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वीरचंद पटेल जयंती: बिहार कांग्रेस का पिछड़ा चेहरा जिन्होंने जगजीवन राम को ‘भारत का स्टालिन’ बोला था।

पटना के जिस वीरचंद पटेल मार्ग पर आज बिहार की सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों का कार्यालय बना हुआ है उसका नाम दो दशक पहले तक Gardiner (गार्डेनिया) रोड था। इसी तरह पिछले दो दशकों के दौरान पटना के कई प्रसिद्ध सड़कों/मार्गों का नाम बदला गया है। हालाँकि इनमे से ज़्यादातर बदले हुए सड़क को लोग आज भी पुराने नाम से ही जानते हैं लेकिन वीर चंद पटेल मार्ग को लोग अब इसी नए नाम से जानते हैं। 

1950 और 1960 के दशक के दौरान अगर जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दलित चेहरा थे तो वीरचंद पटेल बिहार कांग्रेस का पिछड़ा चेहरा थे। वर्ष 1945 में हाजीपुर से और 1952 में मुज़फ़्फ़रपुर के महुआ विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध विधायक बने। उसके बाद वर्ष 1957 और फिर 1962 के चुनाव में वैशाली ज़िले के लालगंज दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक बने। वीर चंद पटेल ने 1957 के चुनाव में पूरे बिहार विधानसभा चुनाव में 23 सीटों पर विजय प्राप्त करने वाली CNPSPJP दल के नेता भूपेन्द्र प्रसाद शुक्ला को 16174 मतों के अंतर से हराया था। वहीं 1962 के चुनाव में इन्होंने SWA दल के नेता बीशूनदेव प्रसाद यादव को 7347 मतों से पराजित किया।

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वीरचंद पटेल 1947 से 1952 तक बिहार के यातायात मंत्री के साथ संसदीय सचिव रहे। 1951 में बिहार के मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह ने उन्हें कृषि विभाग के उपमंत्री बनाया और 1957 में उन्हें कृषि के अलावा स्वास्थ्य और खध्य मंत्रिमंडल की भी ज़िम्मेदारी दी गई। वर्ष 1961 कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद नए मुख्यमंत्री विनोदानंद झा ने वीरचंद पटेल ओ वित्त मंत्री बनाया और वर्ष 1963 में के बी सहाय ने उन्हें राजस्व, भूमि सुधार और पुनर्वास मंत्री बनाया। वर्ष 1962 के विधानसभा चुनाव के दौरान वो बिहार के मुख्यमंत्री का भी दावेदार थे। 

बिहार के वित्त मंत्री के तौर पर उन्होंने बिहार के बजट को पहली बार सरप्लस बजट बना दिया जिसके लिए पूरे देश में उनकी प्रशंसा हुई और इसका राज समझने के लिए प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें दिल्ली बुलाकर मुलाक़ात किया। इसी तरह यातायात मंत्री के सचिव के तौर पर इनके द्वारा ‘बिहार राज्य ट्रांसपोर्ट कॉर्परेशन’ की स्थापना कर बिहार में यातायात के क्षेत्र में अतुलनीय सुधार के लिए इनके कार्यों की प्रशंसा स्वयं कृष्ण सिंह और मंत्री डॉक्टर महमूद ने बार-बार किया।

व्यक्तिगत जीवन:

वीरचंद पटेल का जन्म जन्म 12 मार्च 1911 को पटना के एक दलित परिवार में हुआ। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने वकालत की बधाई की और कुछ समय तक वकालत करने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस का हिस्सा बन गए। उनका पैतृक गाँव हाजीपुर ज़िले में था और राजनीतिक कर्मभूमि वैशाली ज़िले का लालगंज (दक्षिण) विधानसभा रहा। अपने राजनीतिक कार्यकाल के दौरान इनका निवास Gardiner रोड पर क्वार्टर नंबर 5 में था और इसी वजह से इस सड़क ना नाम अब वीर चंद पटेल मार्ग रख दिया गया है।

वीरचंद पटेल
चित्र: वीरचंद पटेल का चित्र।

वर्ष 1967 के चुनाव से पहले ही वीरचंद पटेल का 7 दिसंबर 1966 को देहांत हो गया। जब वीरचंद पटेल का देहांत हुआ तो तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री के बी सहाय (1966 -67) ने क्वार्टर नंबर 5, गार्डेनिया रोड पर स्थित वीरचंद पटेल के सरकारी निवास में एक स्मारक के साथ साथ सामाजिक शोध संस्थान और पुस्तकालय खोलने का निर्णय लिया गया था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस सम्बंध में बिहार विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव 19 जुलाई 2002 को प्रस्तुत किया गया था जिसके बाद गार्डेनिया रोड का नाम बदलकर वीरचंद पटेल मार्ग रख दिया गया।

