बिहार में होम्योपैथी विकास के अंतःविरोध से जूझ रहा है। आज़ादी के बाद बिहार देश का तीसरा राज्य था जिसने इस सम्बंध में प्रदेश के विधानसभा में अधिनियम पारित कर इससे सम्बंधित नियम-क़ानून बना चुका था। आज भी बिहार होम्योपैथी इलाज में बंगाल, त्रिपुरा और केरल के बाद चौथे स्थान पर है। बिहार में 3.9 प्रतिशत लोग इस पद्धति से अपना इलाज करवाते हैं जबकि राष्ट्रीय औषत 3.0 प्रतिशत है। लेकिन इसके बावजूद बिहार होम्योपैथी से सम्बंधित किसी खबर की सुर्ख़ियाँ बटोरता है तो वो सिर्फ़ इस सम्बंध में कि कैसे बिहार में इस इलाज पद्धति में इस्तेमाल होने वाले स्पिरिट का लोग शराब बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं।
हिंदुस्तान में प्रारम्भ किए गए कुछ चुनिंदा प्रथम और प्रसिद्ध होम्योपैथी शिक्षण संस्थानों में से एक संस्थान उस समय बिहार में स्थित संथाल परगना के मिहिजम नामक जगह पर स्थापित किया गया था। उस समय इसका नाम ‘इन्स्टिटूट ओफ़ होम्योपैथी’ था जो उत्तर बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में स्थित मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत पंजीकृत था।
वर्ष 2002 में बिहार से अलग होकर पृथक राज्य झारखंड बनने के बाद अब इसे मेडिकल कॉलेज बना दिया गया है और यह विनोबा भावे विश्वविद्यालय, चितरंजन के अंतर्गत आता है। माना जाता है कि अंग्रेजों के दौर में आदिवासी समाज के लोगों के बीच यह पद्धति सस्ता होने के कारण और ईसाई मिशनेरी के प्रयास के कारण काफ़ी प्रचलित हो गई थी।
मिहिजम 19वीं सदी के प्रारम्भ से ही बिहार के एक प्रमुख उच्च-शिक्षण व शोध केंद्र के रूप में उभर रहा था। वर्ष 1800 में ही यहाँ ‘The Fellowship of Christian Assemblies Mission’ की स्थापना हो चुकी थी। भारत में होम्योपैथी का प्रचलन 19वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में एक रोमानिया के डॉक्टर John Martin Honigberger द्वारा पंजाब के राजा रंजित सिंह के लकवा और उनके घोड़े का सफल इलाज करने के बाद हुआ।
रंजित सिंह के इलाज के बाद वर्ष 1860 में Honigberger कलकत्ता चले गए और हिंदुस्तान में इस इलाज पद्धति के प्रसार के लिए कार्य करने लगे। इस दौरान होम्योपैथी से कोलरा की बीमारी का इलाज करने के लिए वो बंगाल में काफ़ी प्रसिद्ध हो गए। दक्षिण भारत में यही कार्य डॉक्टर Samuel Brookling कर रहे थे।
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वर्ष 1917 में ब्रिटिश सरकार ने होम्योपैथी के विकास के लिए नैशनल हेल्थ सर्विस के तहत मिलने वाले फंड को बंद कर दिया। इसी दौरान पूरी दुनियाँ में इस उपचार विधि के ख़िलाफ़ मुहिम चलाई गई। इस दौरान दुनियाँ के कई देशों में लगातार प्रचलन बढ़ने वाली इस इलाज पद्धति को विज्ञान मानने से इंकार कर दिया गया और इसे देशी टोटके की नज़र से देखा जाने लगा। ऐसे में भारत के कई स्वदेश संस्थाओं ने होम्योपैथी के विकास के लिए कार्य किया। वर्ष 1922 में राम कृष्ण मिशन ने मिहिजम में बिहार विद्यापीठ की स्थापना भी किया और इसके बाद कई प्रसिद्ध भारतीय होम्योपैथी डॉक्टर यहाँ आकर अपना स्वास्थ्य व शोध केंद्र खोला।
ईश्वर चंद्रा विद्यासागर के अस्थमा का सफल इलाज हिंदुस्तान के पहले होम्योपैथी डॉक्टर हेंद्र लाल सरकार ने किया था। इसके अलावा उन्होंने बंकिम चंद्रा चट्टोपाध्याय, और रामकृष्ण परमहंस का कैन्सर का भी सफल इलाज किया था। इसके अलावा इस इलाज पद्धति के हिंदुस्तान में सर्वाधिक प्रसिद्ध डॉक्टर प्रताप चंद्रा मजूमदार थे जिन्होंने वर्ष 1893 में अमेरिका के सिकागो शहर में आयोजित विश्व धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद के साथ हिंदुस्तान की तरफ़ से भाषण दिया था जो काफ़ी प्रसिद्ध हुआ था।
इससे प्रभावित होकर ईश्वर चंद्रा विद्यासागर ने अपने भतीजे परेशनाथ बनर्जी (1891-1971) को होम्योपैथी की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। मिहज़िम में स्थित ‘इन्स्टिटूट ओफ़ होम्योपैथी’ से पढ़ाई करने के बाद परेशनाथ बनर्जी ने मिहज़िम में ही वर्ष 1918 में अपना चेरिटबल स्वास्थ्य व शोध केंद्र प्रारम्भ किया था। इसी शोध केंद्र में परेशनाथ बनर्जी ने साँप काटने के इलाज के लिए विश्व प्रसिद्ध Lexin दवाई की भी खोज की थी।
एक समय पर परेशनाथ बनर्जी के स्वास्थ्य केंद्र में इतने अधिक मरीज़ अपना इलाज करवाने आने लगे थे कि ब्रिटिश भारतीय रेल को मिहज़िम में रेल्वे स्टेशन बनवाना पड़ा ताकि मरीज़ यहाँ इलाज करवाने के लिए आसानी से पहुँच सके। बाद में इस रेल्वे स्टेशन का विस्तार भी करना पड़ा था। परेशनाथ बनर्जी ने सुभाष चंद्रा बोस , राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉक्टर बिधन चंद्रा रॉय (प्रसिद्ध ऐलोपथि डॉक्टर) समेत कई दिग्गज भारतीयों का होम्योपैथी से इलाज किया था।
आज़ादी के बाद होम्योपैथी:
आज़ादी के बाद इनके पुत्र प्रसंता बनर्जी भी मिहिजम ही नहीं बल्कि देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध होम्योपैथी के डॉक्टर हुआ करते थे। प्रसंता इसी इन्स्टिटूट में पढ़े और बाद में वर्ष 1956 में इन्होंने यहाँ अपना क्लिनिक भी प्रारम्भ किया था। इनके बाद इनके पुत्र अर्थात् परेशनाथ बनर्जी के पोते डॉक्टर प्रतीप बनर्जी ने भी अपने पिता और दादा की विरासत को जारी रखा। लेकिन वर्ष 1960 में इन्होंने अपना स्वास्थ्य केंद्र कलकत्ता स्थान्तरित कर लिया।
बिहार ने वर्ष 1953 में ही ‘Bihar Development of Homeopathic System of Medicine Act’ पारित कर चुका था जिसके द्वारा प्रदेश में होम्योपैथी से सम्बंधित सभी निर्णय लिए जाते हैं और उसके विकास के लिए प्रयास किया जाता है। आज़ादी के बाद हिंदुस्तान में इलाज की इस पद्धति के विकास के लिए कई प्रयास किए गए जिसमें से आयुष मिशन नवीनतम है। भारत सरकार के आयुष मिशन में देश के 18 राज्यों को शामिल किया गया है जिसमें बिहार भी एक राज्य है जहां आयुष उपचार पद्धति के विकास के लिए कार्य किया जाएगा।
लेकिन इसके बाद बिहार में होम्योपैथी के विकास के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया जा रहा है।एक तरफ़ हिंदुस्तान में क़रीब दो लाख पंजीकृत होम्योपैथी डॉक्टर हैं जिसमें प्रत्येक वर्ष 12 हज़ार का इज़ाफ़ा हो रहा है और दूसरी तरफ़ पिछले वर्ष ही बिहार में होम्योपैथी डॉक्टरों के रिक्त पद पर बहाली नहीं किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार भी लगाई थी। दूसरी तरफ़ केरल जैसे राज्य में पृथक आयुष विभाग है जो राज्य के अन्य मंत्रालय के समकक्ष है।

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