8 अक्तूबर को JP की पुण्य तिथि थी और कल यानी 11 अक्तूबर को JP का जन्म दिवस है। सब नेताजी लोग JP के साथ अपने कनेक्शन का बखान करेंगे, भाजपा JP के सहारे कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर हमला करेगी, RJD और JDU में इस बात के लिए आपाधापी लगेगी के कौन JP का असली वारिस है। लेकिन इस आपाधापी के बीच JP के जीवन से जुड़े दस ऐसे अफ़वाह जो आपके नेताजी अपने भाषणों में, बयानों में मंचों से लेकर सोशल मीडिया पर आपको परमसत्य है।
JP के अफ़वाह संख्या 1:
लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के वर्षगाँठ पर बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक उनके तथाकथित जन्म्स्थली बक्सर ज़िले के सिताब दियारा पहुँच जाते हैं लेकिन जयप्रकाश नारायण का जन्म सिताब दियारा में नहीं बल्कि बक्सर ज़िले के ही डुमराओं अनुमंडल के नवानगर के सिकरौल लख में हुआ था। हालाँकि JP का पैत्रिक गाँव सिताब दियारा ही है लेकिन उनका जन्म वहाँ नहीं बल्कि सिकरौल लख में हुआ था।
जैसे कि बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री बाबू का पैत्रिक गाँव नवादा ज़िले का खनवा गाँव नहीं बल्कि शेखपुरा ज़िले के बरबीघा विधानसभा का मौर गाँव है। खनवा गाँव उनका नानीघर था जहां हर साल नेताजी लोगों का जुटान होता है और उनके पैत्रिक गाँव मौर में सन्नाटा रहता है। ऐसे ही हर साल 11 अक्तूबर को JP के पैत्रिक घर सिताब दियारा में नेताजी लोगों का जुटान होता है लेकिन उनकी जन्मस्थली सिकरौल लख में सन्नाटा होता है।
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JP के जन्म से पहले उनकी माताजी सिताब दियारा में ही रहती थी और सिताब दियारा में ही JP के दो बड़े भाइयों को जन्म भी दी थी। लेकिन प्लेग के कारण JP के दोनो बड़े भाइयों की मृत्यु हो गई थी। चुकी सिताब दियारा गाँव सोन नदी के किनारे बसा हुआ है और जब प्लेग बीमारी फैलती है तो सबसे ज़्यादा नदी और नहर के किनारे पर बसे गाँव में ही फैलती है। जब JP अपनी माँ के पेट में थे तो उनके पिताजी हरसु दयाल प्लेग के डर से अपनी पत्नी को अपने साथ सिकरौल लख ले आए। सिकरौल लख में JP के पिताजी ब्रिटिश सरकार के सिंचाई विभाग में जिलदार की नौकरी करते थे।
JP का जन्म इसी सिकरौल लख में हुआ और जन्म के बाद भी प्लेग के डर से JP को सिताब दियारा नहीं ले ज़ाया गया। पाँचवीं कक्षा तक JP की पढ़ाई लिखाई सिकरौल लख में ही हुआ और उसके बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए पटना भेज दिया गया। एक तरफ़ कृष्ण बाबू का पैत्रिक गाँव मौर धूल फाँक रहा है और जन्म्स्थली खानवा की तरफ़ सब नेता-मीडिया भागती है तो दूसरी तरफ़ लोकनायक का जन्म्स्थली धूल फाँक रहा है और पैत्रिक गाँव को ही सब उनका जन्म्स्थल मान लिए हैं।
अफ़वाह संख्या 2:
