पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के एक वर्ष के भीतर (2001) ही उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिल चुका था। उत्तराखंड को विशेष राज्य की सूची में शामिल करवाने के लिए न कोई हल्ला, न कोई रैली, न कोई संघर्ष और न ही कोई राजनीतिक वार्तालाप हुई। उत्तरांचल विशेष राज्य की सूची में हिंदुस्तान का 11वाँ राज्य के रूप में अपना नाम दर्ज करा चुका था।
उत्तरांचल बन चुका था पर उत्तराखंड राज्य-आंदोलनकारी अभी भी आंदोलन की निद्रा से बाहर नहीं निकल पाए थे। आंदोलन के दौरान शायद की कोई राजनीतिक, ग़ैर-राजनीतिक या आंदोलनकारी संस्था या व्यक्ति था जिसने नए उत्तराखंड राज्य को विशेष-राज्य के दर्जे के लिए आवाज़ उठाया हो।
पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन की हवा शांत हो चुकी थी। उत्तरांचल बन चुका था। पर किसी भी पार्टी या आंदोलनकारी के पास नए राज्य के विकास की रूपरेखा नहीं थी। नए राज्य की रूपरेखा “कैसा होगा राज्य हमारा, सदा यही हम बहस करेंगे” जैसे नारों और ‘गैरसैन राजधानी’, ‘जंगल के दावेदार’ व ‘नशा निरोध’ जैसे चंद मुद्दों तक सीमित था। इन मुद्दों को भी कैसे अंजाम तक पहुँचाया जाय इसपर शायद ही किसी का विशेष ध्यान था।
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विशेष राज्य:
विशेष राज्य की सूची में शामिल होने के एवज़ में अन्य विशेष राज्यों की तरह उत्तरांचल को भी केंद्र सरकार से विशेष अर्थिक पैकेज (सहायता) मिलने का प्रावधान था। वर्ष 1969 में असाम, जम्मू और कश्मीर व नागालैंड तीन विशेष राज्य की सूची में शामिल होने वाले पहले तीन राज्य थे। बाद में इस सूची में उत्तर पूर्व के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, त्रिपुरा के साथ साथ उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश भी शामिल हो चुका था।
वर्ष 2001 में उत्तराखंड के साथ दो अन्य पृथक राज्याओं का भी गठन हुआ था: झारखंड और छतीसगढ़। पर उत्तराखंड के अलावा इन दोनो नए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल पाया। विशेष राज्य का दर्जा पाने के लिए सभी राज्यों को कुछ विशेष मानको के आधार पर खरा उतरना पड़ता था जो निम्न है:
- पहाड़ी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थिति
- निम्न जनसंख्या घनत्व
- अंतराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र से नज़दीकी
- अर्थिक और आधारभूत पिछड़ापन
- राज्य की वित्तीय असमर्थता

विशेष जिले:
उपरोक्त मनकों में से उत्तराखंड सभी मानको पर खरा उतारा। विशेष राज्य के दर्जे के तहत उत्तराखंड को केंद्र सरकार की तरफ़ विशेष अर्थिक मदद मिलने का प्रावधान था। लेकिन जिन मानको के आधार पर उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिला वो उत्तराखंड के उन तेरह में से दस पहाड़ी ज़िलों तक सीमित थे जो आज भी विकास के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर सर्वाधिक पिछड़े ज़िले हैं।
अगर उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा इस आधार पर दिया गया कि वो पहाड़ी राज्य है तो फिर उत्तराखंड के अंदर ही पहाड़ी ज़िलों को विशेष जिले का दर्जा क्यूँ नहीं दिया जाना चाहिए? उत्तराखंड के पहाड़ी ज़िलों के प्रति उत्तराखंड सरकार का उदासीन रवैया पहाड़ी ज़िलों से एकतरफ़ा पलायन और पिछड़ेपन का मुख्य कारण है। पिछले 22 वर्षों में उत्तराखंड का विकास तीन मैदानी ज़िलों तक सीमित रहा है।
आज ज़रूरत है एक आंदोलन की जो उत्तराखंड के पहाड़ी ज़िलों से उठे और पहाड़ी ज़िलों के लिए विशेष प्रावधानों की माँग करे। उत्तराखंड के पहाड़ी ज़िलों का विकास गैरसेन को राजधानी बना देने मात्र से नहीं होने वाला है।

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