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ट्रिपल टेस्ट का जिन: निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग आरक्षण

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्णाटक, और बिहार होते हुए निकाय चुनावों में ‘ट्रिपल टेस्ट’ का जिन अब उत्तर प्रदेश पहुँच चूका है. वैसे तो यह जिन 11 मई 2010 में ही पैदा हो गया था जब देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को यह निर्देश दिया कि वो अपने राज्यों में निकाय चुनाव या तो बिना पिछड़ा वर्ग आरक्षण के करवाए या ‘ट्रिपल टेस्ट’ के साथ लड़कर उत्तीर्ण हो.

अलग अलग राज्यों के उच्च न्यायालयों में सोये इस जिन को जगाने का प्रयास कुछ लोगों ने वर्ष 2019 से ही प्रारंभ कर दिया था. लेकिन पहली सफलता महाराष्ट्र में मिली जब  4 मार्च 2021 को यह जिन सक्रीय तब हो गया जब देश की मुंबई उच्च न्यायालय ने यह फरमान सुनाया कि प्रदेश में कोई भी निकाय चुनाव या तो बिना पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए बगैर होगा या फिर ट्रिपल टेस्ट देना होगा

पर क्या है यह ट्रिपल टेस्ट?

  1. डेडिकेटेड पिछड़ा आयोग का गठन
  2. आयोग द्वारा पिछड़ों के लिए आरक्षण का अनुपात तय करना
  3. पिछड़ा वर्ग समेत सभी आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो

मध्य प्रदेश:

एक साल के भीतर यह जिन मध्य प्रदेश पहुँच गया जब 10 मई 2022 को भोपाल उच्च न्यायलय में सोये इस जिन को एक जनहित याचिका ने जगा दिया. भोपाल उच्च न्यायलय में जागते हुए जिन ने वही फरमान सुनाया जो महाराष्ट्र के जिन से सुनाया था, “या तो ट्रिपल टेस्ट करवाओ, या फिर बिना पिछड़ा वर्ग आरक्षण के चुनाव करवाओ”. राजनीति का मारा मध्यप्रदेश की सरकार क्या न करता.

चोबीस घंटे के भीतर मध्य प्रदेश सरकार 12 मई उच्च न्यायलय के सामने ट्रिपल टेस्ट दे दिया. 18 मई 2022 को ट्रिपल टेस्ट का परिणाम आया और फिर वर्ष 2019-20 से जिन 321 नगर निकाय और 23073 अन्य स्थानीय निकाय के चुनाव लंबित थे वहां पिछड़ा आरक्षण के साथ चुनाव करवाया गया

गुजरात:

लेकिन मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र दोनों का पडोसी गुजरात के अहमदाबाद उच्च न्यायलय में सोयी जिन नहीं जागी और गुजरात के न सिर्फ गाँधीनगर में अक्तूबर 2022 में नगर निकाय चुनाव करवा लिया बल्कि पुरे गुजरात में दिसंबर 2022 में ग्रामीण निकाय करवा लिया और भी बिना ट्रिपल टेस्ट के और पिछड़ा वर्ग आरक्षण के साथ. इतना ही नहीं, बिहार ने भी बिना ट्रिपल टेस्ट के पिछड़ा वर्ग आरक्षण के साथ पुरे प्रदेश में ग्रामीण निकाय के चुनाव सितम्बर 2021 में संपन्न करवा लिया

ट्रिपल टेस्ट के लिय जरुरी
मानचित्र: बिहार में 1931 की जनगणना के अनुसार उच्च जातियों का फैलाव

बिहार-उत्तर प्रदेश:

लेकिन जब बिहार सरकार ने अक्तूबर 2022 में कुछ नगर निकाय चुनाव की घोषणा की तो अक्तूबर में चुनाव से एक हफ्ते पहले पटना उच्च न्यायलय में सोया ‘ट्रिपल टेस्ट’ का जिन निकला और बिहार में नगर निकाय चुनाव को रुकवा दिया. फरमान फिर से एक बार वही जारी हुआ, “या तो बिना पिछड़ा वर्ग आरक्षण’ के बिना चुनाव करवाओ या फिर ट्रिपल टेस्ट दो.” बिहार सरकार ने फटाफट डेडिकेटेड पिछड़ा आयोग बनया और 41 दिन के भीतर रिपोर्ट जमा करके ट्रिपल टेस्ट दिया और दिसंबर के आखरी हफ्ते में पिछड़ा वर्ग आरक्षण के साथ नगर निकाय चुनाव करवा लिया

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अभी बिहार में नगर निकाय के चुनाव संपन्न भी नहीं हुआ था कि ट्रिपल टेस्ट का जिन उत्तर प्रदेश के इलाहबाद उच्च न्यायलय में नींद से जाग गया. उत्तर प्रदेश सरकार ने वही दलील दी जो इसके पहले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और बिहार दे चुकी थी, “प्रदेश में पहले से ही एक पिछड़ा आयोग बना हुआ है तो फिर से नया डेडिकेटेड आयोग बनाने की क्या जरुरत है.” पर जिन की मर्जी के सामने किसी की चली है?

जिस बिहार में पिछड़ा आयोग के साथ साथ वर्ष 2006 में ही एक अति-पिछड़ा आयोग भी बना हुआ था, उस बिहार की दलील को जब यह जिन नहीं माना तो उत्तर प्रदेश की दलील को कैसे मानता. अंततः उत्तर प्रदेश को भी पिछड़ा आयोग बनाने की घोषणा करनी पड़ी

ट्रिपल टेस्ट का इतिहास:

यह कोई पहली दफा नहीं है जब पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायलय व् प्रदेश के उच्च न्यायालयों का हस्तक्षेप हुआ हो और न ही पहली बार पिछड़ा आयोग बना है. आज़ादी के बाद से आज तक दर्जनों बार न्यायालयों का हस्तक्षेप हुआ है और राष्ट्रिय व् राज्य दोनों स्तर पर दर्जनों पिछड़े आयोग बना है लेकिन पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण से सम्बन्धी विरोधाभाष लगातार बढती जा रही है. ऐसा संभवतः इसलिय हो रहा है क्यूंकि समस्या का मूल जड़ है देश में जातिगत आंकड़ों का आभाव जिसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है

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आज़ादी के बाद से बने अबतक सभी पिछड़े आयोगों ने समाज के पिछड़ा वर्ग के वर्गीकरण और उनके आरक्षण के अनुपात को तय करने सम्बन्धी रिपोर्ट तैयार करने के दौरान देश में जातिगत आंकड़ों के आभाव को सर्वाधिक जटिल समस्या बताया. इन आयोगों समेत न्यायलय ने भी कई बार देश में जातिगत जनगणना करवाने का सुझाव दिया लेकिन अज तक किसी सरकार ने कोई सफल प्रयास नहीं किया है

जातिगत जनगणना:

इसी सम्बन्ध में समाज के पिछड़े वर्ग को पिछड़ा और अति-पिछड़ा में वर्गीकृत करने के लिए वर्ष 2017 में बना रोहिणी योग को तेहर बार कार्यकाल विस्तारण मिलने के बावजूद आज तक रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाया. रोहिणी आयोग ने भी जातिगत आंकड़ों के आभाव को रिपोर्ट बनने में मुख्या अड़चन माना है

देश में जातिगत जनगणना करवाने के कुछ विफल प्रयास किये गए जिसमे वर्ष 2011 में केंद्र सरकार और 2015 में कर्नाटक सरकार द्वारा किया गया प्रयास शामिल है. अब बारी बिहार की हैं जिसने 7 जनवरी 2023 से प्रदेश में अपने खर्चे पर जातिगत जनगणना करवाने की अधिसूचना जरी कर चुकी है।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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