अगर नीतीश कुमार की सरकार जेपी की मूर्ति को उस जगह से हटवा के थाने में बंद कर दे जहां JP का जन्म हुआ था तो फिर नीतीश कुमार को किस आधार पर JP का अनुयायी समझा जाए? क्या फिर हम इसे अफ़वाह मान सकते हैं कि नीतीश कुमार JP के अनुयायी है? दरअसल मामला ये है कि साल 2019 में सिकरौल लख के मुखिया बैजनाथ सिंह ने सिकरौल लख में नहर के पास JP की एक प्रतिमा लगवाई, जिसे प्रशासन ने ये कहते हुए हटा दिया कि प्रतिमा सरकारी ज़मीन पर लगाई गई थी और उसे लगाने का प्रशासन से अनुमति नहीं लिया गया था इसलिए हटा दिया गया।
आज भी JP की वो प्रतिमा स्थानीय थाने में पड़ी हुई है। क्या वो JP की प्रतिमा इसलिए हटाई गई थी, क्यूँकि उसे लगाने वाले स्थानीय मुखिया बैजनाथ सिंह RJD के नेता थे और 2019 में बिहार में NDA की सरकार थी? अगर ऐसा है तो इसे अफ़वाह ही माना जाना चाहिए कि नीतीश कुमार JP के अनुयायी है क्यूँकि अगर अनुयायी होते तो उनकी सरकार में JP की मूर्ति नहीं हटती।
अफ़वाह संख्या 3:
JP लालू यादव और नतीश कुमार दोनो को जानते थे लेकिन इनके बीच कोई करीबी रिश्ता नहीं था। लालू यादव और JP तो कई बार राजनीतिक कार्यक्रमों में एक दूसरे से मिले भी थे लेकिन अपने राजनीतिक जीवन में JP नीतीश कुमार से कभी नहीं मिले थे। जयप्रकाश नारायण के दस खंडों में प्रकाशित सात हज़ार पृष्ठों वाले दस्तावेज़ों के संग्रहण में लालू यादव या नीतीश कुमार एक बार भी ज़िक्र नहीं किया गया है।
हालाँकि JP की मृत्यु के समय लालू यादव तो उनकी पार्टी से निर्वाचित होकर संसद पहुँच चुके थे लेकिन नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में चुनाव हार चुके थे। नीतीश कुमार से JP का सिर्फ़ इतना सम्बंध था कि JP ने साल 1978 के ‘सामयिक व्रत’ पत्रिका में नीतीश कुमार का वो लेख पढ़ा था जिसमें नीतीश कुमार ने आरक्षण के कर्पूरी फ़ॉर्म्युला में कुछ सुधार का सुझाव दिया था और JP उस सुझाव से प्रभावित हुए थे। लेकिन अगले ही वर्ष JP का देहांत हो गया था।
अफ़वाह संख्या 4:
पूरा हिंदुस्तान यही जनता है कि JP इंदिरा गांधी के सबसे बड़े विरोधी थे। लेकिन ये ग़लत है। JP इंदिरा गांधी के विरोधी नहीं थे बल्कि इंदिरा गांधी के नीतियों के विरोधी थे। JP इंदिरा गांधी को हमेशा चिट्ठी लिखा करते थे और उन पात्रों में इंदिरा गांधी को वो प्रिय इंदू कहकर सम्बोधित करते थे। जब 1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस हारी थी और JP की पार्टी जनता पार्टी जीती थी तब JP किसी जश्न में शामिल नहीं हुए थे बल्कि फूँट-फूँट कर रोए थे।
जेपी और इंदिरा गांधी के बीच रिश्ते ख़राब होने शुरू हुए थे, साल 1973 से, जब इंदिरा गांधी ने तीन वरिष्ठ जजों को छोड़कर एक जूनियर जज को देश के सर्वोच्च न्यायालय का चीफ़ जस्टिस बना दिया था। लेकिन 1973 के बाद भी इंदिरा गांधी JP को लगातार पत्र लिखती रही।
1974 के एक पत्र में इंदिरा ने जयप्रकाश नारायण का स्वास्थ्य के बारे में पूछा और JP से आग्रह किया कि उनके बीच का राजनीतिक लड़ाई उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के रिश्तों को प्रभावित न करे। जेपी की पत्नी प्रभावती लम्बे समय तक कस्तूरबा गांधी जी के साथ उनके आश्रम में रही थी और नेहरू की पत्नी कमला नेहरू उनकी बहुत करीबी दोस्त हुआ करती थी।
