क्या आपको पता है कि भारतीय संविधान सभा में एकमात्र यादव नेता कौन थे? क्या आपको ये भी पता है कि हिंदुस्तान के पहले यादव मुख्यमंत्री कौन थे? या फिर ये पता है हिंदुस्तान के पहले यादव सांसद कौन थे? आज गुमनाम नेताजी के इस एपिसोड में हम आपको बताएँगे उन दस यादव नेताओं के बारे में जिन्हें यादव समाज भी कभी याद भी नहीं करता है। इन नेताओं के जीवन से जुड़ी हुई लगभग सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समेटने का प्रयास करेंगे।
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यादव नेताओं की सूची:
- कमलेश्वरी प्रसाद यादव: कमलेश्वरी प्रसाद यादव भारतीय संविधान सभा के 299 सदस्यों में से एकमात्र यादव सदस्य थे। हालाँकि संविधान सभा का सदस्य होने के बावजूद जब 1950 में संविधान लागू होने के बाद नेहरू के नेतृत्व में हिंदुस्तान की पहली प्रविज़नल गवर्न्मेंट का गठन किया गया तो उसमें मनोनीत सांसदों की सूची में से कमलेश्वरी प्रसाद यादव का नाम हटा दिया था।
- बाली राम भगत: इनका सरनेम भगत ज़रूर है लेकिन थे ये यादव समाज से ही, यदुवंशी समाज। ये गणतंत्र भारत के पहले यादव सांसद थे, लेकिन मनोनीत। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद नेहरू की अध्यक्षता में बनी आज़ाद हिंदुस्तान की पहली सरकार में ये सांसद मनोनीत हुए थे। लेकिन इनकी ट्रैजेडी ये है कि इन्हें देश के पहले लोकसभा चुनाव यानी की 1952 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। लोकसभा तो छोड़ीये उसी साल बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया था।
- चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव: ये न सिर्फ़ दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री थे बल्कि पूरे हिंदुस्तान में यादव समाज से नाता रखने वाले पहले यादव मुख्यमंत्री थे। ये सन 1952 से 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे और क्या पता आगे भी रहते लेकिन 1956 में दिल्ली से राज्य का दर्जा छीन लिया गया। अगले लगभग चालीस वर्षों तक दिल्ली में न कोई विधानसभा का चुनाव हुआ और न ही कोई मुख्यमंत्री नहीं बना। दिल्ली की सरकार राष्ट्रपति की देखरेख में दिल्ली के लेफ़्टिनेंट गवर्नर चलाया करते थे। दिल्ली में विधानसभा का चुनाव दुबारा साल 1993 में शुरू हुआ और फिर मुख्यमंत्री बनने लगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री का कार्यकाल ख़त्म करने के बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली से चार बार सांसद निर्वाचित हुए।
- इसके बाद नम्बर आता है एक ऐसे मुख्यमंत्री की जो हिंदुस्तान में यादव समाज से दूसरे मुख्यमंत्री तो थे लेकिन उनकी राष्ट्रीय पहचान OBC आरक्षण की पैरवी करने के लिए जाना जाता है। B P मण्डल यानी बिंदेश्वरी प्रसाद मण्डल, बिहार के थे। ज़मींदार घराने से थे। 1 February 1968 से 22 March 1968 तक 51 दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे। इनके जीवन के बहुत ऐसे पहलू हैं जिनके बारे में बहुत कम ही चर्चा की जाती है और इनकी विरासत को मंडल आयोग तक समेटने का प्रयास किया जाता है।
- इस लिस्ट में पाँचवाँ नाम आपको यादव जैसा नहीं लगेगा लेकिन वो यादव ही थे। आज़ाद हिंदुस्तान में पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री और आज़ाद हिंदुस्तान के पहले यादव मुख्यमंत्री यादव थे। इनका नाम था प्रफुल्ल चंद्र घोष। लेकिन ये निर्वाचित मुख्यमंत्री नहीं थे। पहले निर्वाचित यादव मुख्यमंत्री तो दिल्ली के मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश ही थे। दरअसल हिंदुस्तान में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से पहले जितने भी मुख्यमंत्री बने थे वो राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते थे न कि देश की जनता द्वारा मतदान से निर्वाचित होते थे।
- इस लिस्ट में अगले नम्बर पर वो छुपे रुस्तम नेता हैं जिनके शिष्य ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में यादवों का डंका बजाया। जी आपने ठीक पहचाना, मुलायम सिंह यादव जिन्हें उनके समर्थक नेता जी बोलना अधिक पसंद करते हैं। लेकिन हम मुलायम सिंह जी की नहीं उनके गुरु उदय प्रताप सिंह की बात कर रहे हैं। सिंह टाइटल पर मत जाइए। इनका जन्म साल 1932 में मैनपुर में हरिहर सिंह चौधरी और पुष्पा यादव के घर में हुआ था। इनकी पत्नी का नाम भी चैतन्य यादव ही है। मुलायम सिंह को न सिर्फ़ इन्होंने कॉलेज में पढ़ाया बल्कि राजनीति के गलियारे में भी खूब पढ़ाया। 1995 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई तो गुरु ने गुरु धर्म निभाया और शिष्य के लिए 1996 के लोकसभा चुनाव में अपना मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र छोड़ दिया। बदले में शिष्य ने 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का सपथ दुबारा लेने से पहले गुरु जी को राज्य सभा सांसद का सपथ दिलवाया।
- “आया राम, गया राम।” उत्तर भारत का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा जो इस जुमले का इस्तेमाल नहीं करता हो या नहीं करना जानता हो। लेकिन क्या आपको पता है इस जुमले या इस मुहावरे के जनक कौन है? जी हाँ इस लिस्ट में अगर हमने इस मुहावरे को शामिल किया है तो इसका मतलब, इस मुहावरे को जन्म देने वाला भी एक यादव ही था। हरियाणा के राजघराने के राजकुमार, राव बिरेंद सिंह, जो आगे चलकर हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बनते हैं, पंजाब सरकार के साथ साथ भारत सरकार में भी मंत्री बनते हैं। 1967 में जब ये हरियाणा के मुख्यमंत्री बने तो विधायकों ने घंटे-घंटे, और हफ़्ते-हफ़्ते भर के भीतर इतनी बार अपनी पार्टी बदली की राव वीरेंद्र ने ऐसे ही एक निर्दलीय विधायक गया लाल को अपनी पार्टी में शामिल करते हुए ‘आया राम गया राम’ का मुहावरा इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, ‘गया राम अब आया राम हो गए हैं’। गया लाल ने चौविस घंटे के भीतर चार बार अपनी पार्टी बदली थी। इसके बाद अलगे एक साल तक हरियाणा में कई नेताओं ने जमकर अपनी पार्टी बदली और अंततः 1968 में हरियाणा विधानसभा को भंग कर दिया गया। इस मुहावरे का सत्ता के गलियारों में ऐसा असर हुआ की केंद्र सरकार को आगे चलकर दल-बदल क़ानून तक लाना पड़ा।
- इस सूची में आँठवा नाम है रास बिहारी लाल मंडल का, जो बिहार के है, लेकिन उनके बारे में आपको मुश्किल ही कोई जानकारी मिलेगी। रास बिहारी लाल मंडल बिहार के भागलपुर क्षेत्र में मुरहो ज़मींदारी क्षेत्र के ज़मींदार थे। इन्हें फ़्रेंच, फ़ारसी, संस्कृत, मैथिली समेत छे भाषाओं का ज्ञान था। बंगाल विभाजन के दौरान इन्होंने विरोध में एक किताब भी लिखी थी, “भारत माता का संदेश”। 1885 में जब कांग्रेस की स्थापना हुई थी तो कांग्रेस के 72 संस्थापक सदस्यों में से एक नाम इनका भी था। इनके ऊपर अंग्रेजों ने लगभग 120 अलग अलग मामले में मुक़दमे किया था। इन्होंने यादवों की पहली जातीय सभा, ‘गोप जातीय महासभा’ की स्थापना साल 1911 में किया था। बाद में गोप जातीय महासभा और अहीर क्षत्रिय महासभा को मिलाकर All India Yadav Mahasabha का भी गठन किया गया। ये बी पी मण्डल के पिता भी थे।
- इस लिस्ट में हमने आख़री नाम लालू यादव का रखा है क्यूँकि लालू जी के बारे में भी कई ऐसे तथ्य है जो गुमनाम है। उदाहरण के लिए सबको यह तो पता है कि 1977 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान सर्वाधिक मतों के अंतर से चुनाव जीतकर गिनीज़ बुक ओफ़ वर्ल्ड रेकर्ड में अपना नाम दर्ज करवाए थे लेकिन क्या आपको ये पता है कि उसी चुनाव में राम विलास पासवान के बाद दूसरे नम्बर पर सर्वाधिक वोटों से चुनाव जितने वाले नेता का नाम क्या था? जी हाँ वो लालू जी ही थे। ऐसे कई रोचक जानकरियाँ जो हम आपको बता सकते हैं।
- इस दस यादवों की सूची में हमने दसवाँ नाम जानबूझकर ख़ाली रखा है ताकि आपकी तरफ़ से किसी नाम का सुझाव आए। इस दसवें नम्बर पर ऐसे व्यक्ति का नाम आए जिनका समाज के उत्थान और सम्मान दोनो में योगदान भी बहुत है और उनके बारे में लिखा भी बहुत कम गया हो।

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