चेन्नई के पेरियारवादी संगठन थनथई पेरियार द्रविदर कषग़म ने 12 अक्टूबर 2016 को दशहरे के मौक़े पर रावण लीला का आयोजन करने की घोषणा की। संगठन का मानना है कि रावण और उनका भाई कुंभकरण द्रविड़ समाज से संबंध रखते थे और उत्तर भारतियों द्वारा दशहरे के मौक़े पर ‘अच्छाई पर बुराई की जीत’ के प्रतीक के रूप में रावण और कुंभकरण का पुतला दहन करना द्रविड़ समाज की अवहेलना और द्रविड़ समाज के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार है।
संगठन के चेन्नई ज़िला प्रमुख ने इस संबंध में उत्तर भारत में रावण और कुंभकरण का पुतला दहन करने की परम्परा पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री से आग्रह भी किया लेकिन उनकी मांगों की अवहेलना की गई और इसलिए संगठन ने दशहरा के मौक़े पर राम, सीता और लक्ष्मण का पुतला दहन करने का कार्यक्रम बनाया। इस क्रम में संस्था के 51 लोगों को आयोजन स्थल से पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया, जिसमें से 40 लोगों को कुछ घंटों के बाद छोड़ दिया गया जबकि शेष 11 के ऊपर मद्रास उच्च न्यायालय में मुक़दमा चलाया गया।
वर्ष 1998 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने भी द्रविदर कषग़म के कार्यकर्ताओं द्वारा उस वर्ष रावण लीला का आयोजन करने का समर्थन किया था। करुणानिधि तमिलनाडु की राजनीति का वो चेहरा थे जिन्होंने हमेशा उत्तर भारतीय समाज द्वारा तमिल संस्कृति के ऊपर थोपे जाने वाले उत्तर भारतीय परम्पराओं का विरोध किया था।

सुअर को जनेऊ:
इसी वर्ष 2018 में थनथई पेरियार द्रविदर कषग़म संगठन के 8 कार्यकर्ताओं को फिर से गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने संगठन के द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान ब्राह्मणवाद और जातिवाद के ख़िलाफ़ प्रतीकात्मक रूप से विरोध जताने के लिए सिर्फ़ ब्राह्मणों द्वारा पहने जाने वाले जनेऊ को दलित समाज का प्रतीक सूअर को जनेऊ पहनाने की कोशिश की। दोनों मामले में गिरफ़्तार हुए कार्यकर्ताओं का केस अभी भी मद्रास उच्च न्यायालय में लम्बित है।

रावण लीला का इतिहास:
दक्षिण भारत के महान दलित चिंतक पेरियार अपने मृत्यु से कुछ महीने पूर्व 1973 में अपने एक व्यक्तिगत नोट में लिखते हैं कि “द्रविड़ समाज को रामलीला के विरोध में रावण लीला मनानी चाहिए”। अगले ही वर्ष 1974 में पेरियार की पत्नी मनियमनी और पेरियार द्वारा गठित संगठन द्रविदर कषग़म की सदस्य के. वीरमणि ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ख़त लिखकर उनको रामलीला और रावण-कुंभकरण दहन कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का आग्रह किया, अन्यथा पूरे तमिलनाडु में राम और उनका (इंदिरा गांधी) का पुतला जलाने की भी चेतावनी दी।
भारत सरकार की तरफ़ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलने के बाद द्रविड़ कषग़म ने 25 दिसम्बर 1974 को अपने चेन्नई स्थित कार्यालय परिसर में राम-लक्ष्मण-सीता का पुतला जलाया और रावण लीला का आयोजन किया। घटना के बाद पुलिस ने मनियमनी के साथ द्रविदर कषग़म के तेरह अन्य कार्यकर्ताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया और उनपर मुकदम चलाया गया। इस मामले में निचली अदालत ने उन्हें दोषी माना, पर सेशन कोर्ट के जज सोमासुंदरम ने उन्हें वर्ष 1976 में यह कहते हुए बरी कर दिया कि कार्यक्रम के आयोजनकर्ताओं का मक़सद किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का नहीं था।

तमिल संस्कृति:
उत्तर भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और मान्यताओं का विरोध करने में तमिलनाडु हमेशा अग्रसर रहा है। फिर चाहे वो मामला आज़ादी के बाद हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने का विरोध हो या 1990 के दशक के दौरान भारत की राजीव गांधी सरकार द्वारा श्रीलंका में तमिल गुरिल्ला के ख़िलाफ़ श्रीलंका सरकार द्वारा की जाने वाले युद्ध में भारत सरकार द्वारा उनका समर्थन करना हो।
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