कुमाऊँ का रामनगर शहर और गढ़वाल का रमणी गाँव की निव कुमाऊँ के प्रसिद्ध कमिश्नर हेनरी रेम्जे ने रखी थी और दोनो स्थान का नाम उन्ही ने नाम पर आधारित थी। रमणी आज रामनी बन चुका है और हेनरी रेम्जे को गाँव का युवा वर्ग भूल गया है। रमणी गाँव के ऊपर पहाड़ी पर बना रेम्जे के घर का अस्तित्व आख़री साँस से रहा है जबकि उनके द्वारा बनवाया गया अमरीकन मेथोडलिस्ट चर्च खंडर बनकर गिरने का इंतज़ार कर रहा है।
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पिछले कुछ वर्षों से हिंदुस्तान में बदलती सरकारों द्वारा शहर से लेकर सड़कों तक के नाम बदलने का राजनीतिक रिवाज मज़बूत होता जा रहा है। इतिहास और धार्मिक ग्रंथो के साथ संस्कृति का हवाला देकर भी नाम बदले जा रहे हैं। रामनगर या रमणी का नाम नहीं बदला है पर उस नाम के पीछे अर्थ और कहनी बदलती जा रही है।

रमणी:
आज भी रमणी गाँव के के बारे में जो कहानियाँ प्रचलित है उसका सम्बंध श्रीराम के अलावा रमणीयता शब्द के अर्थ से भी जुड़ा है। स्थानिये लोगों का मानना है कि जब लोग इस गाँव में आकर बसने लगे तब यहाँ का सुंदरता और प्राकृतिक आकर्षण को देखकर लोगों को यह क्षेत्र रमणीय लगा और इसका नाम रमणी रख दिया। पिछले तीन से अधिक दशकों से जब भगवान श्रीराम का उत्तर भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म पर दबदबा बढ़ा तो ‘रमणी’ कब ‘रामनी’ बन गया पता ही नहीं चला।
हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर रमणी वो गाँव है जिसे कुमाऊँ के प्रसिद्ध कमिश्नर हेनरी रेम्जे ने बसाई थी। वो स्वयं गर्मी की मौसम मेन इस गाँव में आकर रहते थे जिसके लिए उन्होंने यहाँ एक बंगला भी बनवाया था। इस गाँव में फ़ौजी और दिवानी (Civil & Criminal) दोनो प्रकार की अदालतें लगा करती थी जिसके संचालन के लिए गोरे अधिकारी भी इस गाँव में स्थाई तौर पर निवास करते थे। इन गोरे अधिकारियों के लिए एक चर्च का भी निर्माण किया गया था जो आज भी इस गाँव में मौजूद है।

रामनगर:
दूसरी तरफ़ नैनीताल जिले में बसा रामनगर क़स्बा को भी वर्ष 1850 में हेनरी रेम्जे ने ही बसाया था। रामनगर को रेम्जे ने तिजारत (व्यापार) मंडी के रूप में बसाया था जहाँ मैदान और पहाड़ के व्यापारी मिलते थे और वस्तुओं का आदान-प्रदान (ख़रीद-बिक्री) करते थे। रामनगर से पहले यहाँ की मंडी यहाँ से चार किमी दुर चिलकिया में लगती थी। जबकि मैदान में बसा काशीपुर क़स्बा मैदान से आने वाले व्यापारियों का आख़री पड़ाव था।
तिब्बत से आए व्यापारी अपना बाज़ार भोटिया पड़ाव (आज का डिग्री कालेज) में, मैदान के गुड़ व्यापारी अपना बाज़ार जसपुरिया लाइन में और नमक के व्यापारी अपनी दुकान पानी की टंकी के आस-पास लगाते थे। पहाड़ के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले अलग-अलग की वस्तुओं की थोक मंडी ठेंगा बाज़ार में लगती थी। हेनरी रेम्जे ने काशीपुर के व्यापारियों को रामनगर में अपना व्यापार लगाने के लिए बार-बार प्रोत्साहित किया।
मिथक रूप से प्रभु श्रीराम के नाम के साथ जोड़े जाने वाले इस शहर में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 42.92% आबादी मुस्लिम समाज की है। दरअसल चुकी यह शहर हेनरी रेम्जे द्वारा एक व्यापारिक शहर के रूप में स्थापित किया और उस दौर मेन ज़्यादातर स्थाई व्यापारी मुस्लिम समाज से सम्बंध रखते थे इसलिए इस शहर में उनकी जनसंख्या का अधिक संख्या में होना स्वभाविक था।
भगवान राम का मंदिर या कोई कहानी न तो रामनगर में है और न ही रमणी गाँव में। जहाँ रामनगर शहर जिम कोर्बेट अभ्यारण का प्रवेश द्वार और माता गर्जिया देवी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध हैं वहीं रमणी गाँव अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती और माता नंदा देवी वार्षिक डोली यात्रा का आख़री पड़ाव के लिए जाना जाता है।

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