अफ़वाह संख्या 5:
आपको लगता होगा कि चुकी जयप्रकाश नारायण इतने महान व्यक्तित्व धारक थे इसलिए उनका व्यक्तिगत जीवन भी बढ़ियाँ होगा, उनका उनके परिवार के साथ अच्छा सम्बंध होगा, उनका उनकी पत्नी के साथ भी बढ़िया सम्बंध होगा? लेकिन सच्चाई ये है कि जयप्रकाश नारायण का उनकी पत्नी प्रभावती के साथ सम्बंध कभी अच्छा नहीं था। जयप्रकाश नारायण अपनी शादी के बाद पढ़ाई के लिए अमरीका चले गए थे और उस दौरन उनकी पत्नी महात्मा गांधी जी के आश्रम में रहने लगी।
सात सालों के बाद जब जयप्रकाश नारायण वापस भारत आए तो उनकी पत्नी प्रभावती सन्यासी बन चुकी थी। महात्मा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को दूसरी शादी करने का सलाह दिया लेकिन जयप्रकाश नारायण के कभी दूसरी शादी नहीं की और पूरा जीवन प्रभावती को ही अपना पत्नी मानते रहे। सन्यासी जीवन जीने के कारण जयप्रकाश नारायण को कोई बच्चा नहीं हुआ। और इस तरह जयप्रकाश नारायण का वंश उनके बाद ख़त्म हो गया।
अफ़वाह संख्या 6:
भाजपा और RSS के लोग अक्सर आपको ज्ञान देते मिल जाएँगे की JP RSS और ज़नसंघ के समर्थक थे। इनके अनुसार JP ने एक इंटर्व्यू में बोला था कि “अगर RSS फ़सिवादी है तो मैं भी फ़सिवादी हूँ”। लेकिन ये झूठ है। 20 अप्रैल 1974 को जब हिंदुस्तान टाइम्ज़ के एक पत्रकार ने यही सवाल JP से किया कि क्या उन्होंने कभी ऐसा बोला है कि “If RSS is a Fascist I too was a fascist” मतलब JP ने क्या कभी ऐसा कहा था कि “अगर RSS फ़सिवादी है तो मैं भी फ़सिवादी हूँ”।
इस सवाल के जवाब में JP ने हिंदुस्तान टाइम्ज़ के उस पत्रकार को बताया कि जब उन्होंने ये बोला था तब RSS का नाम नहीं लिया था, बल्कि वो ज़न संघ की बात कर रहे थे, RSS कि नहीं, और चुकी ज़न संघ जनता पार्टी का हिस्सा और सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के कोऑर्डिनेशन कमिटी का सदस्य इसी शर्त पर बना था कि ज़नसंघ के सभी सदस्यों को RSS की सदस्यता से इस्तीफ़ा देना पड़ेगा, तो इसलिए उन्होंने ज़नसंघ का बचाव किया था, RSS का बचाव नहीं किया था।
अगर आपको लगता है कि मैं जो बता रहा हूँ वो झूठ बोल रहा हूँ तो आप जयप्रकाश नारायण के दस्तावेज संग्रहण के 10वें खंड का पृष्ठ संख्या 443 और 444 पढ़ लीजिए, और JP का यह दस्तावेज भारत सरकार के वेब्सायट https://www.indianculture.gov.in पर उपलब्ध है, फ़्री में।
1977 में जनता पार्टी के सरकार बनाने से पहले भी और जनता पार्टी के सरकार बनने के बाद भी JP बार बार ज़नसंघ और जनता पार्टी के सभी सदस्यों से RSS की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देने की माँग करते रहे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जनता पार्टी के सभी सदस्यों को एक फ़ॉर्म भरने को दिया गया जिसमें साफ साफ लिखा हुआ था कि “मैं महात्मा गांधी जी द्वारा दिए गए सभी मूल्यों एवं आदर्शों में विश्वास रखते हुए स्वयं को एक समाजवादी राज्य की स्थापना के लिए अर्पित करता हूं।”
दस खंडों और लगभग सात हज़ार पृष्ठों वाले जयप्रकाश नारायण के दस्तावेज़ों के संग्रहण में कम से कम सौ ऐसे मौक़ों का ज़िक्र किया हुआ है जब JP ने RSS और हिंदू महासभा की आलोचना किया था। JP हमेशा RSS और हिंदू महसभा को शक की निगाह से देखते थे।
जेपी द्वारा आरएसएस के कुकृत्यों पे लगातार सवाल उठाने पर एस एम जोशी और कृपलानी ने 1 March 1979 को जेपी को एक व्यक्तिगत पत्र लिखकर आरएसएस के प्रति नरम रवैया अपनाने के लिए अनुरोध किया था और ये भरोसा दिलाया था कि RSS और हिंदू महसभा अब पहले जैसा नहीं रहा है, समय के साथ RSS और हिंदू महसभा बदल रहा है, लोकतांत्रिक मूल्यों को अपना रहा है।
इसके बाद JP RSS और हिंदू महसभा के प्रति थोड़े नरम हो गए थे। ये जानकारी भी आपको JP के दस्तावेज़ों के संग्रहण में खंड 10, के पृष्ठ संख्या 971 और 985 पर मिल जाएगा। JP, RSS और हिंदू महसभा के प्रति कितने क्रिटिकल थे इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि मार्च 1950 में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि महात्मा गांधी जी की हत्या के बाद RSS और हिंदू महसभा के टार्गेट पर अगला शिकार नेहरू और खुद JP थे। JP के इस स्मरण का भी ज़िक्र आपको उनके दस्तावेज़ों के संग्रहण के पाँचवे खंड के पेज संख्या 360 और 361 पर मिल जाएगा।
अफ़वाह नम्बर 7:
एक मान्यता के अनुसार जयप्रकाश नारायण की मृत्यु साल 1979 में इसलिए हुई क्यूँकि 1975 से 1977 के आपातकाल के दौरान उन्हें जब गिरफ़्तार करके नज़रबंद किया था तब इंदिरा गांधी की सरकार ने इलाज के नाम पर उनके दोनो किडनी को बर्बाद कर दिया था। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार आयी तब सरकार ने जयप्रकाश नारायण के लिए डायऐलिसस मशीन मंगाया था। ये वो दौर था जब डायऐलिसस मशीन का भारत में बहुत काम लोगों ने नाम ही सुना था। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को चंडीगढ़ के एक हॉस्पिटल में नज़रबंद किया था जहां सरकार बंसी लाल चला रहे थे।
अगर आपको याद नहीं है तो याद कर लीजिए कि आपातकाल के दौरान एक नारा लगा करता था “इमर्जन्सी के तीन दलाल, इंदिरा, संजय, बंसी लाल। जिस हॉस्पिटल में जयप्रकाश नारायण को नज़रबंद किया गया था उस हॉस्पिटल के डिरेक्टर भी बंसी लाल के काफ़ी करीबी थे। मतलब इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को गिरफ़्तार करके चंडीगढ़ के उसी हॉस्पिटल में इसलिय नज़रबंद किया था ताकि बंसी लाल उस हॉस्पिटल के डिरेक्टर के सहारे इलाज के नाम पर जयप्रकाश नारायण के शरीर को बर्बाद कर दें ताकि जयप्रकाश नारायण की जल्दी से जल्दी मृत्यु हो जाए।
बाद में जयप्रकाश नारायण के देहांत पर एक जाँच कमिटी भी बनती है, लेकिन उस जाँच का कोई परिणाम नहीं आया। क्या ये सिर्फ़ संयोग था कि JP की मृत्यु और जनता पार्टी में फुट साथ साथ होती है और उसके बाद जयप्रकाश नारायण के देहांत के तीन महीने के भीतर जनता पार्टी की सरकार भी गिर जाती है और कांग्रेस की सरकार बन जाती है।
अफ़वाह संख्या 8:
अगर कोई ये सोचता है कि चुकी जयप्रकाश नारायण भारतीय सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे इसलिए हिंदुस्तान कि सारी समाजवादी और कॉम्युनिस्ट पार्टियाँ उनका समर्थन करती थी तो इसे सिर्फ़ अफ़वाह ही समझा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्यूँकि लोगों को लगता है कि जयप्रकाश नारायण आंदोलन के दौरान सभी वामपंथी और समाजवादी दलों ने जयप्रकाश नारायण आंदोलन में हिस्सा लिया था लेकिन ये झूठ है।
जयप्रकाश नारायण आंदोलन के दौरान JP को देशद्रोही बोलने वाला कोई नहीं नहीं, बल्कि भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी ही थी। भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी ने आपातकाल के दौरान आपातकाल का समर्थन भी किया था जबकि भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) सबसे ज़्यादा आगे आकर जयप्रकाश नारायण की रैलियों का आयोजन करती थी।
अफ़वाह संख्या 9:
लोगों को लगता होगा कि JP बिल्कुल साधारण जीवन जीते होंगे। कम कपड़े, सस्ता मकान, सस्ता खाना, सस्ते कपड़े ऐसा ही उनका जीवन होगा। लेकिन सच ऐसा नहीं है। सच ये है कि जेपी के उद्दयोगपतियों और धनी लोगों के साथ अच्छे सम्बंध हुआ करते थे। जयप्रकाश नारायण अक्सर इंडीयन इक्स्प्रेस अख़बार के मालिक रामनाथ गोयंका के बंगले में रुकते थे। इंदिरा गांधी अक्सर जयप्रकाश नारायण के ऊपर आरोप लगाती थी कि जयप्रकाश नारायणसंत बनने का नाटक करते हैं और बड़े बड़े बंगलों में ऐश का जीवन जीते थे।
अफ़वाह संख्या 10:
अब आख़री अफ़वाह तब की है, जब खुद जयप्रकाश नारायण ज़िंदा भी थे और उन्हें जीते जी मार भी दिया गया था। मार्च 1979 में जब जयप्रकाश नारायण मुंबई के एक हॉस्पिटल में गम्भीर रूप से बीमार थे तो उसी दौरान 23 March 1979 को चौधरी चरण सिंह की सरकार ने लोकसभा में जयप्रकाश नारायण की मृत्यु की अधिकारिक तौर पर घोषणा कर डाली थी। ये संयोग मात्र नहीं था की जयप्रकाश नारायणके मृत्यु की यह अफ़वाह भारत सरकार द्वारा तब उड़ाई गई जब जयप्रकाश नारायण की पार्टी जनता पार्टी टूट चुकी थी, चौधरी चरण सिंह अलग पार्टी बना चुके थे, और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके जनवरी 1979 में देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे।
अफ़वाहों से भरे JP के जीवन का अंत भी अफ़वाहों के साथ ही हुआ, फिर चाहे उनके मौत की अफ़वाह हो या फिर उनके मौत के पीछे कारण की अफ़वाह हो, JP आज भी अफ़वाहों के बीच जी रहे हैं, हम सब के बीच जी रहे हैं, नेताजी के भ्रामक और अफ़वाहों से भरे भाषणों में जी रहे हैं, लेकिन आप ऐसे भ्रामक अफ़वाहों में मत पड़िए, हर खबर के पीछे की खबर तक पहुँचिए

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