वीरचंद पटेल का दलित विमर्श:

वीरचंद पटेल पिछड़ी जाती आंदोलन में दलित और अन्य पिछड़ों को एक साथ समग्र रूप से परिभाषित करते थे और दलित-पिछड़ा एकता की ज़रूरत का आह्वाहन करते थे। इनके अनुसार भारत का पिछड़ा आंदोलन हिंदुस्तान के इतिहास का सबसे बड़ा और सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंदोलन था जो स्वतंत्रता आंदोलन से भी अधिक महत्वपूर्ण था। वीरचंद पटेल राष्ट्रीय स्तर पर इस दलित-पिछड़ा आंदोलन के नेता के रूप में जगजीवन राम को देखते थे। (पिछड़ा वर्ग 18 मई 1953) मार्च 1953 में मुंगेर के तारापुर के साहिद बाग में आयोजित प्रथम पिछड़ा जाती ज़िला कॉन्फ़्रेन्स, को सम्बोधित करते हुए वीरचंद पटेल कहते हैं,

“कोंग्रेस किसी जाती या समुदाय की बपौती नहीं—देश की बागडोर अपने हाथ में लेने का, अपने अधिकार और उचित हिस्सा माँगने का, दया की भीख नहीं—जगजीवन राम भारत के स्टालिन हैं। जिस तरह भूखे नंगे चमार के लड़के ने रुस की काया पलट दी, श्री जगजीवन राम हिंदुस्तान की काया पलट देंगे। वह जो मंत्र हमें दे रहे हैं वह मंत्र फ़्रान्स की जैन क्रांति के पहले फ़्रान्स की जनता को Rousseau में मिला था।”

वीरचंद पटेल के बारे में एक अन्य रोचक तथ्य यह है कि उनका नाम वीरचंद पटेल नहीं बल्कि बिरचंद्र पटेल (Birchandra Patel) था। वीरचंद पटेल का कर्पूरी ठाकुर और रामानंद तिवारी के साथ काफ़ी दोस्ताना व्यक्तिगत सम्बंध था। इनकी मृत्यु के बाद इनके अंतिम संस्कार में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री समेत बिहार के सभी बड़े नेता गए थे।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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5 COMMENTS

  1. राजधानी पटना को छोङें, हाजीपुर जिला मुख्यालय तक में, बिहार के लाल और देश के सच्चे सपुत स्व. बीरचंद पटेल जी की एक भी आदमकद प्रतिमा आजतक किसी चौक-चौराहे पर लगवाने का प्रयास वैशाली जिला के किसी राज नेताओं ने नहीं किया !
    आश्चर्य की बात तो यह है कि वैशाली जिला के किसी एक भी सङक का नाम आजतक बीरचंद पटेल जी जैसे महान विभूति के नाम पर नहीं रखा गया, जिन्हें कभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने, बिहार में वित्त मंत्री रहते उनके द्वारा किए गए कार्यों और वित्तीय सुधारों से प्रभावित होकर, उन्हें केंद्र की सरकार में शामिल होने का निमंत्रण दिआ था, परंतु उन्होनें बिहार में ही रहकर बिहार की सेवा करने की बात कह कर केंद्र की सरकार में शामिल होने से इन्कार कर दिआ !!

  2. राजधानी पटना को छोङें, हाजीपुर जिला मुख्यालय तक में बिहार के लाल और देश के सच्चे सपुत स्व.बीरचंद पटेल जी की एक भी आदमकद प्रतिमा आजतक किसी चौक-चौराहे पर लगवाने का प्रयास वैशाली जिला के किसी राजनेताओं के साथ ही बिहार सरकार ने नहीं किया!!
    आश्चर्य की बात तो यह है कि वैशाली जिला के किसी एक भी सङक का नाम आजतक बीरचंद पटेल जी जैसे महान विभूति के नाम पर नहीं रखा गया, जिन्हें कभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने, बिहार में वित्त मंत्री रहते उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों और वित्तीय सुधारों से प्रभावित होकर, उन्हें केंद्र की सरकार में शामिल होने का निमंत्रण दिआ था, परंतु उन्होनें बिहार में ही रहकर बिहार की सेवा करने की इच्छा जता कर केंद्र की सरकार में शामिल होने से मना कर दिआ |

  3. आप लोगों को सूचित करते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है कि बिहार के विश्वविद्यालयों में 4 वर्षीय स्नातक कोर्स के अधीन वीरचन्द पटेल जी के जीवनी को बिहार का इतिहास के अंतर्गत शामिल किया गया है।
    साथ ही हमने बाबू जगजीवनराम, माउंटेन मैन दशरथ माँझी और योगेंद्र शुक्ल के जीवन को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया है।

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