परेड-झांकी का बीजेपीकरण:
पिछले 8 वर्षों से गणतंत्र दिवस की परेड-झांकी मोदी सरकार के नेतृत्व में हो रही है। इस दौरान आठ राज्यों को उनकी झांकी के लिए पुरस्कृत किया गया जिसमे से 7 राज्य बीजेपी शासित प्रदेश हैं। प्रत्येक वर्ष 15 से 20 राज्यों की झांकियों को गणतंत्र दिवस की परेड-झांकी में शामिल किया जाता है। लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से झांकी के लिए निर्वाचित राज्यों में से ज्यादातर राज्य बीजेपी शासित प्रदेश हैं।
उदहारण के लिए पिछले 8 सालों में भाजपा शासित गुजरात और कर्नाटक को सबसे ज्यादा 8 में से 8 मौके झांकी प्रस्तुत करने को मिले हैं, जबकि असम की परेड-झांकी मात्र एक बार रिजेक्ट हुई है, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा की झांकी मात्र दो बार रिजेक्ट हुई है।

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एक अन्य तरह की झांकी जिसको मोदी सरकार परेड-झांकी के लिए अधिक चुन रही है है वो है ऐसी झाँकियाँ जिसमे मोदी सरकार की योजनाओं का गुणगान किया गया हो। उदहारण के लिए त्रिपुरा का 2021 की झांकी आत्म-निर्भर भारत पर थी जबकि 2017 में हरयाणा के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ विषय पर तैयार झांकी को चयनित किया गया और 2020 में जलशक्ति मंत्रालय के जल जीवन मिशन योजना विषय पर बनाई झांकी को चयनित किया गया। भारत सरकार की जल जीवन मिशन योजना बिहार सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया जल जीवन हरियाली योजना न नक़ल था।
वर्ष 2020 में ही गणतंत्र दिवस की झांकी के लिए बिहार ने इस योजना को केंद्र सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेजा था लेकिन मोदी सरकार ने उसे रिजेक्ट कर दिया। अगले दो वर्षों (2021 और 2022) तक लगातार तीन बार बिहार सरकार ने इस योजना की झांकी गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल करने के लिए मोदी सरकार के पास भेजा लेकिन तीनो बार केंद्र सरकार ने उसे रिजेक्ट कर दिया। हालाँकि यह वही जल-जीवन हरियाली योजना है जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने नितीश कुमार को क्लाइमेट लीडर के रूप में आमंत्रित किया था।

उपेक्षित राज्य:
बिहार: गणतंत्र दिवस परेड-झांकी में मोदी सरकार ने न सिर्फ बिहार सरकार की योजनाओं को हथियाया है बल्कि पिछले सात वर्षों से बिहार सरकार द्वारा भेजी गई एक भी झांकी को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं किया है। वर्ष 2023 की गणतंत्र दिवस की झांकी में बिहार की झांकी का विषय गया जी डैम था, जो पूरे देश में अपनी तरह का पहला रबर डैम है जिसने गंगा के पानी को सुदूर तक पहुचाया है।
इसी तरह बिहार के शराबबंदी (वर्ष 2019), विक्रमशिला विश्वविद्यालय (वर्ष 2017) और यहाँ तक की छठ जैसे पर्व (वर्ष 2018) पर बनी झांकी को भी रिजेक्ट कर चुकी है। जिस बिहार (चंपारण) में गांधीजी ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का सबसे पहला बिगुल फूंका उसी बिहार को गाँधी जी के 150वीं वर्षगाठ पर केन्द्रित गणतंत्र दिवस समारोह की झांकी बिहार को अपनी झांकी को प्रस्तुत करने का मौका तक नहीं दिया गया।
वर्ष 2022 में केरल की झांकी को मोदी सरकार ने सिफ इसलिय रिजेक्ट कर दिया क्यूंकि झांकी का विषय ‘नारायण गुरु थे’ जबकि केंद्र सरकार ने केरल सरकार को यहाँ तक सुझाव दे डाला कि अगर केरल सरकार ‘नारायण गुरु’ की जगह ‘आदि शंकराचार्य’ के विषय पर झांकी बनाती है तभी केरल के झांकी को मौका दिया जायेगा.

परेड का धर्मान्तरण:
पिछले तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश के झांकी को सर्वश्रेष्ठ झांकी का पुरुस्कार दिया जा रहा है। इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए की योगी सरकार की ये चारो झांकी धार्मिक विषय पर है। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष (2022) की परेड-झांकी कशी विश्वनाथ धाम पर थी तो 2021 की झांकी अयोध्या और और उससे पहले 2020 की झांकी सर्व धर्म संभव विषय पर था। इसी तरह पिछले आठ वर्षों में एक वर्ष को छोड़कर अन्य सभी वर्षों उत्तराखंड राज्य की झांकी का विषय केदारनाथ, केदारखंड, अध्यात्मिक अन-शक्ति आश्रम, आदि था।
निर्वाचन प्रक्रिया:
गणतंत्र दिवस परेड में शामिल झांकियों का निर्वाचन केंद्र सरकार की रक्षा मंत्रालय करती है। देश के सभी राज्य अलग अलग विषय पर अपनी झांकी प्रस्ताव को रक्षा मंत्रालय के पास भेजते हैं। रक्षा मंत्रालय इनमें से 15-25 झांकियों को प्रतिवर्ष होने वाले गणतंत्र दिवस परेड में शामिल करता है। रक्षा मंत्रालय से यह आशा किया जाता है कि वो प्रत्यके राज्य को बराबर मौका दे. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश के इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व का भी राजनीतिकरण हो रहा है।

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