वर्ष 1952 में हो रहे स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से एक लोकसभा सीट जिसका नाम उत्तर बंगाल था उसपर एक नहीं बल्कि एक साथ तीन सांसद बने। वैसे तो हिंदुस्तान में एक लोकसभा सीट पर दो सांसद चुने जाने की व्यवस्था वर्ष 1961 तक लगभग एक सौ लोकसभा क्षेत्रों पर लागू थी लेकिन वर्ष 1952 के चुनाव में ‘उत्तर बंगाल’ नामक सीट एक ही लोकसभा क्षेत्र से तीन सांसद चुनने वाला हिंदुस्तान का यह एकलौत लोकसभा क्षेत्र था।
वर्ष 1952 का चुनाव:
उत्तर बंगाल नामक इस लोकसभा क्षेत्र से वर्ष 1952 में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होकर सांसद पहुँचने वाले तीन सांसदों का नाम था: श्री उपेन्द्रनाथ बर्मन, अमिया कांता बासु और श्री बीरेन्द्र नाथ काठम। बीरेन्द्र नाथ काठम और उपेन्द्रनाथ बर्मन दलित जाति से सम्बंध रखते थे। श्री उपेन्द्रनाथ बर्मन कूच बिहार राजघराने परिवार से भी सम्बंध रखते थे।
वर्ष 1957 के दूसरे लोक सभा चुनाव में उत्तर बंगाल सीट का नाम बदलकर कूच बिहार रख दिया गया और इस बार तीन की जगह सिर्फ़ दो सांसद चुने गए। वर्ष 1957 के सिर्फ़ इस चुनाव में ही नहीं बल्कि वर्ष 1967 तक दलित श्री बीरेन्द्र नाथ काठम को संसद से बाहर रखा गया जबकि राजघराने से सम्बंध रखने वाले श्री उपेन्द्रनाथ बर्मन 1957 के चुनाव में भी निर्वाचित होकर सांसद पहुँचे।

दो सांसद व्यवस्था:
एक ही निर्वाचन क्षेत्र से दो सांसद या विधायक निर्वाचित होने की प्रथा आज़ाद हिंदुस्तान में वर्ष 1961 तक चली जब अंततः THE TWO-MEMBER CONSTITUENCIES (ABOLITION) BILL, 1960 के द्वारा ख़त्म किया गया। लेकिन इस प्रथा को ख़त्म होने से पहले हिंदुस्तान में दो लोकसभा (वर्ष 1952 और 1957) और पचास से अधिक विधान सभा चुनाव सम्पन्न हो चुके थे जिसमें सैकड़ो नहीं बल्कि हज़ारों निर्वाचित क्षेत्रों से दो-दो सांसद या दो-दो विधायक निर्वाचित हो चुके थे।
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उदाहरण के लिए वर्ष 1952 में सम्पन्न पहले लोकसभा चुनाव में 86 ऐसे लोकसभा क्षेत्र थे जहां से दो-दो सांसद और एक लोकसभा क्षेत्र से तीन सांसद निर्वाचित हुए थे। इसी तरह 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में 88 संसदीय क्षेत्र से दो-दो विधायक निर्वाचित हुए थे। इसी तरह वर्ष 1957 में बिहार विधानसभा के लिए सम्पन्न हुए दूसरे चुनाव में 264 में से 53 विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे जहां से दो-दो विधायक निर्वाचित हुए थे।
क्यूँ थी यह व्यवस्था ?
ऐसा माना जाता है कि ये दो-दो सांसद निर्वाचित करने वाले संसदीय क्षेत्र वो संसदीय क्षेत्र होते थे जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होते थे। लेकिन अगर ऐसा था तो फिर ऐसे संसदीय क्षेत्रों की संख्या और भी अधिक होनी चाहिए जो दो-दो सांसद निर्वाचित कर रहे थे। पहले लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए 72 सीट और अनुसूचित जनजाति के लिए 26 सीट आरक्षित रखा गया था जबकि 1957 के लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए 76 और अनुसूचित जनजाति के लिए 31 सीट आरक्षित किया गया था। 1957 के चुनाव में 76 में से 37 सीट ऐसे दो-दो सांसद वाले सीट थे जो ग़ैर-आरक्षित थे।
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हालाँकि एक ही निर्वाचन क्षेत्र से दो-दो जनप्रतिनिधि को निर्वाचित करने की यह व्यवस्था वर्ष 1961 में ही बंद कर दी गई थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस प्रथा को सांसद और विधानसभा में महिला आरक्षण के सम्बंध में उठाया जा रहा है। भारतीय स्त्री शक्ति संस्था की माँग है कि हिंदुस्तान के सभी 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्र को इस व्यवस्था के अंतर्गत लाया जाए और प्रत्येक्ष क्षेत्र से एक महिला और एक पुरुष जनप्रतिनिधि को निर्वाचित किया जाए।
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