14 सितम्बर सन् 1951 में सतपुली बाढ़ विपिदा में 22 मोटर बसें, ट्रक व लगभग 30 मोटर ड्राईवर व कंडक्टर पूर्वी नयार नदी की भेंट चढ़े गए। उस दौर में सतपुली के पास नयार नदी के ऊपर कोई पुल नहीं था और सारी बसें नदी के किनारे लगी रहती थी और नदी के दूसरी तरफ़ नदी के छिछले पानी में होकर पार करती थी। 14 सितम्बर को जब बाढ़ आइ तो सब बहा ले गई। यह घटना इतनी भयावह थी कि स्थानिये लोग इसे आज तक नहीं भूल पाए हैं। इस घटना उस दौर में एक गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था-
सतपुली मोटर बौगिनी ब्यास
द्वी हजार आठ भादो का मास, सतपुली मोटर बौगिनी ब्यास।
स्ये जावा भै बंधो रात हेग्ये, रूनझूण-रूनझूण बरिस हेग्ये।
काल सी डोर निंदरा बैगे, मोटर की छत पाणी भोर ग्ये…।
भादो का मैना रूनझूण पाणी, हे पापी नयार क्या बात ठाणी।
सबेरी उठिकी जब आंदा भैर, बैगिकी अनन्द सांदन खैर ।
डरेबर कलेंडर सब कट्ठा होवा, अपाणी गाड़ीयूँ म पत्थर भोरा।
गरी हे जाली गाड़ी रुकी जालो पाणी, हे पापी नयार क्या बात ठाणी।
अब तोड़ा जन्देउ कपडयूँ खोला, हे राम हे राम हे शिब बोला।
डरेबर कलेंडर सबी भेंटी जौला, ब्याखुनी भटिकी यखुली रौला।
भाग्यानु की मोटर छाला लैगी, अभाग्युं की मोटर छाला लैगी।
शिबानंदी कोछायो गोबर्दनदास, द्वि हज़ार रुपया छया तैका पास।
गाड़ी बगद जब तैंन देखि, रुपयों की गडोली नयार फैंकी।
हे पापी नयार कमायूं त्वेको, मंगशीर मैना ब्यौ छायो वेको।
सतपुली का लाला तुम घौर जैल्या, मेरी हालत मेरी माँ मा बोल्यां।
मेरी माँ मा बोल्यां तू मांजी मेरी, मी रयुं मांजी गोदी म तेरी।
द्वी हजार आठ भादो का मास, सतपुली मोटर बौगीग्येनी ख़ास।

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इस गीत का नायक है एक बस चालक गोबर्धन है जो नदी में बाढ़ आने पर बचने के लिए अपनी बस की छत पर चढ़ गया। लेकिन जब पानी का बहाव तेज हुआ और बस की छत तक पहुँच गया तब उसने अपने कमाए सभी पैसों (दो हज़ार रुपए) को एक पोटली में बाँध कर नयार नदी में फेंक दिया यह सोचकर की शायद नदी का बहाव उन पैसों को उनके घर या किसी जरूरतमंद तक पहुँचा दे। ये पैसे वो अपनी शादी के लिए जमा कर रहा था जो कुछ ही महीने में होने वाली थी। लेकिन सुनहरी महसीर मछली के लिए मशहूर नयार नदी ने सब बर्बाद कर दिया।
इस लोकप्रिय गीत को कुछ वर्ष पहले तक एक सूरदास जोधाराम, सतपुली बस स्टेशन पर रुकने वाली बसों में गाकर अपनी जीविका चलाते थे। आस-पास के बुजुर्ग लोगों के स्मृतियों में यह गीत आज भी क़ैद है और स्थानिये लोक-संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। गढ़वाल की हृदयस्थली कही जाने वाली सतपुली अपने लोक गीतों के लिए कालांतर से ही जाना जाता रहा है। उपरोक्त गीत के अलावा ‘बो ये सतपुली का सैंणा मेरी बो सुरीला‘, और ‘तू सतपुली बाजार कैकू ऐ छै स्याली प्रतिमा‘ गीत भी इसी सतपुली से सम्बंधित है।
एक समय था जब सतपुली न सिर्फ़ पौड़ी जाने की बल्कि चमोली (बद्रीनाथ, केदारनाथ) जाने के रास्ते का मुख्य पड़ाव हुआ करता था जबकि नजिबाबाद में ट्रेन से उतरकर कोटद्वार होते हुए गढ़वाल में प्रवेश करने वाली मोटरमार्ग गढ़वाल जाने की सर्वाधिक व्यस्त सड़क हुआ करती थी। उन्निसवी सदी तक नजीबाबाद गढ़वाल में प्रवेश करने से पूर्व मुख्य व्यापार केंद्र और यात्रा प्रारम्भ स्थल हुआ करता था।
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