार पर नागा समस्या का हल ढूँढने का बहुत ज़्यादा प्रेशर था। उधर नागा व्यवसायी मणिपुर में केंद्र सरकार के सरकारी तंत्र की मदद से मणिपुर के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में आम लोगों शोषण कर रही थी जिससे मणिपुर की आम जनता परेशान थी।
मणिपुर के इस उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में नागा लोग की भी अच्छी-ख़ासी आबादी थी। नागा व्यवसायियों द्वारा मणिपुर के लोगों का जो शोषण चल रहा था उसके कारण अगस्त 1965 में मणिपुर में चावल आदि अनाजों की इतनी कमी हो गई और उनके दाम इतने बढ़ गए कि मणिपुर में अकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई, जिसके ख़िलाफ़ स्थानीय मणिपुरी लोगों ने और ख़ासकर विद्यार्थी ने विद्रोह कर दिया।
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इसी विद्रोह में वो चार छात्र भी शहीद हुए, जिसका ज़िक्र हमने थोड़ी देर पहले किया था। इसी दौरान भारत सरकार और नागा नेताओं के बीच इंडो-नागा शांति समझौता हुआ। इस समझौते के तहत भारत सरकार ने नागालैंड के साथ-साथ मणिपुर के भी तीन प्रखंडों को सीज-फ़ायर क्षेत्र घोषित कर दिया और वो भी मणिपुर सरकार से बिना कोई बात किए हुए।
मणिपुर के लोगों को यह ख़तरा महसूस हुआ कि कहीं भारत सरकार मणिपुर के इन तीन प्रखंडों को नागालैंड राज्य को न दे दे। इस दौरान खबर यह भी खूब फैली कि मणिपुर के इन तीन प्रखंडों में नागा नेताओं ने नौकरियों में धांधली किया और इसके अलावा मणिपुरी लोगों से हफ़्ता वसूली भी करना शुरू कर दिया था। नागा नेताओं की इन हरकतों की सूचना खुद विष्णु शहाय जी (27 जुलाई 1965) को JP को लिखे एक पत्र के माध्यम से दिया था।
JP बार-बार बोलते रहे कि मणिपुर समस्या का हल नागालैंड समस्या के हल में छुपा हुआ है लेकिन भारत सरकार उनकी एक नहीं सुनी। इस दौरान भारत सरकार JP से बार-बार मदद माँगती थी की वो मणिपुर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करे और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करें। इसके अलावा भारत सरकार JP से नागालैंड के अंडर्ग्राउंड स्थानीय नेताओं से मिलने और उनसे शांति-वार्ता करने का भी आग्रह करते हैं। लेकिन JP जिन लोगों को अपने साथ हिंसा-प्रभावित क्षेत्रों में ले जाना चाहते थे उन्हें भारत सरकार उनके साथ जाने नहीं देती थी।
ऐसे ही एक व्यक्ति थे माइकल स्कॉट जो पीस मिशन के सदस्य भी थे। भारत सरकार और मणिपुर सरकार दोनो माइकल स्कॉट को मणिपुर के सीज-फ़ायर क्षेत्र में जाने नहीं देती थी जबकि JP उन्हें हर हाल में अपने साथ ले जाना चाहते थे। मणिपुर सरकार को लगता था कि स्कॉट नागा लोगों के समर्थक थे इसलिए मणिपुर सरकार उन्हें मणिपुर आने नहीं देना चाहती थी। JP इस वार्ता में हमेशा मणिपुर के नेताओं को भी शामिल करने की सलाह देते रहे लेकिन भारत सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी।
अपनी इस बेबसी का ज़िक्र जयप्रकाश नारायण (JP) 24 अगस्त 1965 को धर्मवीर जी को लिखे एक पत्र में किया था। और भारत सरकार यह भी आगाह किया था कि अगर शांति स्थापित करने के लिए मणिपुर में तुरंत कोई प्रयास नहीं क्या गया तो मणिपुर में स्थित बहुत जल्दी और भी अधिक ख़राब हो जाएगी। JP द्वारा लिखे इस पत्र के तीन दिन के भीतर 27 अगस्त 1965 को मणिपुर में प्रसिद्ध Hunger Marchers’ Day आंदोलन हुआ जिसमें चार मणिपुरी छात्र शहीद हुए, जिसका जिक्र हमने थोड़ी देर पहले किया था।
मणिपुर का विद्रोह:
इस घटना के बाद मणिपुर में आग सी लग जाती है, इंडो-नागा डील के तहत मणिपुर के सीज-फ़ायर घोषित परखंडों में से एक में एक SDM और एक कृषि अधिकारी को बेलगाम भिड़ पिट-पिट कर जान से मार दिया। मणिपुर में इस तरह की हिंसा की घटनाएँ छींट-पुट ढंग से साल 1972 तक चलती रही जब तक की मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दे दिया गया और मणिपुर के लोगों को यह विस्वस नहीं हो गया कि भारत सरकार मणिपुर के वो तीन परखंडों को नागालैंड राज्य को नहीं देगी और वो तीनो प्रखंड मणिपुर राज्य का ही हिस्सा रहेंगे जो इंडो-नागा शांति समझौते के तहत सीज-फ़ायर क्षेत्र घोषित कर दिए गए थे।
इसका यह मतलब हुआ कि इस पूरी प्रक्रिया में नागा लोगों की हार हुई और मणिपुर के लोगों की जीत हुई। उस लड़ाई में कुकी और मैती ने साथ मिलकर नागा का विरोध किया था और अब साल 2023 में वही कुकी और मैती समुदाय के लोग आपस में लड़ रहे हैं, एक दूसरे के जान के दुश्मन बने हुए हैं। अब तो कम से कम आपको समझ जाना चाहिए कि 2023 में जो मणिपुर में हिंसा हो रही है उसमें मणिपुर के पहाड़ों में रहने वाले नागा लोग कुकी का साथ क्यूँ नहीं दे रहे हैं।

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