HomeBrand Bihariईश्वर चौधरी : बिहार में जन संघ के पहले शहीद सांसद

ईश्वर चौधरी : बिहार में जन संघ के पहले शहीद सांसद

ईश्वर चौधरी, अपने संसदीय क्षेत्र से सर्वाधिक वोट से जितने और सर्वाधिक वोट से कांग्रेस को हराने का रेकर्ड उनके ही नाम है, अपने क्षेत्र से तीन बार सांसद रहने का भी रिकार्ड  उन्हीं के नाम है। उनके संसदीय क्षेत्र से एकमात्र सांसद की हत्या में भी उनका ही नाम है। जिस चुनाव प्रचार के दौरान इनकी हत्या हुई थी उस चुनाव में इनके विरोध में कांग्रेस की तरफ़ से जीतन राम माँझी इनके ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे। कौन थे ये गुमनाम नेताजी? 

आपने जब कभी बिहार के गया रेल्वे स्टेशन से राँची, बोकारो, या नवादा की तरफ़ ट्रेन में सफ़र किया होगा या आगे कभी करेंगे तो ध्यान दीजिएगा गया से निकलते ही ट्रेन फल्गु नदी को जब पार करती है आपकी ट्रेन तो एक रेल्वे स्टेशन हाल्ट से गुजरती है। हाल्ट का नाम है शहीद ईश्वर चौधरी हाल्ट। जी नहीं ईश्वर चौधरी न तो सेना में थे और न ही स्वतंत्रता सेनानी। फिर भी उनके नाम पर बने रेल्वे स्टेशन हाल्ट के नाम में शहीद शब्द लगा हुआ है। फिर कैसे हुए शहीद ईश्वर चौधरी, जिन्हें उस संघ और भाजपा ने भुला दिया, जिसकी तरफ़ से वो पाँच बार गया संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े, तीन बार जीते भी।

पहली ही जीत उन्होंने कांग्रेस के प्रसिद्ध नेता जगजीवन राम के बेटे सुरेश कुमार को हराया था और 1991 के लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान अज्ञात लोगों के द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी? आरोप लगा नक्सलियों के ऊपर। ये 1990 के दौर का वो बिहार था जब नक्सलवाद के साथ साथ रणवीर सेना वाली जातीय हिंसा अपने चरम पर थी। आख़री क्या था, या है और क्या पता आगे भी रहेगा, इस व्यक्ति का रहस्य जिसका व्यक्तित्व आज गया के लोगों के ही दिलो दिमाग़ में नहीं है।

ईश्वर चौधरी का चुनावी सफ़र:

दरअसल साल 1971-72 के लोक सभा चुनाव में ईश्वर चौधरी ने जब गया संसदीय क्षेत्र से जगजीवन राम के बेटे को 7099 वोटों से हराया था, तो वो आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में बिहार से जन संघ के दूसरे नेता थे जिसने संघ के लिए संसदीय चुनाव जिता हो और दिल्ली के संसद भवन तक का सफ़र तय किया हो। इससे पहले 1967 के चुनाव में बाँका संसदीय क्षेत्र से बेनी शंकर शर्मा ने जब कांग्रेस के लगातार दो बार सांसद रह चुके शकुंतला देवी को हराकर संसद भवन पहुँचे थे तब वो बिहार में संघ की तरफ़ से संसदीय चुनाव जितने वाले पहले सांसद थे। इस चुनाव से पहले ईश्वर चौधरी ने कभी कोई चुनाव भी नहीं लड़ा था। ये उनके जीवन का पहला चुनाव था। 

1971 के चुनाव में भी बिहार से ईश्वर चौधरी के अलावा जन संघ के सिर्फ़ एक और सांसद को सफलता मिली थी। कटिहार से ज्ञानेश्वर प्रसाद यादव ने कांग्रेस के उभरते नेता सीता राम केशरी को हरा दिया था। ये वही सीता राम केशरी हैं जो आगे चलकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनेंगे, और जिनका सोनियाँ गांधी के साथ लम्बी लड़ाई भी चलेगी। ये दोनो यानी कि ईश्वर चौधरी और ज्ञानेश्वर प्रसाद संघ की तरफ़ से चुनाव उस परिस्थिति में जीते थे जब बिहार के कुल 53 लोकसभा क्षेत्रों में से 36 सीटों पर जन  संघ के उम्मीदवार अपनी ज़मानत तक नहीं बचा पाए थे। ऐसे समय में ईश्वर चौधरी का जीतना बिहार में जन संघ के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए महत्वपूर्ण था। 

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अक्सर लोग समझते हैं कि संघ के ज़्यादातर नेता या यूँ कहें की मतदाता भी उच्च जाति से ही अधिक होते हैं। संघ की राजनीति अक्सर अगड़ों को अधिक भाती थी लेकिन 1971 के चुनाव में जन संघ के लिए बिहार से दो सीटों पर चुनाव जितने वाले दोनो नेता न तो ब्राह्मण थे, न बूमिहार, न राजपूत और न ही लाला-कायस्थ। ज्ञानेश्वर प्रसाद यादव पिछड़ा वर्ग से थे, ग्वाला थे, लालू यादव वाली जाति से थे और शहीद ईश्वर चौधरी दलित थे, पासी जाती से सम्बंध रखते थे, पासी जाति बिहार में तार के पेड़ से ताड़ी निकालने और उसे बेचने वाली जाति होती है। वही ताड़ी जो एक तरह का नैचरल दारू होता है जिसपर नीतीश कुमार ने बैन लगा रखा है। 

यादव तो फिर भी बिहार में संख्या और वोटों के मामले में सबसे बड़ी जाति है लेकिन पासी जाति के मतदाताओं की संख्या बिहार के कुल मतदातों की संख्या का एक प्रतिशत भी नहीं  (मानचित्र) है। झोसुआ प्रोजेक्ट के एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी पूरे बिहार में पासी जाति के लोगों की कुल आबादी मात्र आठ लाख 77 हज़ार ही है। सम्भवतः पूरे बिहार में सबसे ज़्यादा पासी जाति के लोग गया ज़िले में ही है। बिहार में पासी जाति के लोग आर्थिक रूप से भी कमजोर होते हैं। अक्सर पासी परिवार में परिवार के मर्द सुबह-शाम तार के पेड़ पर चढ़कर ताड़ी निकालते हैं और घर की औरतें उस ताड़ी को बेचने में परिवार का मदद करती है।

5 मार्च 1939 को गया ज़िले के मानपुर में ऐसे ही एक ताड़ी बेचकर घर चलाने वाले बालकिशुन चौधरी और नागेश्वर देवी के घर में जन्मे ईश्वर चौधरी को पढ़ने लिखने में अधिक मन नहीं लगा लेकिन उस दौर में जब दलितों को स्कूल के भीतर भी घुसने नहीं दिया जाता था उस दौर में भी ईश्वर चौधरी ने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की और उसी दौरान वो जन संघ से भी जुड़ गए। 

संघ के प्रति उनकी ईमानदारी का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते है कि लम्बे समय से यानी की बचपन से ही संघ से जुड़े होने के बावजूद इन्होंने कभी किसी चुनाव में जन संघ के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए संघ से टिकट का दावा नहीं किया। आज़ादी के बाद से जन संघ लगातार लोकसभा और बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ रही थी। लोक सभा तो दूर की बात है ईश्वर चौधरी ने कभी विधानसभा चुनाव लड़कर विधायक बनने की भी इच्छा ज़ाहिर नहीं किया था। लेकिन जब संघ ने वर्ष 1971 में उन्हें गया से लोकसभा चुनाव लड़ने का मौक़ा दिया तो वे संघ के उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे। 

सिर्फ़ 1971 ही नहीं बल्कि 1977 के लोकसभा चुनाव में भी ईश्वर चौधरी दुबारा गया से जीतकर सांसद बनते हैं। पिछले चुनाव में यानी कि 1971 के चुनाव में इनके जीत का अंतर  मात्र 7099 था लेकिन 1977 के चुनाव में इनके जीत का अंतर बढ़कर 2 लाख 48 हज़ार वोटों का हो गया था। उस चुनाव में ईश्वर चौधरी बिहार के दस सर्वाधिक वोट के अंतर से चुनाव जितने वाले सांसदों में से एक थे।

1977 का चुनाव सिर्फ़ ईश्वर चौधरी के लिए महत्वपूर्ण नहीं था बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी उतना ही अधिक महत्वपूर्ण था। यह वही चुनाव है जब जे पी आंदोलन से उपजे कांग्रेस विरोधी आवाज़ ने हिंदुस्तान में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत में ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनाई थी। यह वही चुनाव था जिसमें सर्वाधिक मतों के अंतर से चुनाव जितने वाले राम विलास पासवान ने गिनीज़ बुक ओफ़ वर्ल्ड रेकर्ड में अपना नाम दर्ज किया था, यह वही चुनाव था जिसमें लालू यादव भी पहली बार रेकर्ड मतों से चुनाव जीतकर सबसे देश के युवा सांसद बनते है और दिल्ली की संसद तक पहुँचते हैं। 

लेकिन जेपी आंदोलन की आग बहुत जल्दी हिंदुस्तान में बुझने लगी थी। पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार भी आपसी कलह का शिकार हो गई और अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा किए बग़ैर दिसम्बर 1979 में गिर गई। इंदिरा गांधी और कांग्रेस के ख़िलाफ़ उठी आवाज़ बुझ चुकी थी। जे पी आंदोलन से निकली जनता पार्टी दो हिस्सों में बट चुकी थी। मोरार जी देसाई वाली जनता पार्टी और चौधरी चरण सिंह वाली जनता पार्टी सेक्युलर। उधर 8 अक्तूबर 1979 को जयप्रकाश नारायण की भी मृत्यु हो चुकी थी।

ऐसे माहौल में जब 1980 में देश में लोकसभा चुनाव हुआ तो ईश्वर चौधरी कांग्रेस के उम्मीदवार रमस्वरूप राम से 27927 मतों से हार गए। यह ईश्वर चौधरी की पहली हार थी। देश में अगला चुनाव भी विपरीत परिस्थितियों में ही हुआ जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में राजीव गांधी को उनकी माँ की हत्या के कारण सांत्वना मिली जिसके कारण कांग्रेस को आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में सबसे बड़ी चुनावी जीत मिली और 533 सीटों में से 414 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई। ये आज तक के इतिहास में किसी भी पार्टी की लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत है। इसी चुनाव में ईश्वर चौधरी को एक बार फिर से हार का सामना करना पड़ा। 

लेकिन जब 1989 में देश फिर से चुनाव हुए तो इस बार राजीव गांधी को पिछले पाँच साल से प्रधानमंत्री रहते हुए अपने काम के दम पर वोट माँगना था। इस चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और ईश्वर चौधरी फिर से चुनाव जीते, गया से ही जीते और जीते तो ऐसे जीते कि अपना पुराना रेकर्ड ही तोड़ दिया। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जानकी पासवान को इन्होंने 2 लाख 52 हज़ार 923 वोटों से हरा दिया जबकि कांग्रेस के राम स्वरूप राम जो लगातार दो बार से चुनाव जीत रहे थे और ईश्वर चौधरी को चुनाव हरा रहे रहे थे उस कांग्रेस के उम्मीदवार को इस बार ईश्वर चौधरी को तीसरे नम्बर पर धकेल दिया। ईश्वर चौधरी की यह जीत गया के संसदीय इतिहास में सबसे बड़ी जीत थी और कांग्रेस की सबसे बड़ी हार। आज तक कोई भी गया में ईश्वर चौधरी के इस रेकर्ड नहीं तोड़ पाया है यहाँ तक कि 2014 के मोदी लहर ने भी नहीं। 

अगले चुनाव यानी कि 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ईश्वर चौधरी पर एक बार फिर से भरोसा किया और उन्हें गया संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया। जब ईश्वर चौधरी अपने लोकसभा चुनाव प्रचार में व्यस्त थे उसी दौरान 15 मई 1991 गया के कोंच थाने के कराय मोड़ पर ईश्वर चौधरी की हत्या कर दी गई। आज तक ईश्वर चौधरी गया के एकमात्र सिटिंग सांसद हैं जिनकी हत्या हुई हो। गया में अब तक दो सांसदों या पूर्व सांसदों की हत्या हुई है। गया के इतिहास में जिन दो सांसदों की हत्या हुई है वो दोनो के दोनो भाजपा के ही नेता थे। दूसरे सांसद का नाम है राजेश कुमार जिनकी 22 जनवरी 2005 को हत्या हुई थी। ये वही राजेश कुमार हैं जिन्हें भाजपा ने 1991 के चुनाव में ईश्वर चौधरी की चुनाव प्रचार के दौरान हत्या के बाद अपना उम्मीदवार बनाया था और वो जीते भी थे और कांग्रेस हारी थी। उस चुनाव में राजेश कुमार ने कांग्रेस के उम्मीदवार जीतन राम माँझी को हराया था। 

जीतन राम माँझी अब तक गया से तीन बार, 1991, 2014 और 2019 में गया से सांसद का चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन एक बार भी सफलता नहीं मिली है। जीतन राम माँझी बिहार के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन गया से तीन बार सांसद बनने का ख़िताब तो सिर्फ़ ईश्वर चौधरी के ही नाम है। और गया से सर्वाधिक वोटों के अंतर से चुनाव जितने का भी ख़िताब ईश्वर चौधरी के ही नाम है। और गया से एकमात्र सिटिंग संसद जिसकी हत्या हुई हो उसमें भी ईश्वर चौधरी का ही नाम है। 

इनकी हत्या कैसे हुई, किसने की, कौन था ईश्वर चौधरी की हत्या के पीछे इसपर हम अधिकारिक तौर पर हम कुछ नहीं कह सकते हैं पर जाते जाते आपको बस इतना बताते जाना चाहते है कि जिस 1991 के लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान इनकी हत्या हुई थी उस चुनाव में ईश्वर चौधरी के ख़िलाफ़ कांग्रेस की तरफ़ से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार का नाम जीतन राम माँझी था। ईश्वर चौधरी की हत्या के बाद भी भाजपा ने जिस राजेश कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था उसने भी जीतन राम माँझी को हरा दिया। उसी राजेश कुमार की भी हत्या 22 जनवरी 2005 को हो जाती है। इस नाम को यानी की जीतन राम माँझी को याद रखिएगा। बिहार के खबर से बढ़कर कई क़िस्सों में इनका नाम बार बार आएगा। 

ईश्वर चौधरी के बारे में एक और बात जो मैं आपको बताना भूल गया कि मात्र हाई स्कूल तक पढ़ाई करने वाले ईश्वर चौधरी ने संसद भवन के भीतर मात्र अपने आठ साल के कार्यकाल के दौरान 1034 प्रश्न पूछे थे। इन सवालों में गया के राम शीला पहाड़ी को राष्ट्रीय धरोहर में शामिल करने के साथ साथ बांग्लादेश में हिंदू परिवारों के संघर्ष से सम्बंधित सवाल शामिल थे। उन्होंने कश्मीर को कुछ देशों के पत्र पत्रिकाओं द्वारा भारत के मानचित्र का हिस्सा नहीं दिखाने वालों के ख़िलाफ़ कार्यवाही की माँग की, भारत में रेल परिवहन, उद्योग, व्यापार जैसे सभी मुद्दों पर अपनी बात संसद में रखी जिसपर अलग चर्चा किया जा सकता है। 

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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