तारकेश्वरी सिन्हा हिंदुस्तान का एकमात्र महिला जो लगातार चार बार सांसद निर्वाचित हुई थी। देश की दूसरी महिला जो चार या चार बार से अधिक निर्वाचित होकर सांसद तक पहुँची वो थी रामदुलारी सिन्हा। 2001 में हिंदू को दिए गए अपने एक इंटर्व्यू में गुलज़ार ने कहा था कि जब उन्होंने आँधी फ़िल्म बनाने की सोची थी तो दो किरदार उनके दिमाग़ में आइ थी। एक थी इंदिरा गांधी और दूसरी थी तारकेश्वरी सिन्हा। तारकेश्वरी सिन्हा को ‘बेबी ओफ़ द हाउस’ और ‘ग्लैमर गर्ल ओफ़ इंडीयन पार्लमेंट’ भी कहा जाता था।
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19 वर्ष की उम्र में बांकीपुर गर्ल कॉलेज (मगध महिला कॉलेज, पटना) में पढ़ने वाली एक छात्रा ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का हिस्सा बनी, AISF से अलग होकर बिहार स्टूडेंट कांग्रेस की अध्यक्ष बनी, छपरा के ज़मींदार के साथ शादी हुई, शादीशुदा ज़िंदगी रास नहीं आया, वापस पढ़ाई के लिए लंदन स्कूल ओफ़ एकनामिक्स से अर्थशास्त्र में एम एस सी किया लेकिन पिता की मृत्यु के कारण अधूरा ही छोड़ दिया। अब तक देश आज़ाद हो चुका था, देश का संविधान लिखा जा रहा था, ज़मींदारी ख़त्म होने वाली थी। और इसी दौरान देश में पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 1952 में हुआ।
पटना पूर्वी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ी, जीती और जीती भी ऐसे कि स्वतंत्रता सेनानी शील भद्रा यजी को हरा दिया। सांसद में पहुँची तो सिर्फ़ अपनी सुंदरता नहीं बल्कि अपने भाषण से नेहरू तक का मन मोह लिया। अपनी सुंदरता के साथ उर्दू शायरों की पंक्तियाँ जब ये बोलते थे तो पूरा सांसद इनकी तरफ़ टकटकी लगाकर देखता भी था और सुनता भी था। वर्ष 1956 में नेहरू ने इन्हें द्वितीय पंचवर्षीय योजना का सदस्य भी बनाया।
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1957 में देश में दुबारा चुनाव हुआ, भारतीय संसद की बेबी गर्ल ने इस बार जेपी की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राम लखन चंदापूरी दो गुना से अधिक मात से हराया और फिर से निर्वाचित होकर संसद पहुँची और एक वर्ष के भीतर नेहरू मंत्रिमंडल का हिस्सा भी बन गई। और बनी भी तो तत्कालीन उप वित्त मंत्री। उस दौर में मोररजी देसाई वित्त मंत्री हुआ करते थे। चर्चे तो यह भी खूब चले कि वित्त मंत्री और उप-वित्त मंत्री के बीच यानी मोररजी देसाई और तारकेश्वरी सिन्हा के बीच अतरंगी समबंध थे, प्रेम का सम्बंध, एक्स्ट्रा-मेरिटल रिलेशनशिप।
इस रिश्ते की सच्चाई का तो पता नहीं लेकिन दोनो के बीच रिश्ते बहुत पक्के थे। जब 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ तो तारकेश्वरी सिन्हा ने मोररजी देसाई की तरफ़ से इंदिरा गंधीं के ख़िलाफ़ जमकर दाव खेली और इंदिरा गांधी को कांग्रेस के लिए शनिग्रह तक बता दिया था।
तारकेश्वरी और इंदिरा:
ऐसे ही एक दिन जब तारकेश्वरी सिन्हा इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ सांसद में बोल रही थी तो इंदिरा के समर्थकों ने संसद में हंगामा किया और तारकेश्वरी को बोलने नहीं दिया। इस दौरान तारकेश्वरी रो पड़ी और पूरा सांसद इस घटना मे तारकेश्वरी के पक्ष में खड़ा हो गया था। 1969 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी के उम्मीदवार वी वी गिरी को हराने का हर सम्भव प्रयास किया गया लेकिन वी वी गिरी भी जीते और इंदिरा भी जीती।
इस लड़ाई में नेहरू की इंदू भारत की इंदिरा गांधी के रूप में उभरी और तारकेश्वरी सिन्हा दुबारा कभी किसी तरह का कोई चुनाव नहीं जीत पायी। हालाँकि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का उन्होंने समर्थन किया लेकिन इंदिरा तो इंदिरा थी, अपने दुश्मन को कभी नहीं भूलती थी। आपातकाल के बाद देश में जब चुनाव होने लगा तो तारकेश्वरी सिन्हा फिर से कांग्रेस के भीतर ही इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ देवराज उर्स के साथ खड़ा हो गई। इस बार तारकेश्वरी सिन्हा के निशाने पर संजय गांधी और उनका तानाशाही रवैया रहा।
राजनीतिक लड़ाई को भूल भी जाती तो अपने पति फ़िरोज़ गांधी के साथ तारकेश्वरी सिन्हा के अतरंगी सम्बंधों की अफ़वाह को कैसे भूलती। Katherine Frank की किताब के अनुसार फ़िरोज़ गांधी ने तो एक बार सार्वजनिक तौर पर तारकेश्वरी सिन्हा के साथ सम्बंधों का इकरार कर लिया था।
इतना ही नहीं एक दिन जब इंदिरा गांधी अचानक फ़िरोज़ गांधी के बंगले पर पहुँची तो बंगले में एक साड़ी देखा जो इंदिरा गांधी जिस तरह की साड़ी पहनती थी उससे बिल्कुल अलग था। माना जाता है कि वह साड़ी फ़िरोज़ गांधी ने तारकेश्वरी सिन्हा के लिए ख़रीदा था और इंदिरा गांधी ने उस साड़ी को फाड़ दिया था। (Pranay Gupte, Mother India, p. 1044) इस तरह तारकेश्वरी सिन्हा का राजनीतिक जीवन समाप्त हुआ या कर दिया गया।
हारी हुई तारकेश्वरी सिन्हा:
राजनीति में इंदिरा से पराजित तारकेश्वरी सिन्हा ने अपने क्षेत्र नालंदा में एक हॉस्पिटल बनवाने के लिए 25 लाख चंदा जमा किया जिसमें ग़रीबों के मुफ़्त इलाज होते थे। 1983 में केंद्र राज्य सम्बंधों के लिए स्थापित सरकारिया आयोग का इन्हें सदस्य भी बनाया गया। इन्होंने डेमक्रैटिक सोशलिस्ट पार्टी का भी गठन किया। 1990 के दशक के दौरान जब बिहार जातीय नरसंहार के दौर से गुजर रहा था तब भी तारकेश्वरी सिन्हा ने सितम्बर 1996 में भूमिहार और माले के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास किया था लेकिन रणवीर सेना इनकी शांति समझौते से सहमत नहीं हुई।
1978 के मध्यवती चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार तारकेश्वरी सिन्हा को जनता पार्टी के उम्मीदवार अजित मेहता ने समस्तिपुर लोकसभा क्षेत्र से 26,864 मतों से हरा दिया। यह बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में पिछड़ों की लड़ाई का आग़ाज़ था।
तारकेश्वरी सिन्हा को राजनीति से लेकर समाज सेवा तक सभी क्षेत्रों में असफलता मिलने का सिलसिला जारी रहा। वो दुबारा कभी कोई चुनाव नहीं जीत पायी। जिस तारकेश्वरी सिन्हा का प्रारम्भिक राजनीतिक जीवन सफलताओं से भरा रहा उनके जीवन का आख़री पड़ाव असफलताओं से भरा रहा।

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