HomeCurrent Affairsघटना-दुर्घटना, नैतिक ज़िम्मेदारी और मंत्री जी का इस्तीफ़ा: इतिहास के पन्नों से

घटना-दुर्घटना, नैतिक ज़िम्मेदारी और मंत्री जी का इस्तीफ़ा: इतिहास के पन्नों से

3 जून 2023 को हुई रेल दुर्घटना के बाद रेल मंत्री के इस्तीफ़े की माँग उठ रही है। राजनीतिक इस्तीफ़े की राजनीति उतनी ही रोचक है जितनी इस्तीफ़े का इतिहास। आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में कई ऐसे मौक़े आए जब बिना किसी के द्वारा इस्तीफ़ा माँगे ही कुछ नेताओं ने इस्तीफ़ा दे दिया जबकि कुछ ने चारों तरफ़ से इस्तीफ़े की माँग के बावजूद इस्तीफ़ा तो दूर उक्त घटना के लिए नैतिक ज़िम्मेदारी तक नहीं लिया। कुछ इस्तीफ़े ने इस्तीफ़ा देने वाले को प्रधानमंत्री के पद तक पहुँचा दिया तो कुछ इस्तीफ़े ने इस्तीफ़ा देने वाले का राजनीतिक जीवन ही ख़त्म कर दिया। आज़ाद हिंदुस्तान में 10 महत्वपूर्ण इस्तीफ़े की कहानी कुछ इस तरह है।  

  1. लाल बहादुर शास्त्री : अगस्त 1956 में आंध्र प्रदेश के महबूबनगर में एक रेल दुर्घटना हुई जिसमें 112 लोग मारे गए। देश के तत्कालीन रेलमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफ़ा भेजा जिसे नेहरू ने वापस कर दिया। लेकिन तीन महीने के भीतर 25 नवम्बर 1956 को तमिलनाडु के अरियलुर में फिर से एक रेल दुर्घटना होती है जिसमें 144 लोग मारे जाते हैं। लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री नेहरू को फिर से अपना इस्तीफ़ा भेजा यह लिखते हुए कि उनका इस्तीफ़ा जल्दी से जल्दी स्वीकार किया जाए। इस बार नेहरू ने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया। 

वर्ष 1956 में एक रेल दुर्घटना के बाद तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया इस्तीफ़ा आज़ाद हिंदुस्तान में किसी मंत्री द्वारा दिया गया पहला इस्तीफ़ा था। इस इस्तीफ़े ने लाल बहादुर शास्त्री का राजनीतिक गलियारे के साथ साथ आम जनता के बीच इतनी प्रसिद्धि बढ़ाई कि नेहरू के बाद हिंदुस्तान के सर्वाधिक पॉप्युलर राजनेता बन गए और एक दशक के भीतर हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बन गए।नैतिक ज़िम्मेदारी के आधार पर अपने पद से इस्तीफ़ा देने की यह राजनीतिक पहल सफल रही लेकिन इसके बावजूद अगले कई दशक तक किसी भी मंत्री ने ऐसा कोई दूसरा इस्तीफ़ा नहीं दिया। 

लाल बहादुर शास्त्री के इस फ़ैसले को आज भी हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान के बाहर भी कई देश की मीडिया राजनीतिक नैतिकता के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करती है। 

2. टी टी कृष्णामचारी

न्यू यॉर्क टाइम में एक खबर छपी कि भारत सरकार की एलआइसी ने हरिदास मुंधरा की कम्पनी के धोखाधड़ी वाले कुछ शेयर ख़रीदा जिसकी क़ीमत उस समय 1.24 करोड़ रुपए थी और एलआईसी के इतिहास की सबसे बड़ी ख़रीद थी। शेयर ख़रीदने की प्रक्रिया में इन्वेस्टमेंट कमिटी से सम्पर्क तक नहीं किया गया था। दरअसल हरिदास मुंधरा की कम्पनी लगातार घाटे में चल रही थी जिसे बचाने के लिए यह प्रयास किया जा रहा था। 

नेहरू ने एक जाँच समिति बिठाई जिसने एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट पर सुनवाई सार्वजनिक तौर पर किया गया जिसमें भारी संख्या में लोग जुटे। अंततः 18 फ़रवरी 1958 को कृष्णामचारी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। इतिहास में इसे मुंधरा घोटाला कहा जाता है। 

3. वी के कृष्णा मेनन: 

भारत-चीन युद्ध में भारत की करारी हार के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन ने प्रधानमंत्री नेहरू को कई बार अपना इस्तीफ़ा भेजा लेकिन नेहरू ने स्वीकार नहीं किया। अंततः 7 नवम्बर 1962 को उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया। ये वही मेनन थे जिन्होंने रक्षामंत्री रहते हुए गोवा की आज़ादी में अहम भूमिका अदा किया था। इसके पहले देश के बाहर विदेश मंत्री रहते हुए इन्होंने कोरिया युद्ध से लेकर मिश्र के स्वेज बांध के कारण उत्पन्न वैश्विक संकट में अहम भूमिका अदा किया था। माना जाता है कि इनके प्रयासों के कारण ही चीन और अमरीका के बीच अंतर्रष्ट्रिय सम्बंध सुधारने लगे थे। 

4. केशव देव मालवीय: 

हिंदुस्तान में स्वदेशी पेट्रोलियम क्रांति के जनक केशव देव मालवीय के ऊपर यह आरोप लगा कि चुनाव के दौरान उन्होंने एक कांग्रेस उम्मीदवार की मदद के लिए एक निजी कम्पनी (सेरजऊद्दिन एंड कम्पनी) से सहायता करने को कहा है। चुकी इस मामले में बहुत छोटी रक़म का लेन-देन हुआ था इसलिए नेहरू इसे अधिक महत्व नहीं दे रहे थे लेकिन इसके बावजूद नेहरू ने सर्वोच्च न्यायालय से इस सम्बंध में निष्पक्ष जाँच करने का आग्रह किया। जाँच की रिपोर्ट में केशव देव मालवीय को न्यायालय ने दोषी पाया जिसके बाद केशव देव ने प्रधानमंत्री नेहरू को अपना त्याग पत्र सौंप दिया। 

इसे भी पढ़े: बिहार के इस राजनीतिक संकट ने राज्यपाल से इस्तीफ़ा ले लिया और राष्ट्रपति को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया था।

5. वी पी सिंह: जनवरी 1987 में राजीव गांधी ने वी पी सिंह को वित्त मंत्री से हटाकर रक्षा मंत्री बनाया। दरअसल वित्त मंत्री बनने के बाद सिंह लगातार टैक्स रेड करवा रहे थे जिसमें कई उद्दयोगपति जेल जा चुके थे। इस कार्य के प्रति सिंह इतने दृढ़ थे कि उन्होंने एक अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेन्सी Fairfax Group के साथ भी अनुबंध किया जो हिंदुस्तानियों का अलग अलग देशों में जमा काला-धन की जाँच कर रहा था। इस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कई दोस्त और नज़दीकियों का भी नाम आने लगा जिसके बाद उन्हें वित्त मंत्री से हटाकर रक्षा मंत्री बना दिया गया। 

रक्षा मंत्री बनने के बाद वी पी सिंह ने रक्षा सौदे की प्रक्रिया में बिचौलिये की भूमिका पर प्रहार किया। पश्चिमी जर्मनी के भारतीय दूतावास से मिली एक खबर से वी पी सिंह को यह पता चला कि भारत सरकार द्वारा जर्मनी से ख़रीदी गई दो पनडुब्बी में बिचौलियों ने लगभग तीस करोड़ कमिशन लिया है। खबर रातों रात मीडिया में फैल गई, राजीव गांधी नाराज़ हुए, वी पी सिंह ने 12 अप्रैल 1987 अपने रक्षामंत्री के पद से इस्तीफ़ा दिया और उसके बाद उन्हें कांग्रेस पार्टी से भी निकाल दिया गया। 

इस इस्तीफ़े ने भी इस्तीफ़ा देने वाले वी पी सिंह के राजनीतिक कैरीअर में नयी उछाल लाया और 2 वर्ष के भीतर वो 1989 में हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बन गए। मंत्रिपद से इस्तीफ़ा देकर प्रधानमंत्री बनने वाले ये लाल बहादुर शास्त्री के बाद दूसरे राजनेता थे।

6. पी चिदम्बरम: 9 जुलाई 1992 को प्रधानमंत्री नरसिंभा राव ने तत्कालीन वाणिज्य मंत्री पी चिदम्बरम को उनके और उनके पत्नी द्वारा घोटालेबाज़ फ़ेयरग्रोथ फ़ायनैन्शल सर्विस लिमिटेड कम्पनी के पंद्रह हज़ार शेयर ख़रीदने के मामले में दोषी पाया और उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर कर लिया। 

7. माधवराव सिंधिया: तत्कालीन विमान उड्डयन मंत्री माधवराव सिंधिया ने रुस में निर्मित इंडीयन एयरलाइन के एक विमान (TU-154) का दिल्ली हवाईअड्डा पर दुर्घटनाग्रस्त होने और राहत कार्य में विलम्ब होने की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इस रुस निर्मित विमान का आयात माधवराव सिंधिया के कार्यकाल के दौरान हुआ था। 

8. नीतीश कुमार : अगस्त 1999 को आसाम में एक रेल दुर्घटना हुई जिस में 290 लोग मारे गए। दुर्घटना की ज़िम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने अपने मंत्रीपद से इस्तीफ़ा दे दिया। अपने जारी बयान में उन्होंने कहा कि यह पूरी व्यवस्था की असफलता हैं जिसमें हम लगातार रेल की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं लेकिन उसके क्रियान्वयन पर जो अतिरिक्त भार बढ़ रहा है उसके लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। इशारा था भारतीय रेल में रिक्त पद, नयी सुरक्षा पद्धति पर ज़ोर नहीं देना, आदि। 

9. लालू प्रसाद यादव: 2005 में एक रेल दुर्घटना हुई, लालू प्रसाद रेल मंत्री थी। जब उनकी इस्तीफ़े की बात आइ तो उन्होंने कहा कि वो मंत्री दुर्घटना की ज़िम्मेदारी लेने के लिए बने हैं न कि ज़िम्मेदारी से भागने के लिए। 

10. सुरेश प्रभु: चार दिनों के भीतर दो रेल दुर्घटना के बाद तत्कालीन रेल मंत्री ने 23 अगस्त 2017 को अपने पद से इस्तीफ़े की पेशकश की जिसे प्रधानमंत्री ने ठुकरा दिया था।  

निष्कर्ष: किसी अप्रिय घटना/दुर्घटना के एवज़ में किसी राजनीतिक व्यक्तित्व द्वारा अपने पद से इस्तीफ़ा देना कई मौक़े पर उक्त व्यक्ति के राजनीतिक जीवन में नया उछाल दे देता है लेकिन कई मौक़े पर उनके राजनीतिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। जिस तरह हिंदुस्तान की राजनीति में इस्तीफ़ा देने की प्रक्रिया का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ है उसी तरह के उदाहरण विश्व के अन्य हिस्सों में भी देखने को मिलता है। 

Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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