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कलकत्ता वाली ट्राम-सेवा, 19वीं सदी में पटना की सड़कों पर भी दौड़ती थी

कलकत्ता में ट्राम-सेवा आज भी चलती है, मुंबई के फ़्लोर फ़ाउंटेन के आस पास आज भी ट्राम की पटरियाँ देखी जा सकती है, लेकिन पटना में वर्ष 1903 तक चलने वाली ट्राम का आज कोई निशान नहीं है। इसके अलावा हिंदुस्तान के चेन्नई, कानपुर, और दिल्ली जैसे शहरों में भी ट्राम-सेवा शुरू किया गया था जिसका आज कोई नामों-निशान नहीं है। 

ऐसा नहीं है कि पटना ट्राम-सेवा घाटे में चल रही थी इसलिए उसे बंद किया गया। वर्ष 1898-99 की रिपोर्ट के अनुसार उस वर्ष पटना ट्रामवे को 4397 रुपए का मुनाफ़ा हुआ था। इसका किराया एक आना प्रति मील हुआ करता था। पर लोगों की शिकायत थी कि चुकी ट्राम का संचालन पटना नगर निगम द्वारा किया जाता था इसलिए सरकारी हुक्मरान अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी ट्राम को लम्बे समय तक रोक लेते थे और ट्राम को अपनी निजी सुविधा के अनुसार चलाने लगे थे।

पटना ट्राम-सेवा
चित्र: पटना के गुर्हत्ता के पास वर्ष 1896 में खड़ी घोड़ा ट्राम।

दूसरी तरफ़ पटना में निजी घोड़े-बग्घी और पालकी का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ने लगा था जो लोगों को अधिक सस्ता और सुगम प्रतीत होता था। इसी दौरान वर्ष 1912 में बिहार-ओड़िसा को बंगाल से अलग पृथक राज्य बना दिया गया और पटना को राजधानी बनाया गया और पटना की आबादी भी बढ़ी लेकिन पटना में ट्राम-सेवा फिर से प्रारम्भ करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

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वर्ष 1903 में घोड़ा ट्राम बंद होने के बाद एक यूरोपियन कम्पनी ने पटना में बिजली से चलने वाला ट्राम चलाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन कुछ ही वर्षों के भीतर पटना की सड़कों से ट्राम की पटरी को उखाड़कर लोगों ने अपने घरों में लगा लिया। 

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चित्र: कानपुर के नई सड़क पर खड़ी बिजली से चलने वाली ट्राम। स्त्रोत: पुस्तक ‘कानपुर: काल, आज और कल’

पटना में ट्राम-सेवा की शुरुआत वर्ष 1886 में हुई जब इसे घोड़ा से खिंचा जाता था। इसका निर्माण पटना ट्रामवे कम्पनी द्वारा किया गया था जिसमें पटना के रईस क़ाज़ी रजा हुसैन की हिस्सेदारी थी। पटना शहर रेल्वे स्टेशन से लेकर गंगा किनारे गांधी मैदान, सब्ज़ी बाग, होते हुए बांकीपुर कोर्ट (पिरबहोर) तक जाती थी। बाद में पटना के इस ट्राम सेवा को दानापुर व मनेर तक विस्तारित करने की भी योजना थी जो कभी पूरा नहीं हो सकी।

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चित्र: दिल्ली में ट्राम-सेवा, स्त्रोत: Oldindianphoto

पटना के परे ट्राम-सेवा:

कानपुर में ट्राम-सेवा जून 1907 में शुरू की गई थी और 16 मई 1933 तक चली थी। इस दौरान यहाँ ट्राम ईस्ट इंडिया रेल्वे स्टेशन से घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा होते हुए सरसैया घाट तक लगभग चार मील का रास्ता तय करती थी। नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्ग़ा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड भी बना हुआ था। 

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चित्र: मुंबई का दो मंज़िल वाला ट्राम जिसे सितम्बर 1920 से शुरू किया गया था।

मुंबई में घोड़े से चलने वाली ट्राम-सेवा 9 मई 1874 को शुरू हुई और बिजली से चलने वाला ट्राम भी 1907 में शुरू किया गया वहीं दिल्ली में अगले वर्ष 1908 में में बिजली से चलने वाली ट्राम सेवा प्रारम्भ हुआ। कलकत्ता में पहली बार ट्राम चलाने का प्रयास 1873 में किया गया था जब एक वर्ष के भीतर ही इस ट्राम-सेवा को बंद कर दिया गया। वर्ष 1882 में कलकत्ता में भाप से चलने वाली ट्राम-सेवा की शुरुआत की गई और वर्ष 1902 में बिजली से चलने वाली।

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चित्र: चेन्नई की सड़कों पर दौड़ने वाली ट्राम।

मुंबई एक मात्र शहर था जहां दो मंज़िल वाली ट्राम चलती थी लेकिन 31 मार्च 1964 से मुंबई में सभी तरह की ट्राम सेवा को बंद कर दिया गया। इसी तरह चेन्नई (मद्रास) में ट्राम-सेवा छः दशक के सफल संचालन के बाद 12 अप्रिल 1953 को बंद कर दिया गया। एक अनुमान के अनुसार चेन्नई के इस ट्राम में प्रत्येक दिन लगभग एक लाख लोग यात्रा करते थे।

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Sweety Tindde
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Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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