सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार पर आरोप लगाया है की नीतीश कुमार ने सरकारी विद्यालय का नाम अपनी पत्नी के नाम पर रखा है जो गलत है. हालाँकि सम्राट चौधरी ने तो यहाँ तक आरोप लगा दिया की नीतीश कुमार ने जमीन भी कब्ज़ा किया है. लेकिन अज हम सिर्फ इस लेख को प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों द्वारा सरकारी संपत्तियों को अपनी पत्नी या माँ-बाप के नाम पर नामकरण तक सिमित रखते हैं.
नीतीश कुमार की पत्नी मंजु देवी के नाम पर बख़्तियारपुर के एक विद्यालय का नामकरण किया गया है। इसके पहले पटना में भी एक पार्क का नाम नीतीश कुमार की पत्नी के नाम पर ही रखा गया था। हिंदुस्तान के इतिहास में क्या कोई दूसरा उदाहरण है जब किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की माँ या पत्नी के नाम पर उसी मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान किसी सार्वजनिक या सरकारी जगह का नाम रख दिया गया हो, या कोई योजना चला दिया गया हो? वो भी अधिकारिक तौर पर, सरकार के खर्चे पर, सरकार की ज़मीन पर? ऐसा करने वाले नीतीश कुमार सम्भवतः हिंदुस्तान के पहले राजनेता बन गए हैं जिन्होंने किसी सरकारी संस्थान का नाम अपनी माँ या पत्नी के नाम पर रख दिया है।
देश में नामकरण:
साल 1958 में जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती ने नेहरू को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने नेहरू को पटना स्थित कमला नेहरू कन्या विद्यालय का उद्घाटन करने के लिए बुलाया था लेकिन नेहरू ने प्रभावती को यह कहते हुए उस विद्यालय का उद्घाटन करने से मना कर दिया कि वो अपने पिता, माता या पत्नी के नाम शुरू किए गए किसी भी चीज़ में किसी तरह का भागेदारी नहीं कर पाएँगे। जब प्रभावती ने वो विद्यालय शुरू कर दिया तो बाद में नेहरु उस विद्यालय को देखने आये भी लेकिन उद्घाटन में नहीं गए थे. लेकिन नीतीश कुमार तो अपनी पत्नी के नाम का विद्यालय खुद उद्घाटन करने चले गए. प्रभावती ने जो विद्यालय कमला नेहरु के नाम पर विद्यालय शुरू किया था वो निजी विद्यालय था लेकिन नीतीश कुमार जी की पत्नी के नाम पर जो स्कूल बना वो सरकार है, सरकारी पैसे से बना है और सरकारी पैसे से चलता है.
नेहरु अकेले नहीं थे जिन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर कभी किसी सरकारी भवन या अन्य चीज का उद्घाटन किया हो. फिर चाहे बात नवीन पटनायक, बीजू पटनायक, ज्योति बसु, मायावती, मुलायम सिंह, लालू यादव, शिवराज सिंह चौहान, जैसे मुख्यमंत्रियों की हो या फिर नेहरू, इंदिरा, राजीव, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, पी वी नरसिम्हा राव, आइ के गुजराल, देवेगौडा या मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्रीयों की बात हो, किसी ने भी एक भी सरकारी आवास, कार्यालय, या किसी भी तरह के सरकारी भवन या सरकारी योजना का नाम अपनी पत्नी या माँ के नाम पर नहीं रखा था, और ख़ासकर अपने कार्यकाल के दौरान तो बिल्कुल नहीं। इक्सेप्शन में कुछ नाम है। जैसे कि प्रधानमंत्री मोदी जी की माँ के नाम पर भी गुजरात में एक डैम, और राजस्थान के मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की माँ के नाम से अजमेर का “राजमाता सिंधिया नगर’।
बिहार में नामकरण:
बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री बाबू की पत्नी शांति देवी के नाम पर आपको किसी गाँव का एक कुआँ तक नहीं मिलेगा, पूरे बिहार में। कर्पूरी ठाकुर की पत्नी फुलेश्वरी देवी के नाम पर समस्तिपुर में “गोखुल कर्पूरी फुलेश्वरी डिग्री कॉलेज” ज़रूर है लेकिन इसमें खुद कर्पूरी जी का नाम भी शामिल है और वो भी कर्पूरी जी के देहांत होने के बाद बना था। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी के नाम से भी सिवान में एक विद्यालय का नाम ज़रूर है लेकिन ये विद्यालय भी राजेंद्र बाबू के कार्यकाल के दौरान नहीं बना था।
इसी तरह से पंडित नेहरू की पत्नी कमला नेहरू के नाम पर कुछ सरकारी मार्गों व स्थानों के नाम ज़रूर है लेकिन वो इसलिए नहीं क्यूँकि कमला नेहरू पंडित नेहरू की पत्नी थी बल्कि इसलिए क्यूँकि कमला नेहरू भी स्वतंत्रता सेनानी थी, वो भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ली थी और वो भी जेल गई थी। ऐसे ही महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी जी के नाम पर भी कई सार्वजनिक स्थानों का नाम है क्यूँकि कस्तूरबा गांधी भी स्वतंत्रता सेनानी थी, और जेल भी गई थी।
लेकिन दूसरी तरफ़ नेहरू की माँ स्वरूपा रानी या फिर महात्मा गांधी की माँ पुतली बाई के नाम पर आज तक कहीं कोई सार्वजनिक स्थान का नामकरण नहीं किया गया है। न तो नेहरू की माँ और न ही महात्मा गांधी की माँ स्वतंत्रता सेनानी थी। नीतीश कुमार सम्भवतः एकमात्र व्यक्ति है जिनकी पत्नी का सार्वजनिक जीवन में कोई योगदान नहीं होने के बावजूद उनके नाम पर पार्क बन रहे हैं, और स्कूल का नामकरण हो रहा है और वो भी नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री कार्यकाल के ही दौरान ये सब हो रहा है।
लेकिन ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार के अलावा बिहार के किसी अन्य मुख्यमंत्री के पत्नी या माँ के नाम पर इससे पहले कोई सरकारी सम्पत्ति का नामकरण नहीं किया गया था। अनुग्रह नारायण सिन्हा ने अपनी माँ या पत्नी के नाम से तो कोई सरकारी सम्पत्ति का नामकरन तो नहीं करवाया था लेकिन उनके बेटे सतेंद्रनारायण सिन्हा ने मगध यूनिवर्सिटी के 19 में से सात कॉलेजों का नाम अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर रख दिया था जिसमें से दो कॉलेज का नाम उन्होंने अपने पिता के नाम से चार कॉलेज का नाम अपने नाम से और एक कॉलेज का नाम उन्होंने अपनी पत्नी किशोरी सिन्हा के नाम से रख दिया था।
अपने ही कार्यकाल में अपने ही नाम पर किसी सरकारी संस्थान का नामकरण करने में सतेन्द्र नारायण सिन्हा का नाम बिहार में पहला है और राबड़ी देवी का नाम दूसरा है। रावडी देवी जब बिहार की मुख्यमंत्री थी तब गोपालगंज ज़िला के सेलारकला में एक सरकारी विद्यालय अपने नाम पर बनवा लिया था।
लेकिन भारतीय राजनीति में मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री रहते हुए, अपने जीवन काल में ही, अपने नाम से कोई सरकारी भवन या सरकारी योजना का नाम शुरू करने की लिस्ट भी बहुत लम्बी नहीं है। रावडी देवी के अलावा वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ विरले नेताओं में से एक है जिनके नाम पर गुजरात में एक स्टेडियम का नाम रखा गया है।
देश के बहार नामकरण:
इसके पहले जर्मनी के तानाशाह हिट्लर ने अपने नाम पर साल 1933 में जर्मनी में एक स्टेडियम का नामकरण किया था. रुस का तानाशाह स्टालिन ने अपने नाम पर पूरा का पूरा शहर का नामकरन स्टालिनग्राड रख दिया था। इसी तरह से ताजिकिस्तान की राजधानी को भी स्टालिन ने 1929 में स्टालिनाबाद नामकरण कर दिया था। इस सूची में इराक़ के सद्दाम हूसेन, उत्तर कोरिया के किम सुंग 2, इटली का तानाशाह मूसोलिनी, जैसे कई तानाशाहों के नाम शामिल है। और उत्तर प्रदेश में तो मायावती ने अपनी ही मूर्ति कई जगहों पर लगवा दिया था।
अपने ही नाम पर सरकारी सम्पत्ति का नामकरण करने के मामले में बिहार राम लखन सिंह यादव पहले स्थान पर हैं। बिहार में तक़रीबन दो दर्जन शैक्षणिक संस्थाएँ हैं जिनका नाम अकेले राम लखन सिंह यादव के नाम पर है जबकि वो कभी प्रदेश के मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे। लेकिन राम लखन सिंह यादव के पत्नी या माँ के नाम पर एक भी सार्वजनिक सम्पत्ति का नामकरण नहीं किया गया था।
नितीश कुमार और नामकरण:
हालाँकि इस मामले में नीतीश कुमार अभी तक साफ़ सुथरे हैं कि बिहार के सर्वाधिक लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद अभी तक प्रदेश में किसी भी सरकारी सम्पत्ति का नामकरण अपने नाम पर यानी की नीतीश कुमार के नाम पर नहीं किया है। लालू यादव भी इस मामले में बेदाग़ हैं।
जब पत्नीयों की बात आती है तो लालू और नीतीश बाबू दोनो दाग़दार हो जाते हैं। माना तो यह भी जाता है कि लालू यादव ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान किसी जीवित नेता के नाम पर किसी सरकारी सम्पत्ति का नामकरण करने वालों के ख़िलाफ़ मुक़दमा तक दर्ज करवा देने तक का आदेश दे दिया था। लेकिन लालू यादव अपनी पत्नी को ही इस बात के लिए नहीं समझा पाए। और नीतीश बाबू तो खुद ऐसा कर दिए और ठीकरा फूँटा उनके ही पार्टी के विधान पार्षद रामचंद्र भारती के ऊपर। तो क्या नीतीश कुमार का नाम उन विरले नेताओं की सूची में शामिल कर देना चाहिए जो सरकारी सम्पत्ति को अपना न समझे लेकिन पारिवारिक सम्पत्ति ज़रूर समझ लेते हैं?
कानून क्या कहता है:
थोड़ा रुकिए, ये कहना थोड़ी जल्दीबाज़ी होगी। दरअसल बिहार सरकार ने साल 2013 में यह क़ानून बनाया था कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्राथमिक विद्यालय में 20 डिस्मिल और माध्यमिक विद्यालय में 50 डिस्मिल से अधिक ज़मीन का दान देता है तो उक्त विद्यालय का नाम दानकर्ता की मर्ज़ी से होगा, फिर चाहे वो स्कूल का नाम अपने नाम से रखे या अपने पिता, माता या दोस्त के नाम पर रखे य आपने कुत्ते के नाम पर रख दे, ये पूरी तरह दानकर्ता की मर्ज़ी पर निर्भर करेगा।
जिस विद्यालय का नाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पत्नी के नाम पर रखा गया है उसके नए बिल्डिंग के उद्घाटन में नीतीश कुमार जी ने बोला कि उन्हें ही नहीं पता था कि उक्त विद्यालय का नाम उनकी पत्नी के नाम पर रखा गया है। नीतीश कुमार के अनुसार ये नामकरण विधान पार्षद रामचंद्र भारती ने करवाया है। लेकिन क्या एक MLC को ऐसा करने का अधिकार है?
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अफ़वाह तो यह है कि चुकी उक्त विद्यालय को नीतीश कुमार ने अपनी पैट्रिक भूमि दान में दिया है इसलिए उस विद्यालय का नाम नीतीश कुमार की पत्नी मंजु सिन्हा के नाम पर रखा गया है। लेकिन नीतीश कुमार जी तो कह रहे है कि उन्हें यह मालूम ही नहीं था कि विद्यालय का नाम उनकी पत्नी के नाम पर रख दिया गया। अगर नीतीश कुमार जी ने ये आवेदन नहीं दिया है तो हो सकता है उनके पुत्र ने ये आवेदन किया होगा क्यूँकि प्रक्रिया के अनुसार ज़मीन दानकर्ता को अपनी इच्छा से विद्यालय का नाम रखवाने के लिए आवेदन देना पड़ता है। और अगर रामचंद्र भारती जी ने ही ये नामकरण करवाया है तो फिर क्या ये राजनीतिक चाटुकारीता का नया स्तर नहीं है?
कुछ अपवाद:
एक आख़री स्पष्टीकरण, ऐसे तो आपको कई सार्वजनिक चौक-चौराहों आदि के नाम किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के माँ, पत्नी या किसी अन्य परिवार के सदस्य पर नाम दिख जाएगा लेकिन वो अधिकारिक नाम नहीं होता है। पिछले दिनों पटना में ही कोकोनट पार्क का नाम बदले जाने पर भी यही बवाल हुआ था क्यूँकि स्थानीय लोगों ने पार्क का नाम तो अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर रख दिया था लेकिन सरकार की तरफ़ से अधिकारिक तौर पर उक्त पार्क का नाम अटल बिहारी वाजपायी पार्क नहीं रखा गया था, सरकार की नज़र में उक्त पार्क का नाम कोकोनट पार्क ही था।
ऐसे ही आपको कई चौक चौराहों के नाम मिल जाएँगे जो लालू यादव, तेजस्वी यादव या लालू यादव की माँ के नाम पर भी मिल जाएगा लेकिन ये अधिकारिक नाम नहीं होता है बल्कि स्थानीय लोग अपनी मर्ज़ी से इन जगहों का नाम ऐसा रख देते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश ऐसे नेताओं और उनके परिवारवालों के नाम पर सरकारी सम्पत्तियों का नामकरण करने में सबसे आगे है। इसके पीछे मुख्य कारण यहाँ के लोगों की सामंती सोच माना जाता है।
नीतीश कुमार के बाद नम्बर आता है तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि का जिन्होंने गोपालपुरम में स्थित अपना घर एक हॉस्पिटल बनाने के लिए दान दे दिया था लेकिन उस हॉस्पिटल का नाम करुणानिधि की पत्नी या माँ के नाम पर नहीं रखा गया लेकिन जिस संस्था को यह हॉस्पिटल का कार्यभार दिया गया था उस संस्था का नाम करुणानिधि की पत्नी के नाम पर ज़रूर था। नीतीश कुमार ने अपनी सम्पत्ति से अपनी ज़मीन पर अपने माता पिता की स्मृति में में पार्क बनवाया है अपने गाँव में
प्रधानमंत्री मोदी जी की माँ के नाम पर भी गुजरात में एक डैम बना हुआ है लेकिन वो डैम गुजरात सरकार ने नहीं बल्कि गिर गंगा परिवार ट्रस्ट ने बनवायी थी। इसी तरह से राजस्थान में अजमेर डिवेलप्मेंट अथॉरिटी ने अजमेर में ग़रीबों के लिए बनाई गई एक आवासीय कॉलोनी का नाम प्रदेश के मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की माँ के नाम से “राजमाता सिंधिया नगर’ रखा दिया था। दूसरी तरफ़ मायावती ने उत्तर प्रदेश के कई जगहों पर मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी ही मूर्ति लगवा दिया था।

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