वर्ष 2014 में जब से केंद्र में मोदी सरकार आयी है तब से 2023 तक मोदी सरकार के नेतृत्व में हिंदुस्तान आठ गणतंत्र दिवस झांकी दिखला चुका है और इस वर्ष 2023 में नौवें की तैयारी में है। इन पिछले 9 झांकियों में उत्तराखंड सरकार को सात बार उत्तराखंडी झांकी दिखाने का मौक़ा मिल चुका है लेकिन इनमे से एक भी झांकी को मोदी सरकार इस लायक़ नहीं समझी है कि उसे पुरस्कृत किया जा सके।
डबल इंजन सरकार:
वर्ष 2017 से लगातार उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है। यह उत्तराखंड या डबल इंजन की सरकार का सौभाग्य है कि उत्तराखंड को इतना मौक़ा मिला जिसका फ़ायदा उत्तराखंड की सरकार नहीं उठा पायी। इन्हीं 9 वर्षों के मोदी कार्यकाल के दौरान दौरान बिहार और झारखंड को मात्र एक-एक; केरल, तेलंगाना, और राजस्थान को मात्र दो-दो; आंध्र, दिल्ली, हरियाणा और हिमाचल को राजपथ पर गणतंत्र दिवस की झांकी दिखाने के तीन-तीन मौक़े मिले थे।
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इसी दौरान उत्तर प्रदेश को भी उत्तराखंड के बराबर ही सात मौक़े मिले थे जिसमें से तीन मौक़ों पर उत्तर प्रदेश ने अपनी बेहतरीन झांकी के लिए केंद्र सरकार से पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। इस दौरान आसाम जैसा छोटा और हिमलायी राज्य भी दो बार और त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश एक-एक बार पुरस्कृत हो चुकी है।

उत्तराखंडी झांकी:
पिछले 9 वर्षों के दौरान जो सात उत्तराखंडी झांकी गणतंत्र दिवस के परेड के दौरान राजपथ पर दिखाई गई थी उनका विषय इस प्रकार था:
- केदारनाथ यात्रा (वर्ष 2015)
- रम्मन त्योहार (वर्ष 2016)
- ग्रामीण पर्यटन (वर्ष 2018)
- अनशक्ति आश्रम (वर्ष 2019)
- केदारखंड (वर्ष 2021)
- प्रगति पर उत्तराखंड (वर्ष 2022)
- जागेश्वर धाम, कोर्बेट पार्क और एपिन कला (वर्ष 2023)
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उत्तराखंड जैसा राज्य जो अपने कला-संस्कृति और अध्यात्म के लिए न सिर्फ़ देश में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, क्या यह शर्मनाक नहीं है कि हम अपने कला-संस्कृति का स्वर्णिम स्वरूप 26 जनवरी के परेड में पुरस्कृत क्यूँ नहीं हो पाते हैं। ऐसे में जब उत्तराखंड की पिछली सात झांकियाँ त्रिस्कृत हो चुकी है, उत्तराखंड के लोगों की नज़र इस वर्ष 26 जनवरी परेड पर रहेगी कि क्या उनके राज्य की झांकी को फिर से त्रिस्कृत होना पड़ेगा या फिर आख़िरकार पुरस्कृत होने का मौक़ा मिलेगा।

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