ज़मींदार आरक्षण:
वर्ष 1909 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय परिषद अधिनियम लाया। इस अधिनियम द्वारा लाए गए विभिन्न सुधारों में से एक सुधार था भारतीय राजनीति में पृथक निर्वाचन प्रणाली के रूप में आरक्षण के प्रावधान का प्रारम्भ होना। इस अधिनियम के अनुसार भारतीय केंद्रीय परिषद के कुल 27 निर्वाचित सदस्यों में से दो सीटों को भारतीय ज़मींदारों के लिए आरक्षित कर दिया गया था अर्थात् भारतीय विधान परिषद में ज़मींदारों को 13.5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था।
वर्ष 1909 में आए भारतीय परिषद अधिनियम को मार्ले-मिण्टो सुधार क़ानून के नाम से भी जाना जाता है। यह अधिनियम भारत के इतिहास में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को सर्वप्रथम सूत्रपात करने के लिए भी बदनाम है। इस अधिनियम के अनुसार भारतीय विधान परिषद में मुस्लिम समाज के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम को पृथक निर्वाचन क्षेत्र देना तय हुआ।
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वर्ष 1909 में भारतीय विधान परिषद में कुल 69 सदस्य हुआ करते थे। इन 69 सदस्यों में से 37 सदस्य विभिन्न आला अधिकारी परिषद के पदेन सदस्य हुआ करते थे। अन्य 32 सदस्यों में से 5 मनोनीत और 27 निर्वाचित होते थे। 27 निर्वाचित सदस्यों में से चार निर्वाचन क्षेत्र ब्रिटिश पूँजीपतियों के लिए आरक्षित होती थी और दो निर्वाचन क्षेत्र भारतीय ज़मींदारों के लिए। इसके अलावा 8 निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिम के लिए आरक्षित होती थी जबकि अन्य 13 निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य चुनाव होता था।

प्रांतीय आरक्षण:
इसी तरह प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों के निर्वाचन में भी मुस्लिम के साथ साथ ज़मींदारों को भी आरक्षण दिया गया था। उदाहरण के तौर पर मद्रास प्रांतीय विधान परिषद के कुल 42 सदस्यों में से 23 मनोनीत सदस्य हुआ करते थे और अन्य 19 सदस्यों का निर्वाचन चुनाव के द्वारा होता था। इन 19 निर्वाचित सदस्यों में से 2 सदस्य मुस्लिम समाज, 2 सदस्य ज़मींदार और 2 अन्य सदस्य बड़े किसानों के लिए आरक्षित होता था।
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चुकी सिंध, पूर्वी बंगाल और पंजाब जैसे कई राज्यों में मुस्लिम ज़मींदारों की संख्या हिंदू ज़मींदारों की संख्या के लगभग बराबर थी इसलिए मुस्लिम और ज़मींदार को पृथक रूप से निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित करने में समस्या आती थी। कई राज्यों में मुस्लिम ज़मींदार का परिषद का सदस्य चुने जाने पर उस राज्य के ज़मींदारों को आरक्षण नहीं दिया जाता था।
अर्थात् आरक्षण की शुरुआत का इतिहास न तो सामाजिक रूप से पिछड़े जातियों से शुरू होता है और न ही मुस्लिम से बल्कि इसका इतिहास ज़मींदारों से शुरू होता है। 19वीं सदी के दौरान ज़मींदारों ने कई संगठन और सभाओं की स्थापना कर ब्रिटिश सरकार से अपनी माँगो के साथ संगठित हुए थे।

ज़मींदार सभाएँ:
उदाहरण के लिए वर्ष 1839 में बंगाल के ज़मींदारों ने ज़मींदार महासभा का गठन किया। वर्ष 1851 में ज़मींदार सभा और ब्रिटिश इंडिया सोसायटी का विलय करके ब्रिटिश इंडीयन असोसीएशन का गठन किया गया। वर्ष 1903 में तो मौलवी सिराजूद्दीन ने तो ‘ज़मींदार’ नाम से एक साप्ताहिक अख़बार भी निकाला।
19वीं सदी के अंत तक कांग्रेस समेत हिंदुस्तान में बनने वाली लगभग सभी सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं के ऊपर ज़मींदार केंद्रित होने का आरोप लगता रहा था। माना जाता है कि वर्ष 1885 में कांग्रेस की स्थापना में मुख्य भूमिका ज़मींदारों की थी। हालाँकि बीसवीं सदी के दौरान कांग्रेस के भीतर गरम और नरम दल के विभाजन के साथ कांग्रेस गरम दल ने धीरे धीरे अपने आप को ज़मींदारों से अलग करने का सिलसिला शुरू कर दिया।
1930 के दशक तक कांग्रेस और ज़मींदार सभा के बीच नोक-झोंक शुरू हो चुकी थी। और सम्भवतः यही कारण था कि वर्ष 1935 के भारतीय अधिनियम में ज़मींदारों को मिलने वाले आरक्षण को ख़त्म कर दिया गया। लेकिन इसके बावजूद ज़मींदारों का भारतीय राजनीति पर पकड़ काफ़ी मज़बूत बना रहा।

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