वर्ष 1871-72 की भारतीय जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में ग़ैर-हिंदुओं की आबादी एक प्रतिशत भी नहीं थी। हालाँकि ब्रिटिश जनगणनाकर्मी इस आँकड़े पर विश्वास नहीं करते हैं। ब्रिटिश जनगणनाकर्मियों के अनुसार ऐसा आँकड़ा इसलिए आया क्यूँकि उत्तराखंड के पहाड़ों में ग़ैर-हिंदू भी अपने आप को हिंदू पहचान के साथ जोड़ते थे। ब्रिटिश के अनुसार उत्तराखंड के ग़ैर-हिंदू जनसंख्या में यहाँ रहने वाले भोटिया आदि सामाजिक समूहों को शामिल होना चाहिए था पर ऐसा नहीं हुआ क्यूँकि 1871-72 की इस जनगणना में कौन किस धर्म से सम्बंध रखता था यह तय करने का अधिकार जनगणनाकर्मियों को ही था।
हिंदुस्तान में पहली जनगणना वर्ष 1971-72 में हुई थी। उस दौर में उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल दोनो क्षेत्रों को समग्र रूप से कुमाऊँ बोला जाता था और उसमें टेहरी के राजा का क्षेत्र शामिल नहीं था। कुमाऊँ उस दौर में उत्तर-पश्चिम प्रांत का हिस्सा था जिसमें मुख्यतः आज का उत्तर प्रदेश का क्षेत्र हुआ करता था। वर्ष 1871-72 की जनगणना में हिंदुस्तान के लगभग सभी राजा-रजवाड़ों के क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया था और यही कारण था कि टेहरी गढ़वाल के राजा के क्षेत्र को इस जनगणना में शामिल नहीं किया गया था।
1871-72 (उत्तराखंड)
जनसंख्या घनत्व के मामले में उत्तराखंड को चिट्टगाँव की पहाड़ी, कूचबिहार, सुंदरबन, छोटनागपुर और झाँसी के साथ कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया था। वर्ष 1871-72 की जनगणना में यह बात सामने आइ कि उस दौर में कुमाऊँ क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व गढ़वाल क्षेत्र से अधिक था। कुमाऊँ का जनसंख्या घनत्व 72 लोग प्रति वर्ग मिल था और गढ़वाल में मात्र 56 था जबकि पूरे हिंदुस्तान का औसत जनसंख्या घनत्व 378 था।
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जनगणना के अनुसार गढ़वाल और कुमाऊँ का क्षेत्रफल लगभग बराबर था लेकिन कुमाऊँ में कुल 4,606 गाँव और छोटे शहर थे जबकि गढ़वाल में यह संख्या मात्र 3,944 ही था। इसी तरह वर्ष 1871-72 में कुमाऊँ की कुल आबादी 77,624 थी जबकि गढ़वाल की कुल आबादी मात्र 57,293 थी जबकि इन घरों में रहने वाले लोगों की कुमाऊँ में संख्या 433,314 और गढ़वाल में 310,288 थी।
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उस समय उत्तराखंड में सिर्फ़ तीन प्रतिशत ज़मीनें कृषियोग्य था जबकि राष्ट्रीय औसत 77.7% था। आज उत्तराखंड में लगभग 11% भूमि कृषि योग्य है लेकिन इसमें से ज़्यादातर कृषियोग्य भूमि राज्य के तीन मैदानी ज़िलों तक सीमित था जबकि वर्ष 1871-72 में यह तीनो ज़िले उत्तराखंड का हिस्सा नहीं था। उस समय तो देहरादून भी उत्तराखंड का नहीं बल्कि सहारनपुर या मेरठ ज़िले का हिस्सा हुआ करता था।
बेहतर:
लेकिन एक मामले में उत्तराखंड हिंदुस्तान के अन्य हिस्सों से बेहतर था। और वो क्षेत्र था पारिवारिक रिश्तों के महत्व को समझना। उत्तराखंड में संयुक्त परिवार प्रणाली (Joint Family) का प्रचलन हिंदुस्तान के अन्य हिस्सों से कहीं बेहतर था। पूरे हिंदुस्तान में प्रत्येक परिवार में औसतन 4.84 लोग रहते थे लेकिन उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल में यह क्रमशः 5.58 और 5.41 लोग प्रति परिवार था।

स्त्रोत: Henry Waterfield, (1875), “Memorandum on the Census of British India 1871-72,” London, Eyre and Spottiswoode. (Source Link)
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