एक तरफ़ देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अलमोडा में रावण पुतला दहन के दौरान रावण के परिवार के 26 पुतलों का दहन किया जाता है दूसरी तरफ़ हिंदू सम्राट योगी आदित्यानाथ के उत्तर प्रदेश में, आगरा में रावण की मंदिर बनाई जाती है और वो भी ब्राह्मणों के द्वारा। रावण पुतला दहन पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह करने वालों में हिंदू धर्म के शंकराचार्य जी भी शामिल है।
दूसरी तरफ़ दक्षिण भारत के कई दलित-आदिवासी संस्थाओं ने तो रावण पुतला दहन के विरोध में राम, लक्षण और सीता तक का पुतला दहन करने का धमकी भी दे चुके है और कई तो राम और लक्षण के पुतले का दहन इसके पहले ही कई बार कर चुके हैं। आज न्यूज़ हंटर्ज़ पर रावण पुतला दहन के विरोध की इसी कहानी में बारे में आपको बताएँगे ऐसे महत्वपूर्ण मौक़े जब देश के अलग अलग हिस्सों में रावण पुतला दहन का विरोध हुआ है।
रावण पुतला दहन: 2023
शुरू करते हैं इसी साल से यानी कि 2023 से। उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण नेता श्रिकांत त्यागी, ने सभी को धमकी दिया है कि जो भी इस साल रावण पुतला दहन करेंगे उनके ख़िलाफ़ वो FIR करेंगे। उन्होंने रावण पुतला दहन को ब्राह्मण विरोधी बोला और सुझाव दिया कि अगर पुतला दहन करना ही है तो फिर दुशासन और दुर्योधन का कीजिए जो क्षेत्रीय थे।
श्रिकांत त्यागी पिछले साल एक महिला के साथ बटसलूकी करने के मामले में वाइरल हुए थे, वो अपने आप को भाजपा किसान मोर्चा के नेता बता रहे थे, उनकी JP नड्डा से लेकर योगी आदित्यानाथ तक के साथ फ़ोटो थे लेकिन भाजपा ने श्रिकांत त्यागी के साथ किसी भी तरह का कोई समबंध होने से इंकार कर दिया तो अब त्यागी के भाजपा नेता से ब्राह्मण नेता बन गए हैं और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण बनाम ठाकुर लड़ाई का बीज बो रहे हैं।
हालाँकि भाजपा ने आज तक रावण पुतला दहन का विरोध तो नहीं किया है लेकिन महाराष्ट्र में उनके सहयोगी शिव सेना के शिंदे ग्रूप ने इस साल मुंबई के प्रसिद्ध आज़ाद मैदान में विजय दशमी के दिन रैली करने का फ़ैसला लिया है और उसके लिए दसहरा आयोजकों को विजय दशमी के एक दिन पहले आज़ाद मैदान ख़ाली करने का आदेश दिया है यानी कि इस इस साल आज़ाद मैदान में रावण पुतला दहन नहीं होगा। 48 साल पहले आज़ाद मैदान में रावण पुतला दहन खुद बाला साहेब ठाकरे ने शुरू किया था।
दूसरी तरफ़ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ऐशबाग़ में इस साल सिर्फ़ रावण का पुतला दहन होगा मेघनाथ या कुंभकरन का नहीं क्यूँकि आयोजकों के अनुसार मेघनाथ या कुंभकरन ने रावण को राम के साथ युद्ध करने से माना किया था। ऐशबाग़ उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी दसहरा पूजा कमिटी है जो पिछले तीन सौ सालों से रावण मेघनाथ और कुंभकरन पुतला दहन करते आ रही है। तीन सालों के बाद ही सही लेकिन ऐशबाग़ पूजा समिति को ज्ञान तो आया कि मेघनाथ और कुंभकरन निर्दोष थे।
2022:
भारत छोड़िए इस साल तो वेस्ट इंडीज़ के त्रिनिदाद में भी रावण पुतला दहन के विरोध में किसी ने निर्माणधिन रावण के पुतले को चार बजे सुबह में जला दिया। पिछले साल यानी की 2022 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में कई जगहों पर रामलीला तो हुआ लेकिन रावण का पुतला नहीं फूंका गया।
पिछले ही साल भाजपा शासित कर्नाटक के कलबुर्गी ज़िले में दलित सेना के लोगों ने रावण पुतला दहन आ विरोध किया और ये घोषणा किया था कि अगर उनके क्षेत्र में रावण पुतला दहन किया गया तो वो लोग राम के पुतले का दहन करेंगे। और इसके बाद रावण पुतला दहन के आयोजकों ने रावण पुतला दहन का कार्यक्रम रद्द कर दिया था। और ये भाजपा शासित कर्नाटक में हुआ था।
2020:
उसके पहले साल 2020 के दौरान कोविड गाइड्लायन के तहत कहीं भी रावण पुतला का दहन नहीं किया गया था। इसे एक अच्छा मौक़ा देखते हुए और पर्यावरण का हवाला देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनो को रावण पुतला दहन से सम्बंधित क़ानून बनाने का निर्देश दिया ताकि इससे होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। लेकिन इसी साल जब जयपुर में पुतला दहन का प्रयास किया गया तो पुलिस ने पुतले को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था जिसके ख़िलाफ़ आयोजक न्यायालय तक चले गए थे। और ये कांग्रेस शासित राजस्थान में हुआ था।
साल 2019 में देश की सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी कि पूरे देश में होने वाले रावण पुतला दहन पर रोक लगाया जाय। ऐसा ही एक जनहित याचिका साल 2017 में भी दायर की गई थी। लेकिन दोनो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को बर्खास्त कर दिया था।
इसके ठीक एक साल पहले साल 2018 में तो हिंदू धर्म के शंकरचार्य अधोक्षजनंद देव तीर्थ महराज ने भी देश के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से रावण पुतला दहन की परम्परा पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया था उनका तर्क था कि रावण क्या हिंदू धर्म में किसी का भी पुतला दहन करना हिंदू विरोधी है हिंदू धर्म में सभी को अंतिम श्रध क्रिया सम्मान के साथ किया जाता है और रावण का श्राध क्रिया तो खुद विभीषण ने भगवान राम की उपस्थिति में किया था।
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साल 2018 में पुणे की भीम आर्मी ने धमकी दिया था कि रावण पुतला दहन करने वालों के ख़िलाफ़ वो SC ST ऐक्ट के तहत मुक़दमा करेंगे। इसपर प्रतिक्रिया देते हुए सभ्रमण्यम स्वामी ने भीम आर्मी के लोगों को जोकर बोल दिया था। इसी साल पंजाब की रावण सेना ने भी फ़िरोज़पुर ज़िला प्रशासन को रावण पुतला दहन के ख़िलाफ़ अर्ज़ी दिया। मथुरा का लंकेश भक्त मंडल ने तो प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ तक को पत्र लिखकर रावण पुतला दहन की प्रथा को बंद करने का आवाहन कर दिया। उनके अनुसार रावण पुतला दहन शिव भक्तों का अपमान है क्यूँकि रावण शिव के सबसे प्रिय भक्त थे।
साल 2017 में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बेतुल ज़िला के आदिवासियों ने ज़िला प्रशासन के सामने रावण पुतला दहन का विरोध किया और उसे रुकवाने का आग्रह भी किया। उनका कहना था कि होली के दौरान वो लोग यानी की क्षेत्र के आदिवासी मेघनाथ की पूजा करते हैं और इस तरह रावण उनके आराध्य हैं इसलिए उनका पुतला दहन नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में भी आदिवासियों ने रावण पुतला दहन के ख़िलाफ़ स्थानीय प्रशासन को आवेदन पत्र दिया था। बाद में इस तरह की माँग मध्य प्रदेश के सेओनि और छिन्दवाड़ा ज़िले से भी होने लगी और फिर झारखंड के खुँती ज़िले से भी ऐसी माँग उठने लगी।
साल 2016 में आगरा के सारस्वत ब्राह्मण जाति के लोगों ने रावण के पुतला दहन का विरोध किया था और यमुना नदी पर बने वृहदेश्वर महादेव मंदिर में रावण की पूजा अर्चना भी किया। इनका मानना था कि रावण सारस्वत ब्राह्मण जाति से समबंध रखते थे और उनका पुतला दहन करना सारस्वत ब्राह्मण जाति का अपमान है।
तेलंगाना में भी इसी 2016 के दौरान कुछ दलित युवकों और संस्थाओं ने सरेआम रावण पुतला दहन का विरोध किया, और बाइक रैली भी निकाली। इन लोगों ने साल 2015 में रावण पुतला दहन के विरोध में राम पुतला दहन किया था जिसमें उनकी गिरफ़्तारी भी हुई थी। इस तरह से साल 2016 में ही तमिलनाडु के कई हिस्सों में दसहरा के एक दिन बाद राम, लक्षमन और सीता का पुतला दहन किया गया था।

लम्बा इतिहास:
तमिलनाडु में राम का पुतला दहन करने की प्रथा कम से कम पाँच दशक पुरानी है जब पहली बार पिछड़ों के नेता पेरियार ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वो दिल्ली में होने वाले रावण पुतला दहन कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले और अगर वो ऐसा करेंगे तो तमिलनाडु में पेरियार के अनुयायी राम और लक्षमन का पुतला दहन करेंगे।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान रावण पुतला दहन विरोध की आग धीरे धीरे दक्षिण भारत से उठकर उत्तर भारत तक पहुँच चुकी है और विरोध करने वाले अब सिर्फ़ दलित और आदिवासी नहीं रहे हैं बल्कि ब्राह्मण और यहाँ तक कि हिंदू धर्म के शंकरचार्य भी इस रावण पुतला दहन प्रथा के विरोध में उतार चुके हैं।
आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर आगे आने वाले वर्षों के दौरान रावण पुतला दहन पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाए। अलग अलग बहाने के सहारे अब रावण पुतला दहन की परम्परा पर विस्तृत बहस छिड़ रही है। कुछ लोग पुतला दहन को हिंदू विरोधी बता रहे हैं तो कुछ पर्यावरण विरोधी। कुछ इसे दलित आदिवासी विरोधी बता रहे हैं और कुछ इसे ऐतिहासिक महत्व की भी बात कर रहे हैं।
खुश होईए या नाराज़ लेकिन बिहार में अभी तक इस तरह की रावण पुतला दहन विरोधी बात नहीं हुई है जबकि पड़ोसी उत्तर प्रदेश और झारखंड में कई बार हो चुकी है। ऐसा सम्भवतः इसलिए हुआ क्यूँकि बिहार में आदिवासी न के बराबर हैं और दलित आंदोलन की अपनी कोई रीढ़ है ही नहीं।

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