वर्ष 1939 में टेहरी राज के दीवान चक्रधर जूयाल ने एक नया कर लगाया था। ‘पाऊँटोटी’ नामक कर पहाड़ के उनलोगों पर लगाया जाता था जो रोज़गार के लिए राज्य की सीमा से बाहर जाते थे। अर्थात् पलायन से लौटते पहाड़ी मज़दूरों पर टेहरी के राजा कर लगाते थे।
‘पाऊँटोटी’ कर लगाने वाले टेहरी राज के दीवान वही चक्रधर जूयाल थे जो 1930 में हुए तिलाड़ी-रवाइन नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार थे। चक्रधर जूयाल ने पहाड़ों के घर में बनाए जाने वाले शराब पर भी प्रतिबंध लगवा दिया था और पहाड़ों के इतिहास में पहली बार शराब ठेकेदारों द्वारा शराब के ठेके खोले गए थे। जूयाल द्वारा नए नए कर लगाने की अफ़वाह इतनी मज़बूत हो चुकी थी की एक बार यहाँ तक अफ़वाह फैल गई कि उन्होंने पूरे राज्य में सभी महिलाओं पर कर लगा दिया है।
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माना जाता है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद पहाड़ियों को मैदान का स्वाद लगने लगा था। पहले सेना के रूप में मैदान गए और उसके बाद मैदानों का स्वतंत्रता आंदोलन पहाड़ों तक पहुँच गया। पहाड़ और मैदान के बिच संवाद गहराता गया वैसे वैसे पहदों से मैदान की तरफ़ पलायन भी बढ़ता गया। इस बढ़ते संवाद पर अंकुश लगाने के लिए टेहरी राजा ने ‘पाऊँटोटी’ कर लगाया।

पाऊँटोटी क्यूँ:
यह मात्र संयोग नहीं है कि कुमाऊँ प्रजा मंडल और गढ़वाल प्रजा मंडल की तर्ज़ पर देहरादून में श्रीदेव सुमन के नेतृत्व में ‘टेहरी राज्य प्रजा मंडल’ की स्थापना भी वर्ष 1939 में ही हुई। कांग्रेस के दिशानिर्देश पर चलने वली पहाड़ों की ये तीन प्रजा मंडल पर पहाड़ों में स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाना था। अपनी स्थापना के बाद सर्वप्रथम मुद्दा जिसे ‘टेहरी राज्य प्रजा मंडल’ जोरशोर से उठाया वो था ‘पाऊँटोटी’ कर का मुद्दा।
टेहरी राज्य द्वारा पलायन से वापस आने वाले लोगों पर ‘पाऊँटोटी’ कर लगाने के पीछे मक़सद बढ़ते पलायन को रोकना था। बढ़ते पलायन के कारण टेहरी राज्य में मज़दूर महँगे होने लगे थे और शोषणपूर्ण कृषि-कर व्यवस्था के कारण टेहरी राज्य के किसान टेहरी क्षेत्र की तुलना में ब्रिटिश गढ़वाल और ब्रिटिश कुमाऊँ में पलायन करके कृषि करना अधिक सुविधापूर्ण समझते थे। जब तिलाड़ी-रवाइन में किसानो पर टेहरी राज्य द्वारा गोलियाँ चलाई गई थी तब भी वहाँ के किसान गाँव छोड़कर यमुना नदी के दूसरी तरफ़ ब्रिटिश क्षेत्र में चले गए थे।
कोरोना और पलायन
आज के उत्तराखंड में पलायन से वापस आते लोगों के ऊपर किसी भी तरह का कर लगाने का प्रयास हास्यास्पद के अलावा कुछ और नहीं हो सकता है। लेकिन कोविड महमारी के दौरन पलायन से अपने पहाड़ को लौटते कई पहाड़ी प्रवासीयों को स्थानिय लोगों का सामना करना पड़ा था। पहाड़ के गाँव के लोगों को डर था कि प्रवासी मज़दूर अपने साथ गाँव में कोविड बीमारी लेकर आएँगे। ग्रामीणों में पहाड़ छोड़ चुके प्रवासियों के प्रति आक्रोश भी था कि उनके द्वारा पहाड़ छोड़ दिए जाने के कारण पहाड़ वीरान हो गया था।

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