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योगी आदित्यानाथ की बढ़ती भूख: पिछले 5 वर्षों से क्यूँ मना रहा है उत्तरप्रदेश भी उत्तरायनी कौथिक मेला?

जनवरी 2023 में लखनऊ शहर में लगातार पाँचवीं बार उत्तराखंडी उत्तरायनी कौथिक मेले का आयोजन हुआ। पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ इस मेले में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। अपने भाषण में योगी आदित्यानाथ ने यहाँ तक कह दिया कि, “उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भले ही राजनीतिक और भौगोलिक रूप से दो अलग अलग राज्य है लेकिन दोनो राज्यों की आत्मा एक ही है।”

जिस उत्तर प्रदेश राज्य से पहाड़ को अलग करने के लिए पहाड़ी महिलाओं का उत्तर प्रदेश पुलिस ने बलात्कार किया और उनपर लाठी-गोलियाँ चलाई गई, पहाड़ को अपमानित किया उसी उत्तर प्रदेश को आज पहाड़ की आत्मा बताई जा रही है। लेकिन कोई विरोध नहीं कर रहा है।

Uttarayani
चित्र: बगेश्वर शहर में आयोजित वर्ष 1932 के उत्तरायनी मेले में झूला झूलती उत्तराखंडी महिलाएँ।

उत्तरायनी कौथिक मेला:

ऐतिहासिक उत्तरायनी मेला कालांतर से सिर्फ़ उत्तराखंड के बगेश्वर शहर में मनाया जाता रहा है। माना जाता है कि उत्तरायनी मेला पहाड़ का सर्वाधिक पुराना मेला है। स्थानीय भाषा में इसे उत्तरायनी कौथक मेला कहा जाता है। आज उत्तरायनी कौथिक मेला उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में मनाया जाता है। उत्तरायनी कौथिक मेला हर वर्ष जनवरी महीने की 14 तारीख़, यानी मकर सक्रांति पर्व के दिन को प्रारम्भ होता है। पूरे उत्तराखंड में मकर सक्रांति के दिन घुघुती पर्व भी मनाया जाता है। यह घुघुती पर्व और कौथिक मेला के बीच एक गहरा सम्बंध भी स्थापित करता है।

माना यह जाता है कि घुघुती पर्व उत्तराखंड में इसलिए मनाया जाता है क्यूँकि इस दिन पहाड़ के राजा कल्याण चंद की जान बचाने के लिए पहाड़ियों ने अपने अपने घर में घुघुती (पकवान-मिठाई) बनाया और उसे वहाँ के कौवे को खिलाया। भविष्यवाणी यह हुई थी कि उस दिन पहाड़ के सारे कौवे राजा की हत्या कर देंगे इसलिए कौवे का ध्यान भटकाने और राजा की जान बचाने के लिए पहाड़ के लोगों कौवों के लिए मिठाइयाँ बनाई और उसे खिलाया।

योगी आदित्यानाथ और उत्तराखंड:

जब पूरा पहाड़ उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन की आग में जूझ रहा था और पौड़ी गढ़वाल में स्थित HNB केंद्रीय विश्वविद्यालय उस आंदोलन के केंद्र में था उसी दौरान HNB में पढ़ने वाला पौड़ी गढ़वाल ज़िले का ही एक स्थानीय यूवक, एक पहाड़ी, एक उत्तराखंडी, योगी आदित्यानाथ, अध्यात्म का केंद्र पहाड़-हिमालय को छोड़कर आध्यात्मिक संतुष्ठी की खोज में गोरखपुर पलायन कर जाता हैं और दुबारा पहाड़ कभी वापस नहीं आता हैं।

योगी होने का दावा करने वाले योगी आदित्यानाथ पहाड़ छोड़ने के तीन दशक के भीतर वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता के शीर्ष तक पहुँच जाते हैं। सिर्फ़ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में योगी आदित्यानाथ को नरेंद्र मोदी के विकल्प में रूप में देखा जाना प्रारम्भ हो जाता है। अब योगी आदित्यानाथ को पहाड़ की याद फिर से आने लगती है।

योगी आदित्यानाथ

योगी की बढ़ती भूख:

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान वहाँ के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने भले ही यह कह दिया हो कि उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार पहाड़ के 17 विधायकों से नहीं चलती है लेकिन देश के प्रधानमंत्री की आकांक्षा रखने के लिए देश की आध्यात्मिक राजधानी उत्तराखंड के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। और ख़ासकर के ऐसे दौर में जब धर्म, अध्यात्म, तपस्या, वैराग्य आदि भारतीय राजनीति का अहम हिस्सा बनता जा रहा हो।

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भारतीय राजनीति में यह कहावत है कि जिसका उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति पर पकड़ होगी देश की राजनीति में उसकी निर्णायक भूमिका होती है। चुकी फ़िलहाल बिहार में योगी आदित्यानाथ को किसी तरह की राजनीतिक स्थान मिलना सम्भव नहीं है तो ऐसे में देश की राजनीति में अपनी पकड़ को बढ़ाने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश के निकलने की भी ज़रूरत है। इन परिस्थितियों में उनका गृह-राज्य उत्तराखंड एक सुनहरा मौक़ा दिख रहा है।

वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर पहुँचने के एक वर्ष के भीतर योगी आदित्यानाथ ने लखनऊ में जनवरी 2018 के दौरान उत्तरायनी कौथिक मेले का आयोजन प्रारम्भ किया। पिछले पाँच वर्षों से यह मेला लखनऊ में लगातार मनाया जा रहा है। इस वर्ष 2023 के मेला के समापन समारोह में योगी आदित्यानाथ ने आख़िरकार यह कह ही दिया कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की आत्मा एक ही है। पिछले पाँच वर्षों में योगी आदित्यानाथ पौड़ी गढ़वाल में स्थित अपने पैत्रिक गाँव का दो बार दौरा कर चुके हैं। योगी आदित्यानाथ की उत्तराखंड से लगातार बढ़ते लगाव अकारण नहीं हो सकते हैं।

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश:

उत्तराखंड का उत्तर प्रदेश के साथ न कभी कोई ऐतिहासिक सम्बंध था और न ही कोई सामाजिक या सांस्कृतिक। इतिहास में उत्तराखंड में आकर बसने वाले ज़्यादातर लोग वर्तमान मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के प्रवासी थे। अंग्रेज़ी काल के दौरान भी उत्तराखंड के पहाड़ों के शासन-प्रशासन को उत्तर प्रदेश से बिलकुल पृथक और स्वायत्त रखा गया। उत्तराखंड का उत्तर प्रदेश से अधिक गहरा सम्बंध नेपाल और तिब्बत से हुआ करता था। ऐसे ऐतिहासिक परिपेक्षय में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को योगी आदित्यानाथ द्वारा दो राज्य और एक आत्मा बताना उत्तराखंड की विशेष समाज, संस्कृति और इतिहास के साथ मज़ाक़ करना है।

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इसी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक वर्ग के पहाड़ के प्रति हीन और निरंकुश रवैए के प्रति पहाड़ के लोगों ने आवाज़ उठाई और लम्बे संघर्ष के बाद पृथक उत्तराखंड राज्य बनाया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को एक आत्मा कहना कुछ ऐसा ही होगा जैसे आज ब्रिटेन की सरकार हिंदुस्तान और ब्रिटेन को दो देश और एक आत्मा कहने लगे। अगर योगी आदित्यानाथ पृथक उत्तराखंड राज्य में हिस्सा लेते तो सम्भवतः यह कभी नहीं कह पाते कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की एक ही आत्मा है।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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