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टाइमलाइन तमाशा: 1951 से 2023 तक लोक प्रतिनिधित्व क़ानून और राज-नेताओं का सफ़र

वर्ष 1951 से वर्ष 2023 के दौरान कई ऐसे मौक़े आएँ जब सांसदों और विधायकों को देश की विभिन्न अदालतों ने सजा दिया। इन दोषी रजनेताओं में से जिसे दो वर्ष से अधिक जेल की सजा हुई उक्त सांसद या विधायक की संसद/विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई और जेल की सजा समाप्त होने के छः वर्षों के बाद तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित भी कर दिया गया था। वर्ष 1951 से वर्ष 2023 के दौरान इस विषय से सम्बंधित क़ानूनों में कई बार संसोधन भी किया गया जिसकी क्रमवार सूची निम्न है:

1951:

Representation of the People Act के तहत अगर कोई नेता को दो या दो से अधिक वर्ष की सजा मिलती है तो तीन महीने के भीतर उसकी संसद/विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जाएगी लेकिन इन तीन महीनो में अगर किसी उच्च न्यायालय ने उस केस में निचली न्यायालय के फ़ैसले पर स्टे लगा दिया तो उक्त राजनेता की सदस्यता समाप्त नहीं होगी। इसके अलावा इस क़ानून के अनुसार किसी जनप्रतिनिधि की सदन की सदस्यता निरस्त करने का आख़री फ़ैसला लेने का अधिकार देश के राष्ट्रपति का होगा जो इस विषय पर चुनाव आयोग से सलाह लेकर फ़ैसला लेंगे।

एच जी मुद्दल हिंदुस्तान के पहले नेता थे जिनकी सदस्यता ख़त्म इस आरोप में किया गया था कि उन्होंने संसद में सवाल करने के लिए किसी से पैसे लिए थे।

1975:

12 जून 1975 को इलाहबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग के मामले में इंदिरा गांधी को दोषी पाते हुए सजा सुनाई। उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को अपने से इस्तीफ़ा देने के लिए बीस दिन का समय दिया लेकिन 13वें दिन ही इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। 

1976:

15 नवम्बर 1976 को संघ और भाजपा नेता सभ्रमण्यम स्वामी की राज्यसभा सदस्यता देशद्रोह के आरोप में ख़त्म कर दी गई थी।

1977:

वर्ष 1977 में जब देश में दुबारा चुनाव हुआ जिसमें इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस की हार हुई और देश में पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार बनी। इंदिरा गांधी इस चुनाव में राय बरेली से चुनाव संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ी लेकिन हार गई। 12 जून 1975 को इलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फ़ैसले के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में इंदिरा गांधी के उपर फिर से मुक़दमा चलाया गया। 8 दिसम्बर से 20 दिसम्बर के दौरान इस केस की देश की सर्वोच्च न्यायालय में बहस चली। 

1978:

20 दिसम्बर 1978 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में फ़ैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी को दोषी पाया गया और सजा सुनाई गई। चुकी 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी सांसद नहीं बन पायी थी इसलिए उनकी संसद सदस्यता ख़त्म करने का कोई मामला नहीं बचा लेकिन इंदिरा गांधी को दोषी साबित होने के बाद उनपर अगले छः वर्षों तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लगा दिया गया। 

1980:

वर्ष 1979 में जनता पार्टी के सरकार अल्पमत में आकर गिर गई। जनवरी 1980 में देश में फिर लोक सभा चुनाव हुआ जिसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की विजय हुई। इंदिरा गांधी स्वयं दो संसदीय क्षेत्र (राय बरेली और मेडक) से चुनाव लड़ी और दोनो जगह से विजयी हुई। 

1981:

7 मई 1981 को इंदिरा गांधी को छः वर्ष के लिए सांसद की सदस्यता से निरस्त करने सम्बन्धी सांसद के फ़ैसले को निरस्त कर दिया गया।  

इसे भी पढ़े: ‘गुजरात मॉडल: फ़र्ज़ी केस में कांग्रेस नेता को 12 वर्ष जेल और फिर बाइज़्ज़त बरी’

2002:

ADR द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह फ़ैसला दिया कि मतदाताओं को यह अधिकार है कि उनके उम्मीदवारों के उपर किस तरह के कितने आपराधिक मामले हैं। इस आधार पर किसी भी चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया कि वो चुनाव आयोग को अपनी आपराधिक मामलों की पूरा विवरण दे। इस विवरण में किसी तरह की ग़लत जानकारी होने पर उम्मीदवार के ख़िलाफ़ आपराधिक केस चलने और दो वर्ष तक सजा का भी प्रावधान रखा गया है।

2005:

सर्वोच्च न्यायालय में यह अपील किया गया कि अगर पूर्व जनप्रतिनिधि को सजा मिलने के तुरंत बाद चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है तो फिर सिटिंग जनप्रतिनिधि को तुरंत सदस्यता समाप्त क्यूँ नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने फ़ैसला देते हुए कहा कि सिटिंग जनप्रतिनिधि को इसलिए नहीं किया जा सकता है क्यूँकि तत्कालीन जनप्रतिनिधि के सदस्यता समाप्त होने से सदन की कार्यवाही और सरकार के कामकाज पर फ़र्क़ पड़ेगा और अगर आगे चलकर उच्च न्यायालय सजा को निरस्त कर देती है तो जनप्रतिनिधि के साथ साथ जनता के निलम्बन के दौरान हुई क्षति को वापस नहीं किया जा सकता है। 

इसी तरह का एक मामला गुजरात में आया था जिसमें कांग्रेस के एक पूर्व विधायक मोहम्मद सुरती पर 12 वर्ष मुक़दमा चला जिसमें पाँच वर्ष वो जेल में भी रहे लेकिन जुलाई 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें निर्दोष घोषित किया लेकिन उनकी राजनीतिक जीवन की हुई क्षति का भरपाई नहीं कर पायी।

2013:

लिली टॉमस बनाम भारत सरकार केस में 10 जुलाई 2013 को सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला दिया कि अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो वर्ष की सजा मिल जाती है तो उनकी संसद सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी। इस फ़ैसले में यह भी कहा गया कि अगर कोई भी उच्च न्यायालय निचली अदालत के फ़ैसले को रद्द कर देती है तो उक्त जनप्रतिनिधि की संसद सदस्यता पुनः बहाल हो जाएगी। लेकिन मोहम्मद फैज़ल के मामले में संसद ने उनकी सदस्यता को लम्बे समय तक पुनः बहाल नहीं किया। 

सर्वोच्च न्यायालय के इस फ़ैसले के एवज़ में राज्य सभा में Representation of the People Act 1951 में संसोधन का प्रस्ताव रखा गया जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से तब तक नहीं रोका जा सकता है जब तक उक्त व्यक्ति का केस किसी भी अदालत में चल रहा हो और अंतिम फ़ैसला नहीं आया हो।

6 अगस्त 2013 से पहले लोक सभा और राज्य सभा दोनो में यह संसोधन प्रस्ताव पास हो गया और राष्ट्रपती के पास सहमति के लिए भेजा गया लेकिन राहुल गांधी ने इस संसोधन प्रस्ताव को सार्वजनिक तौर पर फाड़ दिया और इसका विरोध किया जिसके बाद सरकार ने इस संसोधन प्रस्ताव को वापस ले लिए। अगर यह बिल उस समय पास हो जाता तो 2023 में राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द नहीं होती।

सितम्बर 2013: लालू यादव के साथ जगदीश शर्मा को चारा घोटाला में क्रमशः पाँच और चार वर्ष की कारावास की सजा दी गई जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई। लालू यादव उस समय बिहार के सारण लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे। इसी समय उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद रशीद मालिक को भी मेडिकल कॉलेज में दाख़िले के केस में सजा के तहत संसद की सदस्यता छिन ली गई। 

अक्तूबर 2013: मध्यप्रदेश से भाजपा विधायक रमा देवी का अपनी नौकरानी को जलाकर मारने के जुर्म में दस वर्ष की सजा सुनाई गई और उनकी मध्यप्रदेश विधानसभा की सदस्यता ख़त्म कर दी गई। 

दिसम्बर 2023: महाराष्ट्र के पूर्व कांग्रेस विधायक पप्पू कलानी को 23 वर्ष पुराने हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा दी गई। 

2014:

भारत के क़ानून आयोग की 244वीं रिपोर्ट में यह कहा गया कि अपराधी प्रवृति के जनप्रतिनिधि को सजा मिलने के बाद चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने का नियम कारगर नहीं साबित हो रहा है। आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि जनप्रतिनिधियो पर कुछ विशेष परिस्थियों में अपराध साबित होने से पहले ही चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया जाय तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं। आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि चुनावी नॉमिनेशन पत्र में उम्मीदवारों द्वारा दी गई आपराधिक जानकारी ग़लत साबित होने पर न्यूनतम सजा दो वर्ष होनी चाहिए और ग़लत जानकारी देने के अपराध में उम्मीदवार को अगले छः वर्षों तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए।

वर्ष 2005 में ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जयललिता को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में चार वर्ष की सजा हुई और उनकी संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई। इसी तरह झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री और झारखंड पार्टी के नेता एनोस एक्का को वर्ष 2014 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई।

मार्च 2014 में महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और शिवसेना नेता Babanrao Gholap को आय से अधिक सम्पत्ति रखने के मामले में तीन वर्ष की सजा हुई जिसके बाद उन्हें अगले छः वर्षों तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया। अगले महीने अप्रिल 2014 में DMK सांसद T. M. Selvaganapathy को दो वर्षों की सजा मिली जिसके बाद उन्होंने स्वयं पद से त्याग दे दिया। इसी तरह मई में भाजपा नेता Suresh Halvankar की महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्यता बिजली चोरी के मामले सजा मिलने के बाद रद्द कर दी गई।

2015:

जून 2015 में झारखंड के अजसु पार्टी के नेता Kamal Kishore Bhagat को हत्या के मामले में सात साल की सजा मिलने के बाद उनकी झारखंड विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो गई। उस समय वो झारखंड में भाजपा की गठबंधन सरकार का हिस्सा था।

2018:

25 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने पब्लिक इंट्रेस्ट फ़ाउंडेशन बनाम चुनाव आयोग केस में फ़ैसला देते हुए कहा कि देश की न्यायपालिका यह तय नहीं कर सकती है कि जिस व्यक्ति के उपर कोई आपराधिक मामला दर्ज है लेकिन कोर्ट का फ़ैसला नहीं आया हो ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने अधिकार हो या नहीं।

अगले दिन 26 सितम्बर को लोक प्रहरी बनाम भारतीय चुनाव आयोग केस में सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला दिया कि अगर किसी राजनेता के ख़िलाफ़ मिली सजा के ख़िलाफ़ किसी उच्च न्यायालय में मामला चल रहा है तो उक्त राजनेता की संसद सदस्यता समाप्त नहीं हो सकती है। 

2020:

उन्नाव बलात्कार मामले में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी पाया गया और उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता से निष्कासित कर दिया गया। 

2021:

हरियाणा से कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को जनवरी 2021 में तीन वर्ष की सजा मिली और हरियाणा विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई।  

2022:

जुलाई 2022: बिहार से RJD विधायक अनंत सिंह की विधानसभा सदस्यता निरस्त कर दी गई। 

अक्तूबर 2022: समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान को 2019 के चुनाव के दौरान नफ़रती भाषण मामले में तीन वर्ष की सजा मिली जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई। इसी समय बिहार के RJD विधायक अनिल कुमार सहनी को भी फ़्रॉड के केस में और उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायक विक्रम सिंह सैनी को मुज़फ़्फ़रनगर दंगे में तीन व दो वर्ष की सजा मिली जिसके बाद उनकी बिहार विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई। 

2023:

जनवरी 2023: 11 जनवरी 2023 में केरल की कवरत्ती सेशन कोर्ट ने लक्षद्वीप के सांसद पी॰पी॰ मोहम्मद फैज़ल को हत्या के प्रयास के मामले में दस वर्षों की सजा सुनाई और 13 जनवरी 2023 को भारतीय संसद ने उनकी सदस्यता समाप्त कर दी। इसके बाद भारतीय 18 जनवरी 2023 में ही निर्वाचन आयोग ने उक्त संसदीय क्षेत्र में मध्यावधि चुनाव करवाने का नोटिस जारी किया। 

इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ मोहम्मद फैज़ल ने केरल उच्च न्यायालय में सुनवाई याचिका लगाई जिसपर 25 जनवरी 2023 को फ़ैसला देते हुए उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई दस वर्ष की सजा पर रोक लगा दिया। मोहम्मद फैज़ल ने चुनाव आयोग द्वारा मध्यावधि चुनाव करवाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ भी देश की सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाली जिसके बाद 28 जनवरी 2023 को चुनाव आयोग ने मध्यावधि चुनाव करवाने सम्बन्धी अपनी पुरानी घोषण वापस ले लिया। लेकिन आज (मार्च 2023) तक फैज़ल की संसद सदस्यता पुनः बहाल नहीं की गई है। 

फ़रवरी 2023: समाजवादी विधायक और आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला आज़म खान को 31 दिसम्बर 2007 को  एक धरना देने के जुर्म में फ़रवरी 2023 में दो वर्ष की सजा मिलि जिसके बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई। 

23 मार्च 2023: गुजरात की एक स्थानीय न्यायालय ने राहुल गांधी पर एक समुदाय को बदनाम करने के केस में 23 मार्च 2023 को दो वर्ष की सजा सुनाई। 24 घंटे के भीतर अगले दिन 24 मार्च 2023 को संसद ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त कर दिया। 

जेल में नेता:

1951 से 2023 तक के उपरोक्त टाइमलाइन का अलावा हिंदुस्तान में कई ऐसे नेता हुए जिनको देश की न्यायालय ने तब सजा दी जब उनका जनप्रतिनिधि का कार्यकाल ख़त्म हो चुका था लेकिन दो वर्ष से अधिक जेल की सजा मिलने के कारण कभी दुबारा चुनाव नहीं लड़ पाए। इनमे से कुछ प्रमुख नाम है बिहार के शहाबुद्दीन, सूरजभान सिंह, आनंद मोहन, प्रभुनाथ सिंह आदि।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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