24 फ़रवरी 1960 को एक स्थानिये अख़बार में विस्थापन का एक विज्ञापन छपता है जिसमें इस खबर को सरेआम किया जाता है कि चमोली जिले का प्रशासनिक केंद्र गोपेश्वर होगा। अभी बिरही नदी पर बना दुर्मी ताल को टूटने और उससे आने वाली बाढ़ से चमोली शहर का आधा तबाह होने में 10 वर्ष बाक़ी थे। अर्थात् वर्ष 1970 में बिरही नदी पर बने गोहना झील/ दुर्मिताल के टूटने से एक दशक पूर्व ही चमोली शहर का विस्थापन प्रारम्भ हो चुका था।
1893-94 का विस्थापन:
दुर्मिताल वर्ष 1970 से पहले भी कई बार टूट चुका था और चमोली शहर से लेकर श्रीनगर तक तबाही ला चुका था। दुर्मिताल (झील) पहली तबाही वर्ष 1894 में लायी थी जब चमोली से लेकर हरिद्वार शहर तक हज़ारों घर इस आपदा की चपेट में आकर डूब गए थे। हालाँकि इस आपदा के दौरान मात्र पाँच लोग हताहत हुए थे और वो भी उस परिवार से जिसे दो बार दुर्घटना स्थल से हटाया गया लेकिन अपनी दैविए शक्ति का हवाला देकर वो बार बार झील के पास आ गए।
चमोली ज़िले के निजमुल्ला घाटी में स्थित तीन मिल लम्बा, 600 मीटर चौड़ा और 300 मीटर गहरा यह दुर्मिताल 25 अगस्त 1894 को रात के तक़रीबन 11 बजकर 30 मिनट फट गई। झील फटने के छः घंटे के भीतर झील से तक़रीबन दस करोड़ घन मीटर पानी बह चुका था। (स्त्रोत)

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आपदा से जानमाल की क्षति रोकेने की यह प्रक्रिया वर्ष 1893 में ही शुरू हो गई थी जब स्थानिये पटवारी ने ज़िला प्रशासन को भूस्खलन की सूचना दिया जिसके बाद पहले ब्रिटिश आर्मी के इंजीनियर Lt Col, Pulford और उसके बाद में जीयलॉजिकल सर्वे ओफ़ इंडिया के खोजकर्ता T. H. Holland (2 मार्च 1894) को झील के फटने के सम्भावित समय का अनुमान लगाने के लिए सर्वे करने को भेजा गया। (स्त्रोत) झील के पास नया टेलीग्राफ़ मशीन लगाया गया और Lieutenant Crookshank को स्थाई रूप से झील के पास रहने का निर्देश दिया गया ताकि वो लगातार टेलीग्राफ़ के माध्यम से चमोली सूचना भेज सकें।
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बिना फ़ोन और फ़ोर लेन वाली चौड़ी राष्ट्रीय राज्य मार्ग के उस दौर में भी प्रशासन ने बिरही से लेकर हरिद्वार तक तीन सौ किलोमीटर में बसे लोगों तक सम्भावित आपदा की सूचना पहुँचाई गई, लोगों के घर ख़ाली करवाए गए, और उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले ज़ाया गया। अलखनंदा नदी पर बने सभी पुल तोड़ दिए गए और 15 अगस्त के बाद हरिद्वार से ऊपर जाने वाले सभी मार्गों पर आवाजाही बंद कर दी गई। विस्थापन की प्रक्रिया पूरी तरह सफल रही। (स्त्रोत)

चमोली विस्थापन (1970):
1894 की आपदा के बाद भी दुर्मिताल पूरी तरह विलुप्त नहीं हुआ था बल्कि लगभग दो वर्ग मिल का झील अभी भी उस स्थान पर मौजूद था जहां पर्यटक अक्सर आया करते थे। (स्त्रोत) लेकिन 1960 के दशक तक यह तय हो चुका था कि यह झील फिर से एक बार टूटेगी और चमोली शहर एक बार फिर से विस्थापन करना होगा। इसी पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए चमोली ज़िले का कार्यालय गोपेश्वर स्थान्तरित किया गया।
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20 जुलाई 1970 में अंततः दुर्मिताल फिर से टूटा तो इस बार फिर से तबाही चमोली शहर से लेकर श्रीनगर तक रही। इसी आपदा के दौरान श्रीनगर स्थित ITI और पोलटेकनिक केंद्र आपदा में पूरी तरह डूब गया था। लेकिन इस बार दुर्मिताल में आयी इस तबाही के कारण कोई हताहत नहीं हुआ और समय से पहले ही चमोली शहर के एक बड़े हिस्से का विस्थापन कर गोपेश्वर स्थान्तरित कर दिया गया।

भेदभावपूर्ण विस्थापन :
20 जुलाई 1970 की आपदा से पहले चमोली शहर का तो विस्थापन सफल रूप से कर दिया गया लेकिन पास में ही बसा बिरही क़स्बा पूरी तरह तबाह हो गया। इस तबाही में 210 घर, 16 पुल-पुलिया, 25 मोटर-वाहन व लगभग एक हज़ार लोगों की मृत्यु के साथ साथ लगभग एक हज़ार मवेशी की भी जाने गई। (स्त्रोत) चमोली का विस्थापन हो पाया, सम्भवतः क्यूँकि चमोली ज़िले का प्रशासनिक केंद्र था और जहां ज़िले के बड़े आला अधिकारी और नेता का घर-ऑफ़िस था लेकिन बिरही तबाह हो गया क्यूँकि वहाँ आम पहाड़ी रहते थे।
आज जोशीमठ के विस्थापन में जो लापरवाही बरती गई और अभी भी जो कोताही बरती जा रही है सम्भवतः वो कोताही नहीं बरती जाती अगर जोशीमठ में भी बड़े-बड़े नेताओं और आला अधिकारियों के घर और रोज़गार होता।
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