कोरोना महामारी शुरू हुए लगभग दो वर्ष होने को है। इस दौरान हमारे बीच करोना वाइरस से सम्बंधित जानकरियाँ कम, और अफ़वाहें ज़्यादा फैली। अगर आपको ये लगता है कि ये अफ़वाहें सिर्फ़ फ़ेसबुक, ट्विटर, या वट्सऐप की वजह से फैली तो आप ग़लत हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। जब फ़ेसबुक, ट्विटर, या वट्सऐप जैसी सेवाएँ उपलब्ध नहीं थी तब भी ऐसी महामारियों से सम्बंधित अफ़वाहें फली-फूली और इन महामारियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में रोड़े अटकाती रही थी।
कोलरा:
19वीं सदी में जब ब्रिटेन के लंदन शहर में कोलरा और प्लेग बीमारी फैली तो रोज़ जितनी भीड़ डॉक्टरो के पास पहुँची, पादरियों और पुजारियों के पास उससे कम भीड़ नहीं जमा हो रही थी। स्टीवन जॉनसन अपनी किताब ‘द घोस्त मैप’ में लिखते हैं कि जब लंदन में कोलरा बीमारी फैली तो उपचार के रूप में लोग इसफ़गोल जैसी स्थानिए दवाइयों से लेकर बदबू दूर करने वाली इत्र और जोंक तक का इस्तमाल करने का सलाह देने लगे।

इसे भी पढ़ें: पहाड़ में महामारी: इतिहास के पन्नो से
इतना ही नहीं कई मामलों में तो ब्रांडी, जो एक प्रकार का दारू होता है और कोलरा बीमारी में ज़हर के सामान है, उसे भी इस्तमाल करने का सलाह लोगों में तेज़ी से फैलने लगा। लोग ब्रांडी को पूजा सामग्री की तरह घर को पवित्र करने के लिए इस्तमाल करने लगे। ऐसा नहीं है की कोलरा महामारी का असली कारण और उपचार का पता ही नहीं चला था सिर्फ़ इसलिए ही इस तरह का भ्रामक अफ़वाह फैल रहा था।

जान स्नो नामक चिकित्सक कोलरा महामारी शुरुआती दौर में हीं ये ढूँढ चुके थे कि कोलरा बीमारी पानी से फैल रहा है और लोगों को पानी को उबाल कर इस्तमाल करने की सलाह दे रह थे। प्रारम्भिक दौर में तो उनकी सरकार ने भी नहीं सुनी पर जब सरकार भी उनकी बात मान गई तब भी आम जनता उनकी बात मानने को तैयार नहीं थी। अंततः लोगों को समझाने के लिए उन्हें एक मानचित्र बनाना पड़ा जिससे शहर में रोग के फैलाव और उसके कारण को साधारण तरीक़े से समझाया जा सके। (स्त्रोत लिंक)

कोरोना-कोलरा:
पिछले वर्ष जब कोरोना बीमारी फैलने लगी तो युपी के उन्नाव के एक लेखक ने ‘हे कोरोना माई’ शीर्षक से एक व्यंग्यात्मक पुस्तक तक लिख डाली। ऐसी किताब लिखे जाने का औचित्य भी बनता था जब उपचार जैसे तुलसी पत्ता, गौमूत्र, गोबर-स्नान आदि के चर्चे सरेआम हो चुके थे। हमारे जनप्रतिनिधि तक उपचार की जगह ‘गो करोना गो’ जैसे मंत्रो और धूप सेकने जैसे उपचारों को फैलाने में जुटे हुए हैं। लोग तो यहाँ तक मानने लगे थे कि थाली और घंटी बजाने से भी करोना हिंदुस्तान से वापस जा रहा है।
कोरोना महामारी के दौरान कुछ अंग्रेज़ी व आयुर्वेदिक दवाइयों का बाज़ार भी गर्म रहा। इन अफ़वाहों को फैलने में हमारे मीडिया करोना से संक्रमित किसी २-३ मरीज़ को ठीक हो जाने के समाचार को इस तरह प्रसारित कर रहे हैं जैसे करोना बीमारी का इलाज ढूँढ लिया गया हो।
इसे भी पढ़ें: क्यों गाँधी जी ने विरोध किया था महामारी के ख़िलाफ़ टीकाकरण का?

जॉनसन अपनी किताब में लिखते हैं कि जब यूरोप में कोलरा और प्लेग फैला तो उसके लिए गरीब और मज़दूर तबके को ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश सिर्फ़ इसलिए की गई क्यूँकि मरने वालों में गरीब और मज़दूर तबके के लोग अधिक थे। जब कोरोना महामारी फैलनी शुरू हुई तो महाराष्ट्र और गुजरात के स्थानिये लोगों ने बिहार-युपी के मज़दूरों के इसके फैलने के लिए ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर चुके हैं। (स्त्रोत लिंक)
इतिहास में कोलरा जैसी महामारी हिंदुस्तान से ही पूरे दुनियाँ में फैली थी, प्लेग जैसी महामारी यूरोप से पूरी दुनियाँ में फैली थी और अब जब कोरोना चीन से फैलनी शुरू हुई तो इसके लिए चीन के समाज और संस्कृति को अपमानित करने की जगह एक वैश्विक पहल की आवश्यकता है।
Hunt The Haunted के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)
Hunt The Haunted के Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)