बिहार की राजधानी पटना शहर में कई ऐसे मार्ग हैं जिनका नाम लगभग एक दशक से भी पहले बदला जा चुका है लेकिन आज भी उनमें से अधिकतर मार्गों को लोग पुराने नाम से ही जानते हैं। सिर्फ़ लोग ही नहीं बल्कि पटना शहर के सड़कों पर लगे साइन बोर्ड पर भी आज तक पुराने नाम ही लिखे हुए हैं।
इन मार्गों की सूची निम्न है:
- बेली रोड का नाम बदलकर जवाहरलाल नेहरू मार्ग किया गया था। चार्ल्स बेली पृथक बिहार-ओड़िसा के पहले लेफ़्टिनेंट गवर्नर थे
- फ़्रेज़र रोड का नाम बदलकर मझरुल हक़ पथ रखा गया। Andrew Fraser बंगाल से बिहार-ओड़िसा के विभाजन से पूर्व बंगाल के लेफ़्टिनेंट गवर्नर थे।
- बोरिंग रोड का नाम बदलकर जयप्रकाश नारायण पथ रखा गया था।
- हार्डिंग पार्क रोड का नाम क्रांति मार्ग रखा गया था।
- सर्कुलर रोड का नाम बदलकर कौटिल्य मार्ग रखा गया था।
- बीर चंद पटेल पथ का पहले नाम गार्ड्नर रोड था। E.R. Gardiner बिहार के पहले पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट के पहले सेक्रेटेरी थे।
- दरोग़ा प्रसाद राय पथ का नाम पहले सर्पेंटीन रोड हुआ करता था।
- पीर अली खान मार्ग का नाम टेलर रोड हुआ करता था जिसका नाम नीतीश सरकार ने वर्ष 2008 में बदल दिया था।
- एग्ज़िबिशन रोड का नाम ब्रज किशोर पथ रखा गया था।
- बीपी कोईरला मार्ग का नाम पहले बैंक रोड हुआ करता था। कोईरला नेपाल के पहले प्रधानमंत्री थे जिनका जीवन पटना में गुजरा और उस दौरान उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेते हुए नेपाल कांग्रेस की स्थापना भी किया था।
- स्ट्रैंड रोड का नाम बदलकर नेताजी सुभाष मार्ग रखा गया था। ऐसा ही स्ट्रैंड रोड कलकत्ता और चिट्गोंग में भी स्थित था।
- हार्डिंग रोड का नाम अली इमाम पथ रखा गया था। स्वतंत्रता सेनानी अली इमाम को आधुनिक बिहार का जनक माना जाता है।
- ठकुरवारी रोड का नाम वर्ष 1948 में अब्दुल बारी पथ रखा गया था जब 28 मार्च 1947 को बीच सड़क पर उनकी हत्या कर दी गई थी। माना जाता है कि यह आज़ाद हिंदुस्तान की पहली राजनीतिक हत्या थी।
पटना के उपरोक्त सड़कों का पुराना नाम अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान रखा गया था जब वर्ष 1912 में बंगाल का बिहार और उड़ीसा से विभाजन हुआ था। उस दौर में रखे गए पटना के अधिकतर सड़कों का नाम उस दौर के प्रमुख ब्रिटिश अधिकारियों के नाम पर रखा गया था। उदाहरण के लिए बेली रोड का नाम बिहार के सर्वप्रथम लेफ़्टिनेंट गवर्नर के नाम पर रखा गया था जिनका पूरा नाम था चार्ल्स स्टूअर्ट बेली था।
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जब वर्ष 1912 में पटना को बिहार और बंगाल की समग्र राजधानी बनाया गया था तब राजधानी के प्रमुख प्रशासनिक कार्यालयों के लिए पटना के उन क्षेत्रों को चुना गया जहां आजकल बेली रोड, पटना गोल्फ़ क्लब, गार्ड्नर रोड और हार्डिंग रोड के आसपास बसा हुआ था। हार्डिंग रोड का नाम उस दौर में भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर रखा गया था जबकि गार्ड्नर बिहार के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी हुआ करते थे।
हालाँकि पटना के उपरोक्त सड़कों का नाम बदले एक दशक से अधिक समय बीत चुका है लेकिन आजतक तक आम बोलचाल में अधिकतर सड़कों के पुराने नाम का ही उपयोग होता है। इस सम्बंध में भाजपा नेता सम्राट चौधरी ने बिहार सदन में बिहार सरकार से यह माँग रख चुके हैं कि पटना के इन परिवर्तित सड़कों के नए नाम को सरकार प्रचारित करे ताकि आम जनता इन सड़कों को नए नाम से जाने लेकिन इस सम्बंध में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पायी है।
इन सड़कों के अलावा पटना में कई अन्य स्थलों के नाम ब्रिटिश अधिकारियों के नाम पर है जिनका नाम अधिकारिक तौर पर दशकों पहले बदला जा चुका है लेकिन आम बोलचाल में आज भी पुराने नाम का ही इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए हार्डिंग पार्क का नाम नेहरू पार्क रखा गया था लेकिन आम बोलचाल में इसका नाम आज भी हार्डिंग पार्क ही है। इसी तरह डाक बंगला का नाम 1990 में ही लोक प्रकाश भवन रख दिया गया था लेकिन आज तक उसे डाक बंगला ही बोला जाता है।
इसके अलावा पटना में कई ऐसे सड़क और जगह के नाम आज भी ब्रिटिश अधिकारियों के नाम पर है जिसे आज तक नहीं बदला गया है। इसमें से प्रमुख है ब्रिटिश अधिकारी William Fraser (1784 -1835) के नाम पर फ़्रेज़र रोड। वर्ष 2010 में बिहार सरकार ने पटना के नाला रोड, कंकरबाग रोड, गायत्री मंदिर रोड जैसे कई अन्य सड़कों का नाम भी स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखने का सुझाव दिया था लेकिन उसपर भी आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई है।

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The names has not been changed frequently but yes the only reason I could sense is decolonisation. Most of the names changed after Nitish Kumar came to power in 2005. His coalition NDA believe in the politics of changing the names of places.