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मौलवी, मकतब और देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की पहली विद्यालय दिनचर्या

राजेंद्र प्रसाद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उन्हें अक्षर का पहला ज्ञान एक मौलवी ने दिया था। अमूमन हिंदू परिवार अपने बच्चे का पहला अक्षरारम्भ (पढ़ाई का पहला दिन) किसी मंदिर या विद्यालय में पूजा-पाठ के साथ किसी पंडित या हिंदू शिक्षक से करवाते हैं। लेकिन राजेंद्र प्रसाद का अक्षरारम्भ एक मौलवी साहब ने एक मकतब में करवाया था। अगले कई वर्षों तक राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा इसी मौलवी साहब के मकतब में हुआ था। अपने अक्षरारम्भ के बारे में राजेंद्र प्रसाद लिखते हैं कि जिस दिन उनका अक्षरारम्भ हुआ उस दिन उनके दो और रिस्तेदार का भी अक्षरारम्भ उसी मौलवी साहब ने किया। 

शीरनी और औरंगज़ेब:

राजेंद्र प्रसाद के अक्षरारम्भ के इस उपलक्ष्य में उनके पिता ने गाँव के लोगों को शीरनी बाटी और राजेंद्र प्रसाद को सगुण का पैसा भी दिया गया। शीरनी लखनऊ में इजात हुई एक प्रकार की मुग़लई मिठाई हुआ करती थी। एक किंवदंती के अनुसार जब मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने पूरे हिंदुस्तान को इस्लाम धर्म में परिवर्तित करने का विचार किया तो उन्होंने यह फ़ैसला लिया कि हिंदुस्तान के सभी लोगों को शीरनी खिलाया जाएगा और शीरनी खाते ही सभी इस्लाम धर्म में स्वतः ही परिवर्तित हो जाएँगे। हालाँकि औरंगज़ेब अपने मंसूबो में सफल नहीं हुए लेकिन शीरनी सैकड़ों वर्षों तक उत्तर भारत की प्रसिद्ध मिठाई ज़रूर रही। 

मकतब दिनचर्या:

बहरहाल, राजेंद्र प्रसाद का मकतब में दिनचर्या कुछ इस तरह का हुआ करता था कि सूर्योदय से पहले बिना कुछ खाए-पिए सभी बच्चे मकतब पहुँच जाते थे। सुबह पिछले दिन की पढ़ाई का रेविज़न करने के बाद सूर्योदय होने पर सभी बच्चे अपने अपने घर जाकर नाश्ता करते थे जिसके लिए आधे से पौन घंटे की छुट्टी मिलती थी। नाश्ता करने के बाद फिर से मकतब में आकर सबको सबक़ याद करना होता था और उसे मौलवी साहब को सुनाना पड़ता था। उसके बाद सभी बच्चे लिखने का काम शुरू करते थे। इस दौरान एक बार फिर से बच्चों को कुछ हल्का-फुलका खाने और हँसने-खेलने का छुट्टी मिलता था। 

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दोपहर में नहाने-खाने के लिए फिर से लगभग एक से डेढ़ घंटे की छुट्टी मिलती थी। खाना खाने के बाद बच्चों को सोने के लिए भी समय मिलता था लेकिन सभी बच्चे मकतब में ही सोते थे। राजेंद्र प्रसाद को नींद नहीं आती थी इसलिए मौलवी साहब के सोते ही राजेंद्र प्रसाद सोते सोते अपने सहपाठियों के साथ शतरंज खेलते थे और मौलवी साहब के जागने से पहले शतरंज की गोटियाँ छुपाकर रख देते थे। दोपहर की नींद से जगने के बाद मौलवी साहब दिन का दूसरा सबक़ देते थे जिसे याद करना होता था। इसके बाद सभी बच्चों को लगभग डेढ़ घंटा खेलने की छुट्टी दिया जाता था जब बच्चे गेंद, चिक्का जैसे खेल खेलते थे। 

शाम को अंधेरा होने के बाद सभी बच्चे फिर से चिराग़-बत्ती जलाकर मौलवी साहब के सामने पढ़ने बैठ जाते थे। याद किया हुआ सबक़ मौलवी साहब को सुनाने के बाद सभी बच्चों की छुट्टी हो जाती थी और सभी बच्चे अपने-अपने घर चले जाते थे। इस दिन भर की पढ़ाई के बदले मौलवी साहब को प्रति विद्यार्थी तीन-चार रुपए मासिक फ़ीस के रूप में देते थे और अपने अपने घर से खाना लाकर देते थे। 

House of Rajendra Prasad
चित्र: बिहार के सिवान ज़िले के ज़ीरादेयी गाँव में स्थित वह घर जहां राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था। स्त्रोत: Walking Down The Lane- A Pictorial Tribute to Dr. Rajendra Prasad (The First President of the Republic India) पुस्तक।

दूसरा मौलवी:

राजेंद्र प्रसाद के गाँव में एक और शिक्षक थे जो जाति से जुलाहा थे लेकिन कैथी लिपि और मुड़कट्टी हिसाब सीखने के लिए उनसे बेहतर शिक्षक गाँव में नहीं था। मुड़कट्टी हिसाब एक तरह की गणित की पढ़ाई होती थी जिसमें पहाड़ा, डयोढ़ा आदि शेर-मन (नाप-तौल) का हिसाब लगाना सिखाया जाता था। इस जुलाहा शिक्षक के पास भी कुछ बच्चे पढ़ने जाते थे जो मौलवी साहब से कम फ़ीस लेते थे। 

राजेंद्र प्रसाद को रामायण-महाभारत आदि का ज्ञान रात को गाँव में लगने वाली चौपालों से मिलता था जहां रोज़ रात को गाँव के लोग इकट्टा होते थे और ढोल-झाल के साथ रामायण-महाभारत की चौपाई गाते थे। इस चौपाल में वो लोग भी आते थे जिन्हें अक्षर का कोई ज्ञान नहीं था और वो सिर्फ़ सुनकर रामायण-महाभारत की चौपाई याद कर लेते थे। 

ऐसा था देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की प्रारम्भिक शिक्षा। आज के दौर में अगर इस तरह की शिक्षा किसी हिंदू गाँव में चले तो उस गाँव को पाकिस्तान और ऐसे मकतब में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों को देशद्रोही, अधर्मी और पता नहीं क्या क्या कहा जाएगा। 

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Raavan Kumar
Raavan Kumar
Raavan Kumar is based in Uttarakhand and do business only in writing.
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