भारत में पिछले तीन दशक के दौरान अम्बानी-अड़ानी जैसे हिंदुस्तान की एक प्रतिशत पूँजीपतियों की आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ी है। वर्ष 1985 में हिंदुस्तान के 1 प्रतिशत धनी लोगों के पास देश की 10.5 प्रतिशत धन था। वर्ष 2023 में 1 प्रतिशत धनी भारतीयों के पास देश का 40 प्रतिशत धन संग्रहित है। यह अनुपात वर्ष 2007 तक 20.1 प्रतिशत था। अर्थात् पिछले पंद्रह वर्षों में यह अनुपात 20 प्रतिशत से दो गुना बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया।
हालाँकि दुनियाँ में कनाडा, फ़्रान्स, जर्मनी, रुस, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण अफ़्रीका, ब्राज़ील जैसे देशों के साथ साथ चीन में भी सर्वाधिक एक प्रतिशत धनी लोगों का देश के कुल धन में हिस्सेदार पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान बढ़ने की जगह घटी है। वर्ष 2007 में रुस के सर्वाधिक 1 प्रतिशत अमीरों के पास देश का 26.8 प्रतिशत धन था जो वर्ष 2016 में घटकर मात्र 21.8 प्रतिशत रह गया। इसी तरह ब्रिटेन में भी इसी दौरान यह गिरावट 14.9 प्रतिशत से घटकर 12.7 प्रतिशत रह गया, और चीन में 15.3 प्रतिशत से घटकर 13.9 प्रतिशत रह गया।
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टेक्स चोर अम्बानी-अड़ानी:
16 जनवरी 2023 को Oxfam द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1990 और 2017 के दौरान में प्रत्यक्ष गुडस एंड सर्विस टेक्स (GST) लगाने वाले देशों की संख्या 50 से बढ़कर 150 हो चुकी है जिसमें हिंदुस्तान भी शामिल है। जीएसटी के कारण अम्बानी-अड़ानी जैसे पूँजीपतियों को कम टैक्स देना होता है और आम उपभोक्ता को अधिक टेक्स देना पड़ता है। और इस प्रक्रिया में सर्वाधिक नुक़सान भारत सरकार को होती है क्यूँकि देश की आदि से अधिक आबदी के पास तो देश का तीन प्रतिशत भी धन नहीं है।
दूसरी तरफ़ हिंदुस्तान में पिछले एक दशक से लगातार NPA के साथ साथ अम्बानी-अड़ानी जैसे पूँजीपतियों के क़र्ज़ माफ़ी की रक़म बढ़ती जा रही है। पिछले आठ वर्षों में अम्बानी-अड़ानी जैसे धनकुबेरों के क़र्ज़ माफ़ करने की रक़म में लगभग पाँच गुना की वृद्धि आइ है तो हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार हुआ है।

अम्बानी-अड़ानी की नव-मानसिक ग़ुलामी:
हिंदुस्तान की की दो तिहाई जनता जिस टीवी न्यूज़ चैनल को देखती है उसके मालिक सिर्फ़ एक आदमी मुकेश अम्बानी है। मीडिया पर अपने एकाधिकार के ज़रिए ये अम्बानी-अड़ानी न सिर्फ़ पैसा कमाते हैं बल्कि हिंदुस्तान के लोग क्या पसंद करें और क्या नापसंद करें उसे भी प्रभावित करते हैं। इसीलिए आम लोग इन धन कुबेरों की बढ़ती सम्पत्ति को भगवान का दान से लेकर मेहनत का फल तक सीमित कर देते हैं।
सम्भवतः यही कारण है कि जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था, देश के मज़दूर जान बचाने के लिए सड़कों को पैदल नाप रहे थे, शहर से लेकर कल-कारख़ाने ख़ाली हो चुके थे, उस दौर में भी अम्बानी-अड़ानी का मुनाफ़ा घटने या स्थिर रहने के बजाय तेज़ी से बढ़ रहा था। पिछले दो वर्षों में विश्व में उत्पादित नए धन का दो तिहाई से अधिक हिस्सा अम्बानी-अड़ानी जैसे दुनियाँ के मात्र एक प्रतिशत धनवानों के हाथों तक सीमित रह गया जबकि दुनियाँ की आधी से अधिक आबादी के आय में एक प्रतिशत भी वृद्धि नहीं हो पायी।

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