JNU बनने की प्रक्रिया वर्ष 1966 में शुरू हुई। सितम्बर 1971 तक JNU की कक्षाएँ अस्थाई रूप से विज्ञान भवन में चलती थी जिसके बाद कैम्पस को मेहरौली रोड पर स्थित सिवल सर्विस ट्रेनिंग केंद्र में स्थान्तरित कर दी गई। आज कल इसे जेएनयू का ओल्ड कैम्पस बोला जाता है जिसमें आज पुलिस अकैडमी चलती है।
JNU और उत्तराखंड
वर्ष 1974 में जब JNU का अपना कैम्पस बनकर तैयार हुआ तो उसमें 6 हॉस्टल के साथ साथ दो संकाय निवास अर्थात् वहाँ पढ़ाने वाले शिक्षकों के निवास के लिए कॉम्प्लेक्स बनाया गया था। कावेरी, पेरियर और गोदावरी हॉस्टल के आसपास दक्षिणपुरम संकाय निवास बनाया गया और गंगा, सतलुज और झेलम हॉस्टल के आसपास उत्तराखंड संकाय निवास बनाया गया।
दक्षिणपुरम संकाय निवास कावेरी, पेरियर और गोदावरी हॉस्टल के आसपास बनवाया गया और उत्तराखंड संकाय निवास गंगा, सतलुज और झेलम हॉस्टल के आस पास बनवाया गया क्यूँकि कावेरी, पेरियर और गोदावरी दक्षिण भारत की नदियाँ है जबकि गंगा, सतलुज और झेलम उत्तर भारत की नदियाँ हैं जिनका उत्तराखंड के साथ गहर सम्बंध है।

JNU और भारतीय विविधता:
शिक्षकों के रहने के लिए संकाय निवास छात्रों के हॉस्टल के पड़ोस में इसलिए बनाया गया ताकि JNU में छात्रों और शिक्षकों के बीच आपसी प्रेम, दोस्ती, और पड़ोसी का रिस्ता बने न कि पढ़ने और पढ़ाने वाले का रिस्ता। जिन तीन-चार मुख्य आदर्शों के इर्द-गिर्द JNU की स्थापना की गई थी उनमे से शिक्षक-छात्र के बिच दोस्ताना सम्बंध मुख्य आदर्श थे।
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JNU की स्थापना के पीछे दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण आदर्श था राष्ट्रीय एकता। JNU में सभी भवनों, संकायों, लाइब्रेरी, आदि का निर्माण और नामकरण इस तरह करने का प्रयास किया गया ताकि जेएनयू के भीतर पूरे हिंदुस्तान की झलक मिल पाए। जेएनयू में आज भी सभी हॉस्टल के नाम हिंदुस्तान में बहने वाली नदियों के नाम पर रखा गया है। इन हॉस्टलों की भौगोलिक स्थिति भी कुछ इस तरह निर्धारित की गई कि झेलम हॉस्टल कैम्पस के सर्वाधिक उत्तरी छोर पर है और ब्रह्मपुत्र हॉस्टल कैम्पस के सर्वाधिक पूर्वी छोर पर रखा गया। इसी तरह माही-मांडवी जैसे हॉस्टल को कैम्पस के सर्वाधिक पश्चमी छोर पर बनाया गया।
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