इतिहास में महिला मुक्ति के कई प्रतीक बने और बिगड़े। 1920 के दशक के दौरान अमेरिका में सिगरेट पीना भी महिला मुक्ति का प्रतीक बनकर उभरा। उस दौर में सिगरेट को ‘आज़ादी की मशाल’ (Torch of Freedom) बोला गया। महिला मुक्ति के इस प्रतीक को सफल बनाने के पीछे सिगरेट कम्पनीयों का बहुत बड़ा हाथ था। 1990 का दशक आते आते सिगरेट का यह प्रतीक अमेरिका से निकलकर विश्व के अन्य देशों तक पहुँचने लगा लेकिन तब तक विश्व में तम्बाकू के सेवन के ख़िलाफ़ मुहिम भी प्रारम्भ हो गई थी। वर्ष 1988 से प्रत्येक वर्ष 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाने का फ़ैसला लिया गया।
सिगरेट निर्माता और महिला मुक्ति:
अमरीका में महिलाओं को मतदान का अधिकार वर्ष 1920 तक इंतज़ार करना पड़ा था लेकिन जब अमरीकी महिलाओं को वर्ष 1920 में मतदान का अधिकार मिला तो इस घटना ने अमरीका में महिला समानता व महिला मुक्ति की लड़ाई को एक नयी ऊर्जा प्रदान की। सिगरेट निर्माताओं ने महिला सशक्तिकरण की इस नयी ऊर्जा का इस्तेमाल करने का हर सम्भव प्रयास किया।
अमेरिकन टबैको कम्पनी के अध्यक्ष जॉर्ज वॉशिंटॉन हिल ने महिलाओं के बीच सिगरेट सेवन को प्रचारित करने के लिए वर्ष 1929 में उन्होंने अपने सहयोगी Ed Bernays के साथ मिलकर न्यू यॉर्क में ईस्टर संडे परेड में महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर प्रेरित करने का प्रयास किया। महिलाओं ने परेड में सार्वजनिक तौर पर सिगरेट पिया जिसके लिए अमेरिकन टबैको कम्पनी ने उन्हें सम्मानित भी किया। इसके लिए उन्होंने ऐसे महिलाओं को चुना जो सुंदर दिखे लेकिन अति-आधुनिक नहीं बल्कि सामान्य मध्य वर्ग की महिला परिवार की हो। वॉशिंटॉन हिल का यह सिगरेट प्रचार सफल हुआ।

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उस दौर की एक नारिवादी महिला पत्रकार रूथ हाले ने इस कदम को ‘Women! Light another torch of freedom! Fight another sex taboo!’ शीर्षक से छापा। इस कार्यक्रम की खबर पूरे अमरीका में आग की तरह फैली और इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा-परिचर्चा होने लगी। सिगरेट निर्माता कम्पनीयों के अनुसार इस तरह के सार्वजनिक परेड से महिलाओं को परिपक्व तरीक़े से सिगरेट पकड़ना और पीना सिखाया गया क्यूँकि उन्हें सिगरेट पीना या पकड़ना नहीं आता था जिसके लिए उनका सार्वजनिक तौर पर मज़ाक़ उड़ाया जाता था। अर्थात् ये सिगरेट कम्पनीयाँ महिला मुक्ति की लड़ाई में अपना सामाजिक योगदान दे रहे थे।
एक आँकड़े के अनुसार वर्ष 1923 में अमेरिका में बिकने वाले कुल सिगरेट में से मात्र 5 प्रतिशत सिगरेट महिलाएँ ख़रीदती थी। वर्ष 1935 आते आते यह अनुपात 18.1 प्रतिशत हो गया और वर्ष 1965 में यह 33.33 प्रतिशत तक पहुँच गया। इन सिगरेट कम्पनीयों के अनुसार 1965 तक आधे से अधिक महिला सिगरेट पीकर महिला मुक्ति का प्रमाण दे चुकी थी। इसी तरह स्पेन में वर्ष 1978 से 1997 के दौरान सिगरेट पीने वाली महिलाओं का अनुपात 17 प्रतिशत से बढ़कर 27 प्रतिशत हो गई। इसका प्रभाव जापान, जर्मनी जैसे अन्य देशों में भी पड़ा।

सिगरेट और स्वास्थ्य:
इसके पहले 19वीं सदी तक यूरोप में सिगरेट को वैश्या और चरित्रहिन औरतों के साथ जोड़ा जाता था। 20वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों के दौरान अमरीका के कई राज्यों और यूरोप के कई देशों में क़ानून लाकर महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर सिगरेट पीने से प्रतिबंधित किया था। हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप और अमरीका के ज़्यादातर मर्दों का युद्ध में शामिल होने के कारण कल-कारख़ानों को चलाने की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर आ गई थी। पुरुषों के कामों में संलिप्त होने के साथ साथ महिलाएँ पुरुषों की तरह कपड़े भी पहनने लगी और महिलाओं द्वारा सिगरेट भी पीने का प्रचलन बढ़ने लगा।
अगले कई दशकों तक सिगरेट के प्रचार के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाए गए। कुछ विज्ञापनों में तो सिगरेट को अस्थमा, हे बुख़ार, दांत से सम्बंधित सभी तरह की बीमारियों का इलाज तक बता दिया गया और इसके लिए विज्ञापनों में डॉक्टरों का इस्तेमाल किया गया। विज्ञापन विशेषज्ञों के अनुसार आधुनिक विश्व के इतिहास में विज्ञापन प्रोपेगेंडा का यह पहला सर्वाधिक सफल उदाहरण है जिसमें झूठ को मज़बूत प्रचारतंत्र की मदद से सच बना दिया गया। 21वीं सदी के दौरान जब ई-सिगरेट को साधारण सिगरेट का विकल्प के रूप में प्रचारित करने का प्रयास किया गया तो उसी तरह के प्रचार तंत्र का इस्तेमाल किया गया जैसा कि 1920 के दशक से लगातार हो रहा था।

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