Book Name: “The Unquiet Woods: Ecological Change and Peasant Resistance in the Himalaya”
Author: Ramchandra Guha
Year Published: 1989 A.D.
Unquiet Woods:
हिंदुस्तान के विख्यात आधुनिक इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा द्वारा वर्ष 1989 में प्रकाशित ‘“The Unquiet Woods: Ecological Change and Peasant Resistance in the Himalaya” उत्तराखंड के इतिहास और ख़ासकर पहाड़ों के पर्यावरण के इतिहास को समझने के लिए उपलब्ध सर्वोत्तम किताबों में से एक है।
यह किताब मुख्यतः अपनी यात्रा पहाड़ों में अंग्रेज़ी शासन काल से शुरू करती है और थोड़ा समय अंग्रेज़ी वन क़ानून और उसके ख़िलाफ़ उठने वाली प्रतिरोधों का विवरण देते हुए, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पहाड़ों की भूमिका को पर्यावरण और वन क़ानून से जोड़ते हुए चिपको आंदोलन तक पहुँचती है। चिपको आंदोलन पर आकर ये किताब थम सी जाती है और लगभग हर पहलुओं को समझने का मौक़ा देती है, जिसमें ईको-फ़ेमिनिज़म से लेकर कम्यूनिटी फ़ॉरेस्ट मैनज्मेंट और प्रतिरोध जताने की स्थानीय ‘धंधक प्रथा’ का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए आगे बढ़ती है। किताब चिपको आंदोलन के जड़ को अंग्रेज़ी शासनकाल के दौरान अंग्रेजों के साथ-साथ टेहरी के राजा के शासन-प्रशासन विधि में बखूबी ढूँढने का प्रयास करती है।
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देश और विदेशों के प्रसिद्ध विश्व-विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त एक इतिहासकार लेखक कैसे कम सूचना और पहाड़ों को बहुत कम घूमकर कैसे सामाजिक-विज्ञान के अलग-अलग सिद्धांतो का इस्तेमाल करके और शब्दों के साथ खेलकर एक बेहतरीन किताब लिख सकता है, इसका जीता जगत उदाहरण है रामचंद्र गुहा द्वारा लिखित यह किताब।
इस किताब के लेखन में शेखर पाठक की भूमिका को कम आंकना भूल होगी लेकिन इसके साथ साथ यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस किताब ने शेखर पाठक की पहाड़ों के साथ जुड़ाव और आत्मीयता के साथ न्याय नहीं करता है। यह किताब न तो पृथक उत्तराखंड राज्य की ओर इशारा करता है और न ही टेहरी बांध आंदोलन की तरफ़। यह किताब पहाड़ के पेड़ों को आवाज़ (अनक्वाइयट का मतलब जो चुप न हो) तो देता है पर यहाँ के लोगों की आवाज़ को कई जगहों पर अनदेखा करते हुए आगे बढ़ता रहता है।
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