ईरानी गाँव उत्तराखंड के चमोली ज़िले के निजमुल्ला घाटी में स्थित एक सुदूर गाँव है। यहाँ आज भी सड़क नहीं पहुँच पाई है। ईरानी गाँव से तीन किलोमीटर की दूरी पैदल चलने के बाद जो सड़क मिलती वो भी बरसातों में बंद हो जाती है। यानी कि बरसातों में अगर आपको यातायात लायक़ सड़क पकड़ना है तो तक़रीबन 15 किलो मीटर पैदल चलना पड़ेगा।
एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होने के लिए क्या नहीं है इस गाँव में: चार धाम यात्रा सड़क से मात्र पंद्रह किलो मीटर की दूरी, स्वर्णिम इतिहास, झील, झरना, नदी, सफ़ेद हिमालय के पीछे से झांकता त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत, आदि सब दिखता है इस गाँव से। गाँव के लोगों मानना है कि त्रिशूल पर्वत के शिखर से निकलता हुआ बादल असल में पांडवों के रसोईघर से निकलता हुआ धुआँ है। प्रत्येक वर्ष देश के IAS/IPS ऑफ़िसर अपनी ट्रेनिंग के दौरान दुर्मी ताल (झील) होते हुए कुँवारी (लॉर्ड कर्ज़न) ट्रेक पर जाते हैं।
हालाँकि ईरानी गाँव का इतिहास बड़ा स्वर्णिम है। ये गाँव लॉर्ड कर्ज़न ट्रेक, दुर्मी ताल सहित नंदा देवी राज जात यात्रा का भी पड़ाव है। पहाड़ों के प्रसिद्ध अन्वेषक नैन सिंह रावत के अलावा ज़्यादातर विदेशी हिमालय अन्वेषक ईरानी गाँव से होते हुए गुजरते थे। जी नहीं, इस गाँव का ना तो ईरान से कोई सम्बंध है और न ही मुस्लिम समाज से, पर फिर भी पिछड़ा है।
वर्ष 1868 में बिरही गंगा नदी में भूस्खलन आने से नदी का रास्ता बंद होने लगा था और झील का निर्माण होने लगा। सितम्बर 1893 में फिर से बिरही नदी के आस पास भूस्खलन आया जिससे नदी लगभग पूरी तरह बंद हो गई और दुर्मी झील का निर्माण बहुत तेज़ी से हुआ। एक वर्ष के अंदर यह झील क़रीब 150 मीटर गहरा, तीन किलो मीटर लम्बा और 600 मीटर चौड़ा हो गया और अंततः 26 अगस्त 1894 को झील टूट गया और हरिद्वार तक तबाही मचाया।

पर दुर्मी ताल अभी भी बचा हुआ था और बिरही नदी इतना नगण्य रूप में बह रहा था कि 1911 में ईरानी गाँव से गुजरने वाले यहाँ के डिप्टी कलेक्टर जोध सिंह बगली नेगी ने अपनी किताब Himalayan Travels (Click to Download) में सिर्फ़ नंदगिरी नदी का ज़िक्र किया जो ईरानी गाँव के दूसरी तरफ़ से बहते हुए घाट, नंदप्रयाग होते हुए अलखनंदा नदी में मिल जाती थी।
अंग्रेज़ी शासन के दौरान यह झील क्षेत्र का प्रमुख पर्यटक स्थल हुआ करता था। यहाँ अंग्रेज त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत के दर्शन और नंदा देवी वन्य क्षेत्र में वन्यजीव पर शोध के साथ साथ दुर्मी ताल में नौकायन भी करने आते थे। हाल ही में यहाँ हुई खुदाई में एक नौका मिला है जो लगभग सौ वर्ष पुराना माना जाता है।
लेकिन वर्ष 1971 में फिर से भारी बारिश के कारण बिरही नहीं में बाढ़ आइ और झील टूट गया जिससे बहुत तबाही हुई और आधा से अधिक चमोली शहर बाढ़ में बह गया। साथ में झील भी तबाह हो गया। हालाँकि आज भी झील वहाँ मौजूद है पर अव्यवस्थित रूप में। यह झील दुर्मी गाँव ईरान गाँव के पास है इसलिए इसका नाम दुर्मी झील रखा गया। कुछ लोग इस झील को गोहना झील भी कहते थे।

वैसे धार्मिक किद्वंतियो की माने तो दुर्मी ताल भगवान महादेव (शिव) ने बनाया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि महादेव और पार्वती इसी रास्ते कैलाश जा रहे थे। दुर्मी गाँव के पास पार्वती जी थक गए और थोड़ि रुकने की इच्छा जताई और महादेव ने प्यास बुझाने के लिए दुर्मी ताल का निर्माण कर दिया।
क्षेत्र के लोग लगातार सरकार से दुर्मी ताल की मरम्मत करवाने, यातायात सुविधा बहाल करने और क्षेत्र में फिर से पर्यटन बहाल करवाने के लिए सरकार से गुजरिस कर रहे हैं लेकिन उत्तराखंड अलग राज्य बनने के 21 वर्ष बाद भी ईरानी गाँव में सड़क तक नहीं पहुँच पाई है।
“ईरानी गाँव में पर्यटन के प्रयास की तारीफ़ दिल्ली के मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं”
ईरानी गाँव के ग्राम प्रधान मोहन नेगी जी ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से गाँव में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कुछ टेंट और कॉटिज बनवाएँ हैं और सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उनके कुछ सहयोगियों ने durmital.com नाम से वेब्सायट भी बनवाया ताकि पर्यटकों को सहूलियत हो। मोहन नेगी जी कर कार्यों की सराहना हरीश रावत से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक ने किया है पर मदद अभी तक नहीं मिल पाई है।

Route 1: Haridwar—Srinagar Garhwal—Chamoli—Birhi (Char Dham Yatra Highway)-Pagna Village (Link Rural Road)—Irani (Tent Stay)—Sanatoli—Domabhiti—Kuari Pass (Lord Curzon Trek)
Route 2: Haridwar—Srinagar Garhwal—Nandprayag (Char Dham Yatra Highway)—Ghat—Ramani (Link Road)—Binaki Dhar—Barpata—Kuari Pass (Lord Curzon Trek)

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