संविधान सभा में कृष्णामचारी
वर्ष था 1949, जुलाई के महीने की 30 तारीख़, आज़ाद हिंदुस्तान के संविधान लेखन की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में था और कुछ सदस्यगण कुछ विशेष मुद्दे से नाराज़ थे। सुबह आठ बजे सभा की कार्यवाही शुरू होते ही सेठ गोविंद दास ने अंधेरे में पड़े राष्ट्रगान, राष्ट्रभाषा और आज़ाद भारत के नामकरण के मुद्दे को उठाने का प्रयास करते हैं। इसपर बी॰ पत्तब्बी सीतारमाय्या टोकते हुए पूछते हैं, “मुझे लगता है कि सभी सदस्यों को यह ज्ञात होगा कि सभा कोई भी नया मुद्दा उठाने से पहले सदस्य को सभापति (राष्ट्रपति) महोदय से व्यक्तिगत रूप से इजाज़त लेनी पड़ती है।”

पंडित नेहरु और राष्ट्रपति महोदय दोनो मुद्दे में गोविंद दास के मुद्दे को सुन लिए जाने का सार्थक प्रयास कर रहे होते हैं कि इसी बीच टी॰ टी॰ कृष्णामचारी अपने सीट से उठे और राष्ट्रपति व संविधान सभा के सभापति की तरफ़ इशारा करते हुए बोले, “राष्ट्रपति महोदय, मैं आपका ध्यान एक अनियमितता की तरफ़ आकर्षित करवाना चाहता हूँ जो संविधान सभा के कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है। मैं यह जानना चाहता हूँ महोदय कि क्या आपने संविधान सभा के किसी कर्मचारी को यह अधिकार दिया है कि वो संविधान सभा के किसी भी सदस्य के ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाई करे?

दरअसल एक दिन पहले संविधान सभा के किसी कर्मचारी ने टी॰ टी॰ कृष्णामचारी के ऊपर ग़ैर-अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए उन्हें एक पत्र के द्वारा सूचित किया था कि सरकार द्वारा संविधान सभा के सदस्यों को दिया जाने वाला मुफ़्त पेट्रोल कार्ड उन्हें अगले एक हफ़्ते तक नहीं मिलेगा। कृष्णामचारी राष्ट्रपति को कहते हैं कि अगर संविधान सभा के कर्मचारियों को ये अधिकार राष्ट्रपति ने स्वयं दिया है तो भी ग़लत है।
इसे भी पढ़े: राष्ट्रगान पर क्यूँ बहस नहीं करना चाहती थी भारतीय संविधान सभा ?
राष्ट्रपति अपनी सफ़ाई में संविधान सभा के किसी कर्मचारी को इस तरह का कोई अधिकार दिए जाने से इंकार तो कर देते हैं और इस सम्बंध में जाँच के आदेश में भी देते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति इजाज़त लेने के स्वर में पूछते हैं कि “क्या अब संविधान की धारा 79-A के ऊपर कार्यवाही शुरू किया जाय?” इसके बाद संविधान सभा में बाबा साहेब अम्बेडकर धारा 79-A पर बहस प्रारम्भ करते हैं। इस फ़्री पेट्रोल कार्ड के अप्रासंगिक मुद्दे पर बहस ने कुछ नहीं तो संविधान सभा का ध्यान राष्ट्र्गान, राष्ट्रभाषा और गौ-हत्या सम्बंधी मुद्दे से संविधान सभा का ध्यान भटका दिया।

टी॰ टी॰ कृष्णामचारी
टी॰ टी॰ कृष्णामचारी तमिलनाडु के सफल उद्दयोगपति थे और मद्रास प्रांतीय विधान परिषद के निर्दलीय सदस्य भी थे। बाद में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता हासिल की और वर्ष 1946 में भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी मनोनीत हुए। ये आज़ाद हिंदुस्तान के पहले वाणिज्य व उद्दयोग मंत्री थे और दो बार हिंदुस्तान के वित्त मंत्री भी बने। वर्ष 1958 में इनपर हरिदास एक करोड़ रुपए से अधिक के मुंधरा घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा और उन्हें वित्त मंत्री से हाथ धोना पड़ा लेकिन वर्ष 1962 में इन्हें दुबारा वित्त मंत्री बनाया गया।
हरिदास मुंधरा घोटाला आज़ाद हिंदुस्तान का पहला घोटाला माना जाता है जिसपर आरोप है कि नेहरु सरकार ने पर्दा डालने का हर सम्भव प्रयास किया था। यह घोटाला इतना प्रसिद्ध हुआ था कि अमेरिका के न्यू यॉर्क टाइम में भी 8 मार्च 1974 के शंस्करन में इसकी खबर छपी थी। वर्ष 1964 में नेहरु की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री की दौड़ में लाल बहादुर शास्त्री, गुलज़ारी लाल नंदा के साथ टी॰ टी॰ कृष्णामचारी भी शामिल थे।

Hunt The Haunted के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)
Hunt The Haunted के